वैश्विक कृषि : खेती पर काबिज होने का खेल

Last Updated 01 Jun 2023 12:35:44 PM IST

हाल के वर्षो में किसानों के संकट का एक बड़ा कारण है कि उनकी आत्मनिर्भरता और स्वावलंबिता में भारी गिरावट आई है।


वे कृषि की नई तकनीकों को अपनाने के साथ रासायनिक कीटनाशक, खरपतवारनाशक, रासायनिक खाद, बाहरी बीजों और उपकरणों पर बहुत निर्भर हो गए हैं।

जहां जमीनी स्तर पर किसान इन अनुभवों से गुजर रहे थे, वहां बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्तर पर ऐसे प्रयास भी चल रहे थे कि किसानों पर अपना नियंत्रण और बढ़ा लिया जाए। इस नियंत्रण को बढ़ाने का प्रमुख साधन बीज को बनाया गया क्योंकि बीज पर नियंत्रण होने से पूरी खेती-किसानी पर नियंत्रण हो सकता है। इसलिए बड़ी कंपनियों ने बीज क्षेत्र में पैर फैलाने आरंभ किए। जो बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आई, वे पहले से कृषि रसायनों विशेषकर कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों आदि के उत्पादन में लगी हुई थीं। इस तरह बीज उद्योग और कृषि रसायन उद्योग एक ही तरह की कंपनी के हाथ में केंद्रीकृत होने लगे। इसी समय के आसपास जेनेटिक इंजीनियरिंग में कुछ महत्त्वपूर्ण अनुसंधान हो रहे थे और वैज्ञानिक विशिष्ट गुणों वाले जीन को एक जीव से दूसरे जीव में प्रवेश दिला कर जीवन के विभिन्न रूपों को, उनके गुणों को बदलने की क्षमता प्राप्त कर रहे थे। जेनेटिक इंजीनियरिंग से प्राप्त फसलों को संक्षेप में जीएम (जेनेटिकली मोडीफाइड) फसल कहते हैं।

सामान्यत: एक ही पौधे की विभिन्न किस्मों से नई किस्में तैयार की जाती रही हैं जैसे गेहूं की दो किस्मों से गेहूं की एक नई किस्म तैयार कर ली जाए पर जेनेटिक इंजीनियरिंग में किसी भी पौधे या जंतु के जीन या आनुवांशिक गुण का प्रवेश किसी अन्य पौधे या जीव में करवाया जाता है जैसे आलू के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या सुअर के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या मछली के जीन का प्रवेश सोयाबीन में करवाना या मनुष्य के जीन का प्रवेश सुअर में करवाना आदि। जीएम फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि ये फसलें स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा यह असर जेनेटिक प्रदूषण के माध्यम से अन्य सामान्य फसलों और पौधों में फैल सकता है। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता। इसलिए जीएम फसलों और गैर-जीएम फसलों का सहअस्तित्व नहीं हो सकता।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएम फसलों की सुरक्षा या सेफ्टी प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं, जिनसे इन फसलों की सेफ्टी या सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य और पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती, जिसे फिर ठीक नहीं दिया जा सकता। जीएम फसलों को अब दृढ़ता से रिजेक्ट कर देना चाहिए, अस्वीकृत कर देना चाहिए। जेनेटिक प्रदूषण का मूल चरित्र ही ऐसा है। वायु और जल प्रदूषण की गंभीरता पता चलने पर इनके कारणों का पता लगाकर उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं, पर जेनेटिक प्रदूषण जो पर्यावरण में चला गया हो, वह हमारे नियंतण्रसे बाहर हो जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रचार कई बार इस तरह किया जाता है कि किसी विशिष्ट गुण वाले जीन का ठीक-ठीक पता लगा लिया गया है और इसे दूसरे जीव में पंहुचा कर उसमें वही गुण उत्पन्न किया जा सकता है किंतु हकीकत इससे अलग और कहीं अधिक पेचीदी है।

