टैगोर जयंती : बांग्ला अस्मिता के आधार स्तंभ
कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर का बंगाली अस्मिता के साथ कितना मजबूत बंधन रहा है, इस बात का प्रमाण इसी से मिलता है कि अंग्रेजी तिथि उपलब्ध यानी ज्ञात होने के बावजूद आज भी रवींद्रनाथ टैगोर का जन्मदिन बंगाली कलेंडर के हिसाब यानी 25वें बैशाख को मनाया जाता है।
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कवि गुरु का 1861 में जन्म हुआ अंग्रेजी कलेंडर के मुताबिक वह दिन 7 मई का था और बंगाली कलेंडर के अनुसार 25वां बैशाख, इसलिए आज भी उनके जन्मदिन पर होने वाले नाना प्रकार के आयोजन 7 मई की बजाए 25वें बैशाख को होते हैं। इस साल 25वां 9 मई को पड़ रहा है।
रवींद्रनाथ एक ऐसा नाम है, जो न केवल बंगाली अस्मिता से जुड़ा है, बल्कि देश के हर शहर में उनके नाम पर सड़क, पार्क व सभागार हैं। देश ही नहीं विदेशों में भी उनके नामों की चर्चा होने की वैसे तो कई वजह है, लेकिन मुख्य रूप से दो कारण हैं, जिसकी वजह से रवींद्रनाथ टैगोर बिल्कुल अलग हैं, पहली ‘नोबेल’ पाना और दूसरी दो-दो देशों (भारत व बांग्लादेश) का राष्ट्र गान लिखना। भारत का राष्ट्र गान ‘जन गंन मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांगला’ लिखने वाले कवि गुरु के अनेक गीत रवींद्र संगीत के नाम से न केवल परिचित हैं, बल्कि विभिन्न मौके प्रस्तुत भी किए जाते हैं। भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना निर्विवाद रूप से रवींद्रनाथ ने की है, लेकिन श्रीलंका के राष्ट्रगान की रचना में भी उनकी भूमिका थी। यह गान भी रवींद्र संगीत से प्रभावित है। बंकिम चट्टोपाध्याय की बंगमाता को वन्देमातरम गीत में भारत माता बनाने वाले भी रवींद्रनाथ ही थे।
देश को माता बनाने की राष्ट्रगान की परंपरा के पीछे टैगोर रहे। वे कर्मकांड और वेदों के विरु द्ध थे और उनकी रचनाओं के ज्यादातर स्रेत बौद्ध दर्शन और धर्मग्रंथ थे। वे बंकिम के हिंदुत्व से भी प्रभावित थे। गांधी की तरह वे भी अस्पृश्यता का विरोध करते थे। रवींद्रनाथ कवि के साथ-साथ लेखक, नाटककार, संगीतकार और चित्रकार भी थे। समय और समाज को ऊर्जिस्वत करने के लिए जिस प्रतिभा व चेतना की आवश्यकता होती है, रवींद्रनाथ में वह सब थी। वे सही मायने में साहित्य गगन के रवि यानी सूर्य थे। 1913 में ‘गीतजंलि’ कृति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने के बाद उनकी कीर्ति चतुर्दिक फैल गई। 1915 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर’ का खिताब दिया था, लेकिन जलियांवाला बाग गोलीकांड के विरोध में 1919 में उन्होंने उसे लौटा दिया था। यह घटना टैगोर के स्वदेश-प्रेम व राष्ट्रीय अस्मिता का परिचय कराती है। उनके द्वारा स्थापित वि भारती शिक्षा के क्षेत्र में उनका अप्रतिम अवदान है। देश-विदेश की विशिष्ट विभूतियों को इस संस्थान से जोड़कर उन्होंने इसे वैिक स्तर पर सुप्रतिष्ठित किया। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि रवींद्रनाथ अगर केवल सांगीतिक रचनाएं ही छोड़ जाते, तो भी वे संसार के श्रेष्ठ कवि के रूप में समादृत होते।
1953 में रिलीज हुई बिमल राय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी थी। इस फिल्म की कहानी टैगोर की बंगाली रचना ‘दुई बीघा जोमी’ पर आधारित थी। टैगोर की लघु कहानी पर रितुपर्णो घोष ने साल 2003 में ‘चोखेर बाली’ बनाई। हिंदी ड्रामा फिल्म ‘बायोस्कोपवाला’ साल 2017 में रिलीज हुई थी, इस फिल्म की कहानी टैगोर की काबुलीवाला की एक छोटी कहानी पर आधारित थी। कहानी काबुलीवाला पर बिमल राय ने 1961 पर फिल्म ‘काबुलीवाला’ बनाई थी। श्रृंगार परक रचनाएं हों या प्रकृति-प्रेम की अभिव्यिक्त्तयां, भावाकुल भक्ति की प्रतीति कराने वाले गीत हों या व्यावहारिक जीवन पर छोटी-छोटी? टिप्पणियां, टैगोर की लेखनी के स्पर्श से अविस्मरणीय कविता के रूप में अमर हुई। कविगुरु की सहज शब्दावली मोहक रही है। मानव-जीवन में दुख, मृत्यु, विरह-वेदना की पीड़ा के बीच भी शांति, आनंद और अनंत की आराधना का सूत्र प्रदान करते हैं कवि गुरु के कई गीत। टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने में रुचि थी। महज आठ साल की उम्र में टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी। 16 साल की उम्र में टैगोर की पहली लघुकथा प्रकाशित हो गई थी।
टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ‘बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के विरु द्ध ‘राखी उत्सव’ आरंभ किया। इनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे। 19वीं शताब्दी की शुरु आत में बंगाल में राष्ट्रवादी आंदोलन अपने पूरे उफान पर था और राष्ट्र के लिए यह एकता ब्रिटिश शासन के लिए खतरे की घंटी थी। इससे बचने के लिए अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो की’ नीति अपनाते हुए धर्म के आधार पर बंगाल के विभाजन का फैसला 1905 को पारित कर दिया। इसके खिलाफ टैगोर के आह्वान पर कोलकाता, ढाका और सिलहट में बड़ी संख्या में हिंदू और मुसलमान राखी बांधने और बंधवाने के लिए आगे आए। टैगोर ने देश व बंगाली साहित्य के परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की और अधिकतर में संगीत भी दिया। इन गीतों को रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है।
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