रक्षाबंधन मनाने के साथ समझने होंगे मायने

Last Updated 30 Aug 2023 01:39:13 PM IST

भाईबहन का रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे ऊपर है। हो भी न क्यों, भाई-बहन दुनिया के सच्चे मित्र और एक-दूसरे के मार्गदशर्क होते हैं।


रक्षाबंधन मनाने के साथ समझने होंगे मायने

जब बहन शादी करके ससुराल चली जाती है और भाई नौकरी के लिए घर छोड़कर किसी दूसरे शहर चला जाता है तब महसूस होता है कि भाई-बहन का ये सर्वोत्तम रिश्ता कितना अनमोल है। रंग-बिरंगे धागे से बंधा ये पवित्र बंधन सदियों पहले से हमारी संस्कृति से बहुत ही गहराई के साथ जुड़ा है। यह पर्व उस अनमोल प्रेम का, भावनाओं का बंधन है जो भाई को सिर्फ  अपनी बहन की नहीं बल्कि दुनिया की हर लड़की की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध करता है। जहां यह त्योहार बहन के लिए भाई के प्रति स्नेह को दर्शाता है तो वहीं यह भाई को उसके कर्तव्यों का बोध कराता है।

रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाइयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। वास्तव में ये त्योहार से रक्षा के साथ जुड़ा हुआ है, जो किसी की भी रक्षा करने को प्रतिबद्ध करता है। अगर इस पवित्र दिन अपनी बहन के साथ दुनिया की हर लड़की की रक्षा का वचन लिया जाए तो सही मायनों में इस त्योहार का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा। इस पावन त्योहार का अपना एक अलग स्वर्णिम इतिहास है, लेकिन बदलते समय के साथ बाकी रिश्तों की तरह इसमें भी बहुत से बदलाव आए हैं। जैसे-जैसे आधुनिकता हमारे मूल्यों और रिश्तों पर हावी होती जा रही है; रिश्तों में मजबूती और प्रेम की जगह दिखावे ने ले ली है। आज के बदलते समय में इस त्योहार पर भी आधुनिकता हावी होने लगी है, तब से आज तक यह परंपरा तो चली आ रही है लेकिन कहीं-न-कहीं हम अपने मूल्यों को खोते जा रहे हैं।  रंग-बिरंगे धागों में अब अपनत्व की भावना और प्रेम की गर्माहट कम होने लगी है। एक समय में जिस तरह के उसूल और संवेदना राखी को लेकर थी शायद अब उनमें अब रुपयों के नाम की दीमक लगने लगी है।

ऐसे में संस्कृति और मूल्यों को बचाने की आज बहुत जरूरत है। राखी का ये अनमोल रिश्ता महज कच्चे धागों की परंपरा भर नहीं है।  रक्षा बंधन की कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसी बहन का साया जब भी भाई को पुकारता था, तो दुनिया की हर ताकत से लड़ कर भी भाई उसे सुरक्षा देने दौड़ पड़ता था और उसकी राखी का मान रखता था। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के खिलाफ मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया।

कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबंधन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई। आज एक बार फिर भ्रातृत्व की सीमाओें को बहन फिर चुनौती दे रही है, क्योंकि उसके उम्र का हर पड़ाव असुरक्षित है, उसकी इज्जत एवं अस्मिता को बार-बार नोचा जा रहा है। उसे उच्च शिक्षा से वंचित रखा जाता है, क्योंकि आखिर उसे घर ही तो संभालना है। उसे नई सभ्यता और संस्कृति से अनजान रखा जाता है, ताकि वह भारतीय आदश्रे व सिद्धांतों से बगावत न कर बैठे। इन विपरीत हालातों में उसकी योग्यता, अधिकार, चिंतन और जीवन का हर सपना कसमसाते रहते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि राखी के इस परम पावन पर्व पर भाइयों को ईमानदारी से पुन: अपनी बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत की सुरक्षा और सम्मान करने की, कसम लेने की अहम जरूरत है। तभी ये राखी का पावन पर्व सार्थक बन पड़ेगा और भाई-बहन का प्यार धरती पर शात रह पायेगा।

यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। रक्षाबंधन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकता का सांस्कृतिक उपाय रहा है, लेकिन अब प्रेम रस में डूबे रंग-बिरंगे धागों की जगह चांदी और सोने की राखियों ने ली तो सामाजिक व्यवहार में कर्तव्यों को समझने के बजाय रिवाज को पूरा करने की नौबत आई। प्रेम और सद्भावना की जगह दिखावे ने ले ली।

अगर हम सोशल मीडिया पर दिखावे की जगह असल जिंदगी में इन रिश्तों को प्रेमरूपी जल से सींचा जाए तो हमेशा परिवार में मजबूती बनी रहेगी। राखी के त्योहार का मतलब केवल बहन की दूसरों से रक्षा करना ही नहीं होता है बल्कि उसके अधिकार और सपनों की रक्षा करना भी भाई का कर्तव्य होता है, लेकिन क्या सही मायनों में बहन की रक्षा हो पाती है। आज के समय में राखी के दायित्वों की रक्षा करना बेहद आवश्यक हो गया है। राखी के दिन केवल अपनी बहन की रक्षा का संकल्प मात्र नहीं लेना होगा बल्कि संपूर्ण नारी जगत के मान-सम्मान और अधिकारों की रक्षा का संकल्प लेना होगा। रक्षाबंधन पर्व पर हमें देश व धर्म की रक्षा का संकल्प भी लेना चाहिए।

प्रियंका सौरभ


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