‘द केरल स्टोरी’ का सच

Last Updated 07 May 2023 01:40:37 PM IST

यों अंग्रेजी की एक फिल्म समीक्षक ने ‘द केरल स्टोरी’ (The Kerala Story) को पांच में से ‘एक’ स्टार दिया है, इसका मतलब यह कि समीक्षक की नजर में यह फिल्म सिर्फ नाम की फिल्म है।


‘द केरल स्टोरी’ का सच

यह मूल्यांकन उस मूल्यांकन से मिलता-जुलता है, जो कहता है कि यह प्रोपेगेंडा फिल्म है, जो केरल को बदनाम करने के लिए बनाई गई है, और कि यह ‘संघ’ का प्रोपेगेंडा मात्र है। कई लोग इस पर बैन लगाने के लिए कोर्ट तक गए, लेकिन कोर्ट ने इनके तर्क नहीं माने। फिर भी फिल्म का विरोध जारी है मगर यह भी साफ है कि विरोध का कारण फिल्मी उतना नहीं है जितना कि राजनीतिक और विचारधारात्मक है।

विवादित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध करने वाले भी कई तरह के हैं। कुछ हैं जो ‘फिल्म कला’ की दृष्टि से इसे ‘घटिया’ और ‘कोरी प्रचारात्मक’ फिल्म मानते हैं, लेकिन बहुत से विरोधी  ऐसे भी हैं, जो इस फिल्म द्वारा एक्सपोज की जाती ‘धर्मातरण की राजनीति’ की सचाई के खुलने से डरते हैं। ऐसे लोग फिल्म में दिखाए जाते इस ‘सत्य’ को स्वीकार नहीं कर पा रहे कि केरल में ‘धर्मातरण’ किया या करवाया जाता है, जिसके लिए हिंदू और ईसाई लड़कियों को बहलाया-फुसलाया जाता है, उनका ‘ब्रेन वॉश’ किया जाता है, उनको पैसों का लालच दिया जाता है। फिर उनको आतंकवादी जिहादी संगठन ‘आईसिस’ में भरती कर सीरिया या अफगानिस्तान आदि में भेज दिया जाता है। वे ‘जिहाद’ का हिस्सा बना दी जाती हैं, या जिहादियों के बच्चों को पैदा करने वाली मशीन बना दी जाती हैं। जो ऐसा नहीं करतीं उनको सताया जाता है, मार तक डाला जाता है..।

कहने की जरूरत नहीं कि टीवी चैनलों की बहसों में भी ‘विरोधियों’ द्वारा बार-बार यही सिद्ध  करने की कोशिश की गई है कि फिल्म मनगढ़ंत कहानी है। झूठ का पुलिंदा है, और इस्लाम के खिलाफ घिनौना प्रचार है। यह ‘इस्लामोफोबिया’ फैलाती है और अब जब फिल्म रिलीज हो गई है, और पहले दिन सिनेमा हॉलों में 95 प्रतिशत दर्शक खींच चुकी है, तब भी उसका विरोध जारी है, और यही आरोप लगाया जा रहा है कि यह केरल विरोधी ‘हिन्दुत्ववादी  प्रोपेगेंडा’ की फिल्म है। ऐसे आरोपों  का खंडन करते हुए फिल्म बनाने वालों का और फिल्म की ‘ तीन नायिकाओं’ (तीन भुक्तभोगी लड़कियों) का कहना है कि यह फिल्म उनके जीवन के ‘धर्मातरण’ के उस ‘भयावह सच’ को दिखाती है, जो अब तक नहीं दिखाया गया और जिस पर अक्सर परदा डाला जाता रहा है।

यह फिल्म इस तरह से केरल की उन तीन लड़कियों की ‘आप बीती’ कहती है, जिनको इस्लाम की तरफ आकषिर्त करने के लिए तरह-तरह के पल्रोभन दिए गए और फिर ‘आतंकी-जिहादी’ संगठन ‘आइसिस’ में भरती करके ‘जिहादी’ बनाया गया। इनमें से ये तीन किसी तरह बचकर निकल आई जिनकी ‘आप बीती’ को फिल्म बताती है। फिल्म बनाने वाले बताते हैं कि फिल्म उन्होंने लंबी रिसर्च के बाद बनाई है। यह रिसर्च कहती है कि ऐसी बहुत सी लड़कियों का ‘धर्मातरण’ किया जाता रहा है। उनमें से अनेक अपने मुल्क नहीं लौट सकी हैं। ऐसी गायब हुई  लड़कियों की संख्या 32000 के आसपास हो सकती है। ‘द केरल स्टोरी’ पर प्रतिबंध लगवाने के लिए जब फिल्म के विरोधी अदालत गए तो उन्होंने इन आंकड़ों पर आपत्ति की। टीवी की बहसों में वे कहते रहे कि ये आंकड़े ‘झूठे’ हैं। इसके जवाब में फिल्म बनाने वालों का कहना रहा कि यह सब किसी एक लड़की के साथ भी गुजरा है, तो क्या इसे भी न दिखाया-बताया जाए?

फिल्म के विरोधियों के बरक्स फिल्म के पक्षधरों  के तर्क कुछ इस तरह से सामने आते रहे कि 32000 हजार की जगह अगर एक केस भी ऐसा हो तो क्या उससे आख मूंदी जा सकती हैं। कुछ विशेषज्ञों ने तो यह तक बताया कि अरसे से केरल में इस तरह की ‘कनवर्जन फैक्ट्री’ चलती है, जो धर्मातरण कराती है, और इस ‘कनवर्जन फैक्ट्री’ को चलाने वालों का खुला ऐलान भी है कि केरल को जल्द ही ‘इस्लामिक राज्य’ बनाना है। ऐसी ही बातें कुछ बरस पहले केरल के एक पुराने कम्युनिस्ट सीएम ने कही थी। उनका कहना था कि यह ‘लव जिहाद’ ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन केरल ‘इस्लामिक स्टेट’ बन जाएगा। ईसाइयों को मुसलमान बनाने की ऐसी ही मुहिम की शिकायत केरल के एक कैथॉलिक बिशप भी कर चुके हैं। कोर्ट तक ने इसे ‘सच’ को माना है। इससे साफ है कि फिल्म चाहे ‘तीन भुक्तभोगी लड़कियों की कहानी’ कहती हो, केरल के उस सच के बारे में जरूर कहती है, जिस पर अब तक परदा डाला जाता रहा है।

सुधीश पचौरी


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