महेंद्र सिंह धोनी : किसी ग्रंथ से कम नहीं रणनीति
इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के 16वें सत्र का विजेता घोषित हो चुका है। गुजरात टाइटंस (Gujarat Titans) को हराकर चेन्नई सुपर किंग्स (Chennai Super Kings) 5वीं बार लीग चैंपियन बनी है।
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फाइनल मुकाबले में जीत का सेहरा बल्लेबाज डेवन कॉन्वे और ऋतुराज गायकवाड़ (Ruturaj Gaikwad) के साथ अंतिम दो गेंदों पर 10 रन बनाने वाले रविंद्र जड़ेजा के सिर बंधा है। हालांकि, इस मुकाबले में शून्य पर आउट होने वाले चेन्नई के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) की चर्चा इन खिलाड़ियों से अधिक है। हो भी क्यों ना, लीग के इस सत्र में नजारा ही अलग था। धोनी जहां भी गए, पूरा स्टेडियम पीली जर्सी से पटा नजर आया। इसने साबित किया कि इस विकेटकीपर बल्लेबाज से अधिक लोकप्रियता शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी की रही हो।
विराट कोहली (Virat Kohli) और रोहित शर्मा (Rohit Sharma) जैसे दमदार खिलाड़ी भी 41 वर्षीय इस क्रिकेटर के सामने फीके नजर आए। धोनी की इस लोकप्रियता का कारण बल्लेबाजी के साथ उनकी चतुर और रणनीतिक कप्तानी रही है। वे मैदान पर भले ही बेवजह की आक्रामकता नहीं दिखाते लेकिन उनकी रणनीति पूरी तरह से आक्रामक होती है। उनकी कैप्टन कूल की छवि के प्रशंसक दीवाने हैं। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में 1983 महज एक साल नहीं है। देश में पहले भी कई बड़े क्रिकेटर थे, लेकिन 25 जून, 1983 को लॉर्डस के मैदान पर जो हुआ, वो ऐतिहासिक था। आज 1983 की जीत की चर्चा इसलिए मौजूं है, क्योंकि इसके बाद करीब तीन दशक तक हमारे हाथ खाली रहे।
इस बीच, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसे दिग्गजों ने टीम की कमान संभाली, लेकिन हम वि कप ट्रॉफी नहीं जीत पाए। 2004 में विकेटकीपर के तौर पर टीम में शामिल हुए धोनी ने 2007 टी-20 वि कप, 2011 वनडे वि कप और चैंपियंस ट्रॉफी के रूप में हमारे सपने को पूरा किया। विकेट के पीछे खड़े होकर भी भारतीय टीम को दुनिया की शीर्ष टीम बनाया। आंकड़े बताते हैं कि हम पहली बार इस स्थिति में पहुंचे कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड जैसी टीमों को आंख दिखा सकें। यह मान सिर्फ खिलाड़ियों के बेहतर प्रदशर्न से नहीं, बल्कि माही जैसे सफल रणनीतिक कप्तान की बदौलत हासिल हुआ।
धोनी की कप्तानी में भारत ने कई कीर्तिमान रचे। उनके संन्यास के बाद टीम की धार धीरे-धीरे कम होने लगी। कोहली जैसे शानदार बल्लेबाज को कप्तान बनाया गया, लेकिन नतीजा 2007 से 2014 तक के स्तर तक नहीं पहुंचा। बाद में टीम की कमान रोहित शर्मा को सौंपी गई। पर वो भी धोनी जितने सफल नहीं रहे हैं। अब तो क्रिकेट के जानकारों और विदेशी दिग्गजों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि धोनी जैसा सफल रणनीति वाला कप्तान मिलना भारत के लिए फिलहाल मुश्किल ही है। दरअसल, पहले यह दबाव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक सीमित था। बीते कुछ वर्षो में इसने इंडियन प्रीमियर लीग में टीम की कप्तानी करने वाले खिलाड़ियों को भी प्रभावित किया है। बात चाहे रॉयल चैलेंजर्स की कप्तानी करने वाले विराट की हो या मुंबई की कमान संभालने वाले रोहित की। इन युवाओं के सामने आईपीएल में भी चेन्नई सुपर किंग्स की अगुआई करने वाले 41 साल के धोनी से पार पाने की चुनौती रही है। गौर करें, तो पाएंगे कि धोनी की आईपीएल टीम में कोई बहुत बड़ा नाम नहीं है, न ही बहुत चमत्कारी खिलाड़ी हैं, फिर भी यह टीम 5वीं बार ट्रॉफी जीतने में सफल रही। यह किसी कप्तान के नजरिये से सीखने वाली बात है कि कैसे बिना हो-हल्ला किए कमजोर टीम साथियों से भी सर्वश्रेठ हासिल किया जा सकता है।
क्रिकेट के दिग्गज भी मानते हैं कि धोनी सिर्फ बल्लेबाजी या विकेटकीपिंग की वजह से शीर्ष कप्तान नहीं बने, उनके सटीक फैसलों ने उन्हें महान कप्तान की श्रेणी में खड़ा किया। उनमें मुश्किल परिस्थितियों में भी खुद को शांत रखने की गजब की क्षमता है। कठिन परिस्थितियों में उनके फैसलों ने टीम को कई बार जीत की दहलीज तक पहुंचाया। आज धोनी के संन्यास की चर्चा हर किसी की जुबान पर है। इसके मूल में उनकी उम्र हो सकती है, लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि आज भी इस खिलाड़ी की तेजी और फुर्ती में कोई कमी नहीं आई है। पलक झपकते ही वह बल्लेबाज की गिल्लियां उड़ा देते हैं। कप्तान के तौर पर भी उनकी रणनीति बेहद कारगर नजर आती है। ऐसे में किसी के लिए भी धोनी के संन्यास की खबरों पर मुहर लगा पाना मुश्किल होगा। हालांकि, इस बीच भारत के युवा खिलाड़ियों और कप्तानों को धोनी की मैदानी रणनीति सीखने के प्रयास शुरू कर देने चाहिए। धोनी आज भी टीम को खराब स्थिति से आसानी से बाहर निकालने के लिए जाने जाते हैं। इस खिलाड़ी में माद्दा है कि विकेट के पीछे खड़े होकर सामने वाली टीम के जबड़े से जीत छीन ले। ऐसे में भारत के युवाओं और फिलहाल नेतृत्व संभाल रहे कप्तानों के लिए उनकी रणनीति आज भी किसी ग्रंथ से कम नहीं है।
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