विश्लेषण : सवाल सनातन के अस्तित्व का
वर्ष 2024 का चुनाव सामने है। आरएसएस और भाजपा हिन्दुत्व के एजेंडा पर जोर-शोर से काम कर रहे हैं। पहले ‘ताशकंद फाइल्स’ (Tashkent Files) फिर ‘कश्मीर फाइल्स’ (Kashmir Files) और अब ‘द केरल स्टोरी’ (The Kerala Story) जैसी फिल्में योजनाबद्ध तरीके से जारी की जा रही हैं, और प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों तक ने इन फिल्मों को प्रचारित करने का जिम्मा ले लिया है।
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इन फिल्मों पर मनोरंजन कर से मुक्ति और प्रायोजित शो करवा कर दशर्कों को ये फिल्में दिखलाई जा रही हैं, जिसका एकमात्र लक्ष्य वोटों का ध्रुवीकरण करना है। आम भावुक दर्शक इन फिल्मों की पटकथा से निश्चित रूप से प्रभावित हो रहे हैं। ऐसी अभी कई फिल्में 2024 तक और जारी होंगी। साथ ही, नया संसद भवन (New Parliament House) और अयोध्या में श्रीराम मंदिर (Shri Ram Temple in Ayodhya) बन कर तैयार होगा, जिसे बहुत आक्रामक मार्केटिंग नीति के तहत पूरी तरह भुनाया जाएगा।
बहुत से लोग देश-विदेश से संदेश भेज कर मुझसे मेरी राय पूछ रहे हैं। मैंने सोशल मीडिया पर उत्तर दिया कि, इसमें जो दिखाया है वो सत्य है। पर 32,000 लड़कियां बता कर प्रचार खूब किया गय। जब प्रमाण मांगे गए तो केवल 3 केस सामने आए। उनमें भी हिन्दू लड़की एक ही निकली। महिलाओं के साथ ऐसे अत्याचार सदियों से हर देश में हर धर्म के लोग करते आए हैं। बीजेपी के मंत्री या नेताओं के भी व्यभिचार, बलात्कार और हत्याओं के मामले प्राय: सामने आते रहते हैं। उन पर कोई द रेप स्टोरी क्यों नहीं बनती? उन खबरों को क्यों दबा दिया जाता है? इसी तरह हर राजनीतिक दल के आपराधिक छवि वाले नेता, इस तरह के अपराधों में लिप्त रहते हैं।
पर जो फिल्में आजकल बनवाई जा रही हैं, वे एकतरफा हैं, भड़काऊ हैं, और अपने वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए राजनैतिक उद्देश्य से बनवाई गई हैं। इनमें विषय संबंधी सभी तथ्यों को नहीं दिखाया जाता। जैसे कश्मीर फाइल्स में यह नहीं दिखाया गया कि कश्मीर के आतंकवादियों ने आज तक कितने मुसलमानों की भी उसी तरह हत्याएं की हैं, और आज भी कर रहे हैं। मेरी उपरोक्त टिप्पणी पर अधिकतर प्रतिक्रिया समर्थन में आई। पर कुछ मशहूर लोगों, जो आजकल भाजपा के साथ खड़े हैं, ने मुझे याद दिलाया कि महिलाओं के प्रति अत्याचार के मामलों की कट्टरपंथी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों द्वारा किए जा रहे सुनियोजित अभियान से तुलना नहीं की जा सकती।
उनका यह भी कहना है कि गैर-भाजपाई सरकारों में मुसलमानों की आक्रामकता बढ़ जाती है, और हिन्दुओं पर अत्याचार भी बढ़ जाते हैं। भाजपा की आईटी सेल 13 तारीख से हिन्दुओं को कांग्रेस सरकार से डराने में जुट गई है। ऐसी पोस्ट आ रही हैं, ‘कर्नाटक में कांग्रेस के जीतने पर हिन्दुओं के ऊपर हमले भी शुरू हो गए हैं क्योंकि जिहादियों को पता है कि अब इनकी सरकार है। इसलिए अब इन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। फ्री के चक्कर में हिन्दुओं ने जिहादियों की सरकार को जिता दिया। अब आने वाले पूरे 5 वर्षो तक हिन्दुओं के साथ यही सब होने वाला है; पलायन, लव जिहाद, भू जिहाद, धर्मातरण, जैसी गंभीर समस्याओं का हिन्दुओं को सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस को जिता कर हिन्दुओं ने अपनी आजादी और शांति का अवसर खो दिया है। अब भुगतो हिन्दुओ’।
