G7 Hiroshima Summit : हिरोशिमा से नहीं सीखा सबक
दुनिया में परमाणु त्रासदी के शिकार हिरोशिमा (Hiroshima victim of nuclear tragedy) नगर में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन (G7 summit) में शांति के बजाय संघर्ष जारी रखने का संदेश दिया गया।
![]() हिरोशिमा से नहीं सीखा सबक |
अमेरिका की अगुवाई वाले देशों ने यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) का समाधान वार्ता और कूटनीति के जरिये करने के बजाय रूस की नकेल कसने पर ही जोर दिया। सम्मेलन में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की (President of Ukraine Zelensky) भी अप्रत्याशित रूप से शामिल हुए। उनकी मौजूदगी से इस बात की पुष्टि होती है कि अमेरिका (America) और नाटो (NATO) देश युद्ध के मैदान में इस मामले को सुलझाना चाहते हैं। G-7 ने हिरोशिमा (Hiroshima) को ‘शांति का प्रतीक’ बताया है। विडंबना ही है कि हिरोशिमा में ही एक ऐसे संघर्ष को जारी रखने पर जोर दिया गया जिसकी परिणति परमाणु युद्ध में हो सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (US President Joe Biden) ने पहले सिडनी (Australia) में क्वाड शिखर वार्ता (Quad Summit) में भाग न लेने की घोषणा की। अब इस आयोजन की औपचारिकता हिरोशिमा में ही निभाई जा रही है। जाहिर है कि अब अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र (Indo-Pacific region) में चीन (China) की चुनौती को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दे रहा है। वह पहले रूस का काम तमाम करने पर आमादा है। जी-7 शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य में रूस के साथ सहयोग करने वाले ‘तीसरे देशों’ को भी साफ चेतावनी दी गई।
जाहिर है कि उनका निशाना चीन और भारत पर है। रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की नई सूची में अब हीरा उद्योग को भी शामिल किया गया है। रूस (Russia) हीरों का निर्यात करने वाला प्रमुख देश है। हीरों को तराशने और पॉलिश करने का प्रमुख क्षेत्र सूरत (गुजरात) है। लाखों कारीगर इस उद्योग के साथ जुड़े हैं। प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य के लोगों पर प्रतिबंधों की मार उनके लिए विशेष चिंता की बात होगी। यूक्रेन युद्ध के संबंध में भारत की संतुलन वाली विदेश नीति की असली परीक्षा अब होनी है। अमेरिका और पश्चिमी देश अब भारत को और रियायत देने के मूड में नहीं हैं। धीरे-धीरे रूस के साथ व्यापार करने वाली भारतीय कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं पर शिंकजा कसा जाएगा। भले ही उन पर सीधे रूप से प्रतिबंध न लगाया जाए लेकिन उनके लिए रूस के साथ कारोबार करना मुश्किल बनाया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) , अमेरिका और पश्चिमी देशों के हथकंडों का मुकाबला ब्रिक्स देशों के साथ साझा रणनीति बनाकर कर सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने वाली ब्रिक्स शिखर वार्ता में एक साझा करेंसी तैयार करने पर सहमति बन सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका के प्रभुत्व को सीधे चुनौती होगी। हिरोशिमा में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी मुलाकात की। जेलेंस्की भारत के ‘रूस समर्थक’ के रवैये से खिन्न हैं। इस मुलाकात के दौरान जेलेंस्की ने मोदी के वार्ता और कूटनीति के सुझाव पर शायद ही कोई बयान दिया हो। अमेरिका और नाटो के हथियारों के बलबूते जेलेंस्की रूस को हराने का मंसूबा रखते हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश जेलेंस्की को संयमित रवैया अपनाने की सलाह देने की बजाय उकसा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने मेहमान देश के रूप में शिखर सम्मेलन के सत्र को संबोधित करते हुए दुनिया में खाद्य सुरक्षा और उर्वरक उपलब्धता जैसी समस्याओं का जिक्र किया। कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन के संबंध में पश्चिमी देशों के असहयोगात्मक रवैये की उन्होंने आलोचना की। वास्तव में मोदी ने सम्मेलन में ग्लोबल साउथ की आवाज बुलंद करने का कर्त्तव्य निभाया, लेकिन दुनिया में हर कीमत पर अपना प्रभुत्व जमाये रखने पर आमादा पश्चिमी देशों को लोगों के आम जीवन से जुड़ी समस्याओं के बारे में कोई सरोकार नहीं है।
अगले कुछ महीनों में तीन प्रमुख शिखर सम्मेलनों में भारत को केंद्रीय भूमिका निभानी है। उसे शंघाई सहयोग संगठन और जी-20 शिखर सम्मेलनों की मेजबानी करनी है। इसी दौरान यूक्रेन में युद्ध के हालात बिगड़ सकते हैं। यूक्रेन का संभावित जवाबी हमला कुछ ही दिनों में हो सकता है। पश्चिमी देश यूक्रेन को अत्याधुनिक हथियार मुहैया करा सकते हैं। अभी तक रूस ने सीमित स्तर पर सैन्य अभियान चलाया है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में रूस पूर्ण युद्ध की घोषणा कर दे। रूस और नाटो देशों के बीच सीधे सैन्य संघर्ष से इनकार नहीं किया जा सकता। यह दुर्भाग्य है कि हिरोशिमा में भी शांति के बजाय विनाश की इबारत लिखी गई।
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