विश्लेषण : विदेश नीति में विरोधाभास!

Last Updated 09 May 2023 01:42:42 PM IST

शांति संरक्षण कूटनीति का उद्देश्य है, जबकि युद्ध कूटनीति का अंत। यदि कोई राष्ट्र कूटनीति को प्रयोग में नहीं लाना चाहता तो राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि के लिए उसके पास युद्ध के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचता।


विश्लेषण : विदेश नीति में विरोधाभास!

पाकिस्तान (Pakistan) की भारत के प्रति युद्धक नीति कई दशकों चली आ रही है, वहीं एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत ने नियंत्रण और संतुलन की नीति पर चलते हुए बातचीत की संभावनाओं को भी जीवित रखा। इसका फायदा भारत को वैिक मंचों पर मिलता रहा और भारत की छवि जिम्मेदार और शांतिप्रिय देश की बनी रही।  हालांकि वर्तमान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की परम्परागत नीति को पीछे छोड़ते हुए ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की युद्ध नीति को व्यवहार और नीतिगत तौर पर स्वीकार कर लिया है। विदेश मंत्री विभिन्न वैिक मंचों पर पाकिस्तान को लेकर बेहद आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं। यह ठीक वैसा ही है  जिस नीति पर पाकिस्तान के शीर्ष राजनियक चलते रहे हैं।  

कूटनीतिक भाषा में इसे ‘यथास्थितिवाद की विचारधारा’ कहते हैं, जिसमें अपने व्यवहार को किसी विचारधारा के आवरण में नहीं छिपाया जाता। सैन्य शासन से अभिशप्त पाकिस्तान और उदार लोकतंत्र भारत की वैदेशिक नीति में किसी भी प्रकार की समानता, विचारधारा की दृष्टि से अप्रत्याशित होकर भारत की वैिक छवि के लिए चुनौतीपूर्ण दिखाई पड़ती है। वहीं पाकिस्तान के मुकाबले चीन से भारत के संबंध कहीं ज्यादा जटिल और चुनौतीपूर्ण होने के बाद भी उससे द्विपक्षीय वार्ताओं का दौर निर्बाध चलना भारत की विदेश नीति में अस्पष्टता और विरोधाभास को दिखाता है। एससीओ की बैठक अपने उद्देश्यों से ज्यादा भारत के विदेश मंत्री और पाकिस्तान के  विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के बयान और आपसी व्यवहार को लेकर चर्चा में है। इससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों का ठहराव खत्म होने की जो उम्मीद जताई जा रही थी, वह असफल साबित हुई।

भुट्टो ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की नीति को जायज ठहराने के लिए भारत यात्रा का इस्तेमाल किया, वहीं भारतीय विदेश मंत्री ने पाक विदेश मंत्री को आतंक की इंडस्ट्री का प्रवक्ता और उसे बढ़ावा देने वाला कहा। पाकिस्तान को लेकर भारत की सख्त नीति का समर्थन किया जा सकता है, लेकिन चीन से लेकर भारत की नीति इसका दूसरा रूप प्रस्तुत करती है। चीन भारत से लगने वाली सीमा को वैधानिक नहीं मानता वहीं वह भारत की संप्रभुता को निशाना बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। जी-20 की बैठक का भारत में श्रीनगर में करने का ऐलान किया तो पाकिस्तान के साथ चीन ने इस पर आपत्ति जताई। चीन ने अरुणाचल प्रदेश में हुई जी-20 की बैठक के जवाब में इस राज्य की 11 जगहों के नए नाम रख दिए। चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना अवैधानिक दावा जताता है। अरु णाचल के तवांग में दोनों देशों के सैनिकों के बीच 9 दिसम्बर 2022 को झड़प हुई थी।  भारत और चीन सीमा पर वर्तमान हालात बेहद तनावपूर्ण है और ऐसा कई दशकों की शांति के बाद हो रहा है। 1975 के बाद से दोनों देशों के सैनिकों के बीच 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में  खूनी झड़प हुई थी, इसमें बीस भारतीय सैनिक  शहीद हुए थे। इसके बाद चीन ने पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील में अपनी गश्ती नौकाओं की तैनाती बढ़ाई।

सीमा  पर तनाव चरम पर होने के बाद भी भारत और चीन ने सीमा समस्या के समाधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए अपना-अपना विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया है तथा इनके बीच  कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं।  चीनी रक्षा मंत्री ली शांगफू शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत  पहुंचे। ली शांगफू को चीनी सेना के आधुनिकीकरण और उन्नत सैन्य तकनीकों को विकसित करने के चीन की कोशिशों से जुड़ा एक प्रमुख व्यक्ति माना जाता है। 2018 में अमेरिका ने उन्हें और उनके विभाग पर कथित तौर पर रूस से उन्नत सैन्य उपकरण खरीदने के कारण प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद भी उन्हें भारत आने की अनुमति दे दी गई। ली शांगफू और भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच  बातचीत हुई, जिससे यह संदेश दिया गया कि बीजिंग और नई दिल्ली दोनों ही  हर प्रकार के संकट के समाधान के लिए सैन्य और राजनियक चैनल खुले रखने को तैयार हैं। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष किन गैंग के साथ बैठक की। यह चर्चा लंबित मुद्दों को हल करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और शांति सुनिश्चित करने पर केंद्रित थी। एससीओ को लेकर चीन की आर्थिक और सामरिक महत्त्वाकांक्षाएं हैं।

चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना से दुनिया भर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है और भारत को छोड़कर एससीओ के बाकि सभी सदस्य चीन की इस रणनीतिक योजना से जुड़े हुए हैं। चीन भारत से सीमा विवाद को बनाएं रखते हुए भी आर्थिक गतिविधियों को न रुकने देने के लिए प्रतिबद्ध नजर आता है। शंघाई  सहयोग संगठन के उद्देश्यों के विपरीत व्यवहार करने के बाद भी चीन इसकी सफलता के लिए तत्पर रहता है। यह चीन की बहुउद्ददेशीय कूटनीति को दिखाता है। वहीं भारत दक्षेस से पड़ोसी देशों से संबंध मजबूत रखने की योजना से दूर होता जा रहा है। भारत के विदेश मंत्री ने साफ किया कि पाकिस्तान से बातचीत जैसी कोई स्थिति नहीं बन रही है तथा जब तक आतंक की घटनाएं कम नहीं होती तब तक बातचीत नहीं हो सकती। दक्षिण एशिया की बात की जाएं तो भारत इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश है। इस इलाके की सांस्कृतिक विविधता भारत के हितों की रक्षा करने में समर्थ है,  लेकिन चीन भारत  के प्रभुत्व को तोड़ने की भरसक कोशिश कर रहा है।

डोकलाम का विवाद होने के बाद चीन ने मुहिम चलाई कि वो भूटान से संपर्क करे और सीमा के बारे में बात करे। अब भूटान और चीन के बीच कई समझौते भारत की पूर्वोत्तर की सुरक्षा के लिए संकट बन सकते हैं। पाकिस्तान, श्रीलंका, मालद्वीप,  नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों पर चीन का आर्थिक प्रभाव भारत से कहीं ज्यादा है और सामरिक रूप से चीन भारत पर बढ़त हासिल करने की ओर अग्रसर है। चीन की यह रणनीति है कि भारत को उसके पड़ोसी देशों से दूर कर दिया जाए और आपसी संबंधों को बाधित कर दिया जाएं। चीन की साम्राज्यवादी तथा सामरिक नीतियां भारत के लिए पाकिस्तान से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है, यह समझने की जरूरत है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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