BJP के आईटी सेल (IT Cell) का यह एजेंडा बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया जा रहा है। पर ऐसा नहीं है कि इन आरोपों में तथ्य नहीं हैं। चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक या जातिगत तुष्टिकरण करने में कोई भी राजनैतिक दल पीछे नहीं रहता। BJP भी नहीं, और उसी का परिणाम है कि चुनाव जीतने के बाद सत्तारूढ़ दल को अनेक विवादास्पद मामलों में या तो अपने आंख और कान बंद करने पड़ते हैं, या समझौते करने पड़ते हैं, जिसका भरपूर प्रचार करके विरोधी दल फायदा उठाते हैं। जो लोग अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने और भारत की सनातन हिन्दू संस्कृति को बचाने के लिए केवल BJP और RSS को ही सक्षम विकल्प मानते हैं, उनसे मेरा कोई बहुत मतभेद नहीं रहा है। पर विगत वर्षो के अनुभव ने, अनेक घटनाओं और कारणों से भाजपा तथा संघ की क्षमता के बारे में संदेह पैदा कर दिए हैं।
ये दोनों संगठन आज तक इस बात को परिभाषित नहीं कर पाए हैं कि हिन्दू राष्ट्र से इनका आशय क्या है? ये कैसा हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं? जिस सनातन संस्कृति का हम सब हिन्दू दंभ भरते हैं, उसके किसी भी सिद्धांत, शास्त्र, परंपराओं और आस्थाओं से संघ और भाजपा का दूर-दूर तक नाता नहीं है।
वैदिक शास्त्रों की उपेक्षा, प्राण प्रतिष्ठित देव विग्रहों और देवालयों पर बुलडोजर चलाना, गौ मांस के व्यापार को प्रोत्साहित करना, सनातन धर्म के मूलाधार-चारों शंकराचायरे की उपेक्षा करना, वेतन दे कर संन्यासी बनाना, करोड़ों रु पये के चढ़ावे वाले मंदिरों पर अपने ट्रस्ट बना कर कब्जे करना और पारंपरिक सेवायतों को बेदखल करना, सनातन धर्म और तीथरे की निष्ठा से सेवा करने वालों को अपमानित और हतोत्साहित करना क्या उचित है? इन सब धर्म-विरोधी कृत्यों को करने वाले क्या तालिबानियों से भिन्न आचरण कर रहे हैं? फिर हम जैसे आम सनातनधर्मिंयों से अपेक्षा क्यों की जाती है कि हम किसी दल या संगठन की राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा पूरा करने के लिए अपने आंख-कान बंद करके भेड़ों की तरह पीछे-पीछे चलें?
चालीस बरस पहले जब मैंने पत्रकारिता शुरू की थी तब भाजपा के दो ही बड़े नेता होते थे; अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) और लालकृष्ण आडवाणी (Lalkrishna Advani)। तब आरएसएस को त्यागी, समाजसेवी और तपस्वियों का संगठन माना जाता था। बाद में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जब भाजपा की पकड़ हिन्दू मतदाताओं पर बढ़ी तो नारा दिया गया, ‘पार्टी विद् अ डिफरेंस’ यानी मेरी कमीज बाकी दलों की कमीज से ज्यादा साफ है। पिछले दशक में हर वो राजनेता जिसके खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए, वो सब आज उसके साथ मिल कर सरकार चला रहे हैं, या भाजपा में शामिल हो गए हैं। इसलिए महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अपराधियों को राजनैतिक संरक्षण, कार्यपण्रालियों में पारदर्शिता का अभाव और जनता के प्रति जवाबदेही से बच कर शासन चलाने के कारण सत्तारूढ़ दल को विपक्ष की जो आलोचना झेलनी पड़ती है, उन विषयों को अगर हम न छुएं तो भी सनातन धर्म को लेकर जो प्रश्न यहां उठाए हैं, उनका तो उत्तर मिलना चाहिए।
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