सामयिक : यूआन कूटनीति का मानवीय संकट

Last Updated 17 Jun 2023 01:34:34 PM IST

दुनिया की पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह ब्रिक्स में डॉलर कूटनीति के विकल्प को लेकर गहरा विमर्श हो रहा है।


सामयिक : यूआन कूटनीति का मानवीय संकट

चीन और रूस, अमेरिका के प्रभाव वाली डॉलर अर्थव्यवस्था से बाहर निकलने को बेचैन हैं। दरअसल, डॉलर के दबदबे से अमेरिका की वैिक बादशाहत जुड़ी है। इसी के दम पर अमेरिका किसी भी देश के खिलाफ एकतरफा प्रतिबंध लगाकर उसकी आर्थिक गतिविधियां रोक देता है और वि अर्थव्यवस्था से अलग-थलग कर देता है। डॉलर अमेरिका के लिए राजनीतिक, सामरिक  और आर्थिक हथियार है जिसकी मारक क्षमता का कोई विकल्प नहीं है।

रूस यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझते रूस की अगुवाई में अमेरिकी डॉलर के दबदबे को खत्म करने की कोशिशें कितनी कारगर होंगी, यह कहा तो नहीं जा सकता लेकिन जो संकेत दिखाई दे रहे हैं, उनसे परिवर्तन की आहट तो मिल ही रही है। यह भी दिलचस्प है कि डॉलर अर्थव्यवस्था पर भारत जैसे देश भी असमंजस में हैं, वहीं मलयेशिया, अज्रेटीना, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, ईरान से लेकर सऊदी अरब  तक परिवर्तन का मार्ग तलाश रहे हैं, और मुद्रा विनिमय के वैकल्पिक मागरे को अपना समर्थन भी दे रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उभर कर आ रहा है कि डॉलर का विकल्प क्या हो सकता  है। पाउंड, येन, रु पया या चीन की मुद्रा युआन।  रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ कहा है कि हम एशिया, अफ्रीका के अलावा लातिन अमेरिकी देशों से व्यापार में भुगतान चीनी मुद्रा युआन में करने के पक्ष में हैं।  युआन को वैिक स्तर पर अपनाने का पुतिन का सुझाव खारिज भी नहीं किया जा सकता। चीन के साथ व्यापार में रूस पहले से ही युआन का इस्तेमाल कर रहा है। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस और चीन का द्विपक्षीय व्यापार भी बढ़ा है। अज्रेटीना ने कहा है कि वह चीनी उत्पादों के लिए भुगतान डॉलर में नहीं, बल्कि युआन में ही करना चाहता है। चीन और ब्राजील के बीच भी समझौता हुआ है कि दोनों देश युआन में भुगतान करेंगे। दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश ब्राजील पिछले एक दशक से ज्यादा समय से चीन का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। ब्राजील ने  दावा किया है कि करीब पच्चीस देश युआन में पहले से ही भुगतान कर रहे हैं। ब्रिटिश रिटेलर टेस्को भी अपने चीनी आयातित सामानों के लिए युआन में भुगतान करना चाहता है। सऊदी अरब चीन से बातचीत कर रहा है कि वो तेल के लिए होने वाले पेमेंट के लिए चीन के युआन को भी ले सकता है। इसमें अमेरिका के कई सहयोगी देश भी शामिल हैं, जिन्हें युआन में व्यापार करने में परहेज नहीं है।

आंकड़े भी बदलाव को स्पष्ट कर रहे हैं, जिसके अनुसार दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में रिजर्व मुद्रा में डॉलर की हिस्सेदारी कम हुई है। गौरतलब है कि 1999 तक वैिक रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी 72 फीसदी थी जो अब घट कर 59 फीसदी पर आ गई है। हालांकि इसका एकमात्र कारण युआन नहीं है, बल्कि मलयेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देश भी हैं, जो स्थानीय मुद्रा में लेन-देन कर रहे हैं। वहीं भारतीय मुद्रा रु पया भी रूस और खाड़ी के कुछ देशों में स्वीकार हुआ है। इन सबके बीच युआन की मौजूदगी और उसकी स्वीकार्यता सबसे ज्यादा रही है। वास्तव में चीन का आर्थिक शक्ति के रूप में उभार समकालीन वि व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण घटना है। यह रूस से भी ज्यादा इसलिए प्रभावकारी है क्योंकि रूस ने सामरिक रूप से तो अमेरिका को चुनौती देने की कोशिश की थी लेकिन उसका डॉलर कूटनीति पर कोई नियंतण्रनहीं था। चीन अमेरिका के लिए बेहद योजनापूर्वक सामरिक और आर्थिक चुनौती पेश कर रहा है। चीन  द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और वृहत् स्तर की वन बेल्ट वन परियोजना से डॉलर कूटनीति को चुनौती दे रहा है।

दुनिया के लिए बड़ा बाजार बनने के बाद चीन ने अपनी मुद्रा युआन को स्थापित करने के प्रयास शुरु  किए। चीनी सरकार ने युआन में सीमा पार भुगतान की सुविधा के लिए  2015 में क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक  पेमेंट सिस्टम लॉन्च किया। इसके तीन साल बाद यानी 2018 में इसने निर्यातकों को युआन में तेल बेचने की अनुमति देने के लिए दुनिया का पहला युआन-डिनोमिनेटेड क्रूड ऑयल फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च किया। चीन इस दौर में दुनिया के सबसे बड़े लेनदार के रूप में भी उभरा है जिसमें सरकार और राज्य-नियंत्रित उद्यम दर्जनों विकासशील देशों को ऋण दे रहे हैं। चीन एक डिजिटल युआन को दुनिया की पहली केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं में से एक के रूप में भी विकसित कर रहा है। चीन के लिए युआन को मजबूत करने के गहरे अवसर भी हैं। वह दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है और जापान, जर्मनी, ब्राजील और कई अन्य देशों का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है। बाजार विनिमय दर के आधार पर अमेरिका के बाद इसकी दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और क्रय शक्ति के आधार पर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन अमेरिकन डॉलर वाली वैिक व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए अन्य देशों को स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है।

चीन ने विकल्प किए तौर पर एशियन मुद्रा कोष की स्थापना में दिलचस्पी दिखाई है, जिसमें उसे मलयेशिया जैसे कुछ देशों का समर्थन भी मिला है। चीन यह सुविधा ब्रिक्स देशों के बीच भी लागू  करने का इच्छा  जता रहा है जिसके अनुसार ब्रिक्स देश डॉलर के बदले युआन और अपनी मुद्रा में व्यापार कर सकते हैं। इन सबके बीच संकट यह भी है कि कई देशों को कर्ज के जाल में फंसाने के बाद अपनी मुद्रा को स्वीकार करने के लिए आक्रामक रूप से जोर दे रहा है। तमाम दिक्कतों के बाद भी डॉलर कूटनीति में मानवाधिकार, मानवीय मूल्य, समानता, लोकतंत्र और स्वतंत्रता की चिंता दिखाई पड़ती है जबकि युआन कूटनीति में अधिनायकवाद, साम्यवादी आक्रामकता और मानवाधिकारों की अनदेखी शामिल हैं। जाहिर है युआन कूटनीति म्यांमार की तरह ही दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र को खत्म कर राजनीतिक अस्थिरता बढ़ा सकती है। चीन को लेकर यह आशंका निर्मूल भी नहीं है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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