उत्तर प्रदेश : फिर भी चुनौतियां बरकरार

Last Updated 23 Aug 2023 01:33:18 PM IST

देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से बेहद सचेत लोगों का भी राज्य रहा है। माना जाता है कि जिस इलाके की जनता राजनीतिक रूप से ज्यादा सचेत होती है, वहां विकास की धारा बहती रहती है।


उत्तर प्रदेश : फिर भी चुनौतियां बरकरार

माना तो यह भी जाता है कि प्रभावी राजनीति जिस इलाके का प्रतिनिधित्व करती है, उस इलाके में विकास की गति अपने आप तेज हो जाती है।

उत्तर प्रदेश प्रभावी राजनीति का भी केंद्र  रहा है। देश को उसने आठ प्रधानमंत्री दिए, जिनमें से छह की जन्मभूमि भी उत्तर प्रदेश की माटी रही है, इसके बावजूद उत्तर प्रदेश अपनी अराजक संस्कृति और भ्रष्टाचारी शासन व्यवस्था के लिए ज्यादा जाना जाता रहा है। लेकिन अब इसी उत्तर प्रदेश की छवि बदलने लगी है। इसका श्रेय निश्चित तौर पर मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोच को दिया जा सकता है। अस्सी के दशक में जब उत्तर प्रदेश के ही संसदीय नुमाइंदे राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब अर्थशास्त्री आशीष बोस ने बीमारू राज्य की परिकल्पना पेश की थी। बीमार यानी रुग्ण से प्रेरित यह बीमारू शब्द बुनियादी रूप से चार राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश-का प्रतिनिधित्व कर रहा था। इन्हीं में से तीन राज्य अलग होकर अब सात राज्य हो गए हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड के अपने मूल राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार से अलग होने के बावजूद जितनी तेज तरक्की की उम्मीद की जा रही थी, वैसी नजर नहीं आ रही है लेकिन उत्तर प्रदेश इनमें से अलग राह पर चलता दिख रहा है।

किसी भी राज्य में कारोबार और उद्योग तब पनपता है, जब वहां की कानून-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होती है, वहां बुनियादी ढांचा मसलन, सड़क, बिजली और पानी की सहूलियत होती है। इसके साथ ही मेडिकल यानी चिकित्सा सुविधा भी बेहतर होनी चाहिए। कुछ साल पहले तक उत्तर प्रदेश में बिजली को छोड़ कर सारे संसाधन थे, लेकिन कानून-व्यवस्था बेहद लचर थी। अराजक व्यक्तियों और समूहों के इशारे पर ही जैसे राज्य की कानून-व्यवस्था चलती थी। राजनीति एक तरह से उनकी पिछलग्गू थी। बिजली राज्य की राजधानी लखनऊ और कुछेक वीआईपी माने जाने वाले शहरों में ही होती थी। बाकी समूचा राज्य बिजली की आंख-मिचौनी देखता था। सरकारी दफ्तरों में बाबुओं की मनमानी चलती थी।

लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले कानून-व्यवस्था की हालत की तरफ ध्यान दिया। ऐसा नहीं कि योगी के प्रयासों से कानून-व्यवस्था के मामले में उत्तर प्रदेश स्वर्ग बन गया है लेकिन यह भी सच है कि कानून का भय अब अराजक समूहों में आया है। सड़कें दुरुस्त हुई हैं। हालांकि छोटे इलाकों और गांवों को जोड़ने वाली सड़कों पर अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बिजली की हालत भी ठीक हुई है। अब समूचे प्रदेश में बिजली है। इसका असर जमीनी स्तर पर दिखने लगा है। अब शेयर बाजार में उत्तर प्रदेश के निवेशक छा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में डीमैट अकाउंट का आंकड़ा 12 करोड़ हो चुका है।

तेइस करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में 12 करोड़ खातों के जरिए शेयर बाजारों में दस्तक देना मामूली बदलाव नहीं है। बीते अप्रैल तक के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में इक्विटी ट्रेंड की वजह से 1.26 लाख नये निवेश जुड़े हैं। दिलचस्प यह है कि यह आंकड़ा शेयर कारोबारियों की राजधानी मुंबई वाले महाराष्ट्र राज्य के मुकाबले ज्यादा हो चुका है। आंकड़ों पर ध्यान दें तो बीते अप्रैल माह में महाराष्ट्र में जहां 1.18 लाख नये निवेशक ही जुड़े, वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा करीब 1.26 लाख रहा। राज्य के बदलते बुनियादी ढांचे और बेहतर होती कानून-व्यवस्था का ही असर कहा जाएगा कि बीती फरवरी में हुए निवेशक सम्मेलन में उत्तर प्रदेश को 36 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए।

अब उत्तर प्रदेश का शैक्षिक भी परिदृश्य बदलने लगा है, जो इस साल की नीट की परीक्षाओं के नतीजे पर भी दिखा। इस बार इस परीक्षा में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के ही विद्यार्थी कामयाब हुए हैं, जिनकी संख्या करीब 1.39 लाख है, जबकि महाराष्ट्र के 1.31 लाख और राजस्थान के एक लाख से कुछ ही अधिक छात्र सफल रहे। योगी राज के छह सालों में राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में 60 लाख विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। राज्य की खेती-किसानी सदियों से मशहूर रही है। विशेषकर गन्ना की खेती के मामले में राज्य एक दौर में शीर्ष पर रहता था। हालांकि बाद के दिनों में हालात बदलते गए। लेकिन इस मामले में राज्य ने एक बार फिर बाजी मारी है।  इसकी वजह है कि राज्य में गन्ना खरीद नीतियों में बदलाव लाया जाना है, जिसका फायदा किसानों को मिल रहा है। यही वजह है कि राज्य देश के कुल गन्ने के 44.50 प्रतिशत की पैदावार कर रहा है। इस मामले में महाराष्ट्र 25.45 प्रतिशत पैदावार के चलते दूसरे नंबर पर जा पहुंचा है।

बुनियादी ढांचे के मामले में भी पिछले छह सालों में राज्य ने काफी कुछ हासिल किया है। राज्य में पांच एक्सप्रेस-वे बन चुके हैं। वहीं, 13 एक्सप्रेस-वे का निर्माण जारी है। 2017 में राज्य में सिर्फ  दो-लखनऊ और वाराणसी-हवाईअड्डे ही संचालित हो रहे थे, लेकिन आज राज्य के नौ शहर हवाई मार्ग से जुड़ गए हैं। राज्य सरकार की योजना के अनुसार मौजूदा 2023-24 के आखिर तक राज्य में पांच अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को चालू करने की तैयारी है। इसे योगी मॉडल की कामयाबी ही कह सकते हैं कि छह साल में राज्य की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो चुकी है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले पांच साल में भारत को पांच खरब डॉलर के साथ दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं योगी शासन में 2027 तक राज्य को एक खरब की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

इसका यह मतलब नहीं कि सब कुछ ठीक है। शासन व्यवस्था में लाल फीताशाही, गांवों में अबाध पानी और बिजली आपूर्ति आदि व्यवस्था को बनाए रखना अब भी बड़ी चुनौती है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी, इन चुनौतियों पर काबू पाया जाएगा। वैसे भी शासन की संस्कृति जल्द नहीं बदलती। उसे लगातार निगरानी और कड़ी व्यवस्था से ही बदला जा सकता है। हां, उत्तर प्रदेश की शासन व्यवस्था से बाकी राज्यों को भी सीखने की जरूरत है।

उमेश चतुर्वेदी


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