ग्लोबल साउथ में बढ़ेगी भारत की धाक

Last Updated 04 Jun 2023 01:02:00 PM IST

पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे (James Marape, Prime Minister of Papua New Guinea) ने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को ग्लोबल साउथ का लीडर बताया और उनके पांव छुए तो यह कोई सामान्य घटना नहीं थी।


ग्लोबल साउथ में बढ़ेगी भारत की धाक

इस घटना ने दिखाया कि भारत अपनी ग्लोबल हैसियत को मजबूत करने के लिए किस तरह छोटे और अंतरराष्ट्रीय चर्चा से आम तौर पर बाहर रहने वाले देशों को महत्त्व दे रहा है। ग्लोबल साउथ में कम विकसित या विकासशील देश आते हैं। ग्लोबल साउथ शब्द का पहली बार 1969 में अमेरिकी राजनीति विज्ञानी कार्ल ओल्स्बी ने इस्तेमाल किया था। ग्लोब का यह हिस्सा आज भारत के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सरोकारों को विस्तृत करने का नया सूत्र बन रहा है। इस लिहाज से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) की सूरीनाम और सर्बिया के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए आज से शुरू हो रही छह दिवसीय यात्रा का खासा महत्त्व है।

विदेश मंत्रालय के मुताबिक वह पहले चरण में चार से छह जून तक दक्षिण अमेरिकी देश सूरीनाम का दौरा करेंगी। सूरीनाम भारतीयों के आगमन की 150वीं वषर्गांठ मनाने की तैयारी में है। मुर्मू को इस समारोह के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। वह राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगी। कई सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का भ्रमण करेंगी। यात्रा के अंतिम चरण में वह यूरोपीय देश सर्बिया जाएंगी। पिछले साल जुलाई में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद अपनी पहली राजकीय विदेश यात्रा के रूप में इन दो देशों का चयन कई मायनों में खास माना जा रहा है। एक तरफ सूरीनाम की यात्रा से भारत के साथ उसके सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती मिलेगी, वहीं इसके बहाने ‘ग्लोबल साउथ’ को मजबूत करने के भारतीय प्रयास को बल मिलेगा। दूसरी तरफ, सर्बिया के साथ द्विपक्षीय वार्ता के सहारे भारत अपने आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश भी करेगा।

दरअसल, भारत और सूरीनाम का संबंध बेहद पुराना है। इतिहास के पन्नों में झाकें तो पाएंगे कि 19वीं शताब्दी के मध्य में उत्तर प्रदेश और बिहार से बड़ी संख्या में मजदूरों का सूरीनाम पलायन हुआ। रोजी-रोटी की तलाश में सात समंदर पार गए इन मजदूरों ने सूरीनाम को ही मिनी हिन्दुस्तान बना दिया। वहां की करीब 28 फीसद आबादी भारतीय-सरनामी हैं। पिछले 150 वर्षो के दौरान सूरीनाम में बसे भारतीय समुदाय के लोग सूरीनाम के विकास और इसकी संस्कृति एवं परंपरा को समृद्ध करने में योगदान दे रहे हैं। सूरीनाम में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र 1978 में खोला गया और हिंदी भाषा, कथक, योग और शास्त्रीय संगीत के माध्यम से सॉफ्ट-पावर कूटनीति की पहल की गई। भारत आज भी सूरीनाम हिन्दी परिषद के माध्यम से सूरीनाम को हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए सालाना अनुदान देता है। प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस छोटे से दक्षिण अमेरिकी देश के भारत के साथ मजबूत सांस्कृतिक, आर्थिक और सामरिक संबंध रहे हैं। भारत की कई कंपनियां सूरीनाम में निवेश कर रही हैं। कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, सोना, तेल, बॉक्साइट, काओलिन, सौर ऊर्जा, हाइड्रो, फार्मास्यूटिकल्स, आयुष/पारंपरिक चिकित्सा, नवीन प्रौद्योगिकी, पर्यटन और आईटी जैसे एमएसएमई के क्षेत्र में यहां निवेश की बड़ी संभावनाएं हैं। सामरिक और विदेश कूटनीति के मोर्चे पर भी सूरीनाम का भारत के लिए काफी महत्त्व है। उसने समय-समय पर वैश्विक मंचों पर भारत के हर कदम के साथ खड़े रहकर अपनी प्रतिबद्धता और दोस्ती दिखाई है।