कोई भी जीन केवल अपने स्तर पर या अलग से कार्य नहीं करता अपितु बहुत से जीनों के एक जटिल समूह के एक हिस्से के रूप में कार्य करता है। इन असंख्य अन्य जीनों से मिलकर और उनसे निर्भरता में ही जीन के कार्य को देखना-समझना चाहिए, अलगाव में नहीं। एक ही जीन का अलग-अलग जीवों में काफी भिन्न असर होगा क्योंकि उनमें जो अन्य जीन हैं, वे भिन्न हैं। विशेषकर जब एक जीव के जीन को काफी अलग तरह के जीव में पंहुचाया जाए तो, जैसे मनुष्य के जीन को सुअर में, तो इसके काफी नये और अप्रत्याशित परिणाम होने की संभावना है।  इतना ही नहीं, जीनों के समूह का किसी जीव की अन्य शारीरिक रचना और बाहरी पर्यावरण से भी संबंध है। जिन जीवों में वैज्ञानिक विशेष जीन पंहुचाना चाह रहे हैं, उनसे अलग जीवों में भी इन जीनों के पंहुचने की संभावना रहती है, जिसके अनेक अप्रत्याशित परिणाम और खतरे हो सकते हैं।

बाहरी पर्यावरण जीन के असर को बदल सकता है और जीन बाहरी पर्यावरण को इस तरह प्रभावित कर सकता है, जिसकी संभावना जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग करने वालों को नहीं थी। एक जीव के जीन दूसरे जीव में पहुंचाने के लिए वैज्ञानिक जिन तरीकों का उपयोग करते हैं, उनसे अप्रत्याशित परिणामों और खतरों की संभावना और बढ़ जाती है। जेनेटिक इंजीनियरिंग के अधिकांश महत्त्वपूर्ण उत्पादों के पेटेंट बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास हैं और वे अपने मुनाफे को अधिकतम करने के लिए इस तकनीक का जैसा उपयोग करती हैं, उससे इस तकनीक के खतरे और बढ़ जाते हैं। कृषि और खाद्य क्षेत्र में जेनेटिक इंजीनियरिंग की टैक्नोल्ॉजी मात्र लगभग छह-सात बहुराष्ट्रीय कंपनियों (और उनकी सहयोगी या उप-कंपनियों) के हाथ में केंद्रित हैं। इन कंपनियों का मूल आधार पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका में है।

कुछ समय पहले देश के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर पुष्प भार्गव का निधन हुआ है। वे सेंटर फॉर सेलयुलर एंड मॉलीक्यूलर बॉयलाजी, हैदराबाद के संस्थापक निदेशक और नेशनल नॉलेज कमीशन के उपाध्यक्ष रहे। जीएम फसलों के विरुद्ध उनकी चेतावनी महत्त्वपूर्ण है। प्राय: जीएम फसलों के समर्थक कहते हैं कि वैज्ञानिकों का अधिक समर्थन जीएम फसलों को मिला है पर प्रो. भार्गव ने इस विषय पर समस्त अनुसंधान का आकलन करके स्पष्ट बता दिया कि अधिकतम निष्पक्ष वैज्ञानिकों ने जीएम फसलों का विरोध ही किया है। उन्होंने यह भी बताया कि जिन वैज्ञानिकों ने समर्थन दिया है, उनमें से अनेक किसी न किसी स्तर पर जीएम बीज बेचने वाली कंपनियों या इस तरह के निहित स्वाथरे से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं, या प्रभावित रहे हैं। आज जब शक्तिशाली स्वाथरे द्वारा जीएम खाद्य फसलों को भारत में स्वीकृति दिलवाने के प्रयास अपने चरम पर हैं, इस समय बहुत जरूरी है कि इस विषय पर तथ्य और शोध आधारित चेतावनियों पर ध्यान दिया जाए।

भारत डोगरा


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