राष्ट्रपति मुर्मू की सूरीनाम यात्रा भारत की दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ कूटनीतिक साझेदारी बढ़ाने की दिशा में भी मजबूत कदम है। इसके अलावा, राष्ट्रपति मुर्मू की सूरीनाम यात्रा न केवल ग्लोबल साउथ, बल्कि विशेष रूप से लैटिन अमेरिका तक भारत की पहुंच को स्थापित करेगी। इस यात्रा को भारत के इस क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के प्रधानमंत्री मोदी और उनकी विदेश नीतियों का हिस्सा माना जाना चाहिए। इसी कड़ी में अप्रैल में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने गुयाना, पनामा, कोलंबिया और डोमिनिकन गणराज्य के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए दौरा किया था, जहां विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने की दिशा में पहल की गई। इसके अतिरिक्त, 2022 और 2023 में विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने बोलीविया, चिली, अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास और पनामा जैसे लैटिन अमेरिकी देशों की यात्राएं भी की थीं। भारत की ओर से दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र की ये उच्चस्तरीय यात्राएं न केवल द्विपक्षीय, बल्कि बहुपक्षीय रूप से भी बेहतर अवसर प्रदान करती हैं। इस तरह की यात्राओं के माध्यम से भारत कैरेबियन समुदाय, मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली और अमेरिकी राज्यों के संगठन जैसी क्षेत्रीय संस्थाओं के साथ अपने सहयोग के आगे बढाने का भी प्रयास कर रहा है।

विदेश नीति के मोर्चे पर आज भी माना जाता है कि आप नितांत नया या 360 डिग्री पर घूमकर किसी देश के साथ अपने संबंध रातोंरात नहीं मजबूत कर सकते हैं। इस लिहाज से भारत और सर्बिया को लेकर यह तथ्य अहम है कि दोनों देशों के पास गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साझे मूल्यों पर आधारित लंबी विरासत रही है। भारत योग, आयुर्वेद और होम्योपैथी को बढ़ाने और वैश्विक पहचान दिलाने वाला मुख्य देश है, तो वहीं सर्बिया में इसे मुख्य चिकित्सा पद्धति से जोड़ा गया है। भारत की फिल्में और साहित्य भी सर्बिया से हमारे रिश्तों को मजबूत बना रही हैं। व्यापार, रक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, औषधि और कृषि के क्षेत्रों में भी हमारे द्विपक्षीय संबंध मधुर हैं। राष्ट्रपति की सर्बिया यात्रा के दौरान भारत के साथ उसके आर्थिक संबंधों और नये निवेशों को लेकर चर्चा होने की संभावना है। मुर्मू सर्बिया में एक व्यावसायिक कार्यक्रम को संबोधित करेंगी। कार्यक्रम में तीन प्रमुख भारतीय व्यापार संघ-एसोचैम, फिक्की और सीआईआई- भी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। साफ है कि भारत सर्बिया के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को विस्तार देने की दिशा में गंभीरता के साथ पहल कर रहा है।

देखना दिलचस्प है कि राष्ट्रपति मुर्मू की दो अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की पहली राजकीय यात्रा भारत के लिए क्या परिणाम लाती है। एक ओर ग्लोबल साउथ के साथ अपने सांस्कृतिक जुड़ाव और दूसरी तरफ ग्लोबल नॉर्थ के साथ भारत के आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा करने में इस यात्रा का क्या योगदान रहता है। भारत के वैिक मंच पर खुद को मजबूत करने के साथ वर्तमान राष्ट्रपति की अब तक की पहली राजकीय यात्रा के मद्देनजर इसका महत्त्व काफी बड़ा है।

प्रेम प्रकाश


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment