आम चुनाव में प्रचार के केंद्र में रहेगा मंदिर मुद्दा

Last Updated 16 Apr 2023 12:49:46 PM IST

आगामी सितम्बर के महीने में राजधानी में जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 Summit) के फौरन बाद से ही देश में 2024 के लोक सभा चुनाव की हलचल तेज होने लगेगी।


आम चुनाव में प्रचार के केंद्र में रहेगा मंदिर मुद्दा

माना जा रहा है कि लोक सभा चुनाव से पहले राम मंदिर (Ram Mandir) के द्वार दुनिया भर के राम भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। इससे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि स्थानों पर पर्यटन भी तेजी से बढेगा इसलिए यह सवाल तो पूछा ही जाएगा कि क्या अगले आम चुनावों में राम मंदिर चुनावी मुद्दा (Ram Mandir Election Issue) बनेगा? जिस तरह से BJP राम मंदिर (Ram Mandir) को लेकर जनता के बीच जा रही है उससे तो यह स्पष्ट ही है कि पार्टी इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करेगी । 1980 में अस्तित्व में आने के बाद से ही राम मंदिर भाजपा की राजनीति का एक मुख्य आधार रहा है।

अगर BJP इस चुनाव में सत्ता बरकरार रखने में सफल रहती है, तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) के बाद नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ही ऐसे पहले राजनेता होंगे जिनकी अगुवाई में कोई पार्टी लगातार तीन बार सत्ता हासिल करने में कामयाब होगी। वहीं कांग्रेस (Congress) समेत कई विपक्षी दलों के लिए 2024 का चुनाव एक तरह से अस्तित्व की अंतिम लड़ाई सरीखा है। इसीलिए शायद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) खुद नजर रख रहे हैं कि राम मंदिर का निर्माण समय पर पूरा हो जाए।

बेशक, आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच राम मंदिर का मुद्दा लोक सभा चुनाव 2024 के केंद्र में रहने वाला है। याद करें कि भाजपा ने एक दौर में राम और रोटी का नारा दिया था। आज यह नारा आगे बढ़कर सबका साथ, सबका विकास तक पहुंच गया है।

पार्टी विद डिफरेंस के साथ आगे बढ़ी भाजपा आज न सिर्फ  भारतीय राजनीति के केंद्र में है, बल्कि बीते एक दशक में उसने भारतीय राजनीति के सूर्य को दक्षिणायन कर दिया है। डॉ. राम मनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohia) जैसे प्रखर समाजवादी चिंतक तक ने राम के आदर्श और लोक स्वीकार को महत्त्व दिया था। वे कहते थे, भारत के तो  कण-कण में राम बसे हैं। भारत की राम के बिना तो कल्पना करना भी असंभव है। सारा भारत राम को अपना अराध्य और पूजनीय मानता है। ‘लोहिया जी यह भी कहते थे कि भारत के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम-राम, कृष्ण और शिव ही हैं। उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम-से-कम दो में एक भारतीय को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द  कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता ही होगा।

‘कभी सोचिए कि एक दिन में भारत में कितनी बार यहां की जनता प्रभु राम का नाम लेती है। ये आंकड़ा तो अरबों-खरबों में पहुंच जाएगा। भारत राम का नाम तो लेता ही रहेगा। राम का नाम भारत असंख्य वर्षो से ले रहा है और लेता ही रहेगा। मोहम्मद इकबाल ने श्रीराम की शान में 1908 में एक मशहूर कविता लिखी थी। वे भगवान राम को राम-ए-हिंद कहते हैं। वे इस कविता में यह भी लिखते हैं : ‘है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज, अहले नजर समझते हैं उनको इमामे हिंद’ यानी भारत को गर्व है कि श्रीराम ने भारत में जन्म लिया और सभी ज्ञानी लोग उन्हें भारत का इमाम अथवा आध्यात्मिक गुरु  मानते हैं। गांधी जी भारत में राम राज्य की   स्थापना देखना चाहते थे। वे हिंदू धर्म के भगवान नहीं हैं, बल्कि भारत की मिट्टी की सांस्कृतिक धरोहर हैं और इस साझा धरोहर को बांटना न मुमकिन है न ही समझदारी।

खैर, राम मंदिर निर्माण के साथ ही भारत में अगले वर्ष से नये युग का सूत्रपात होगा, जिसका असर भारतीय राजनीति पर पड़ेगा ही। इस दशक से देश की राजनीति के इतिहास में यह मुद्दा बड़े महत्त्व का रहा। 1984 चुनाव में भाजपा को बहुत कम सफलता मिली, लेकिन राम मंदिर निर्माण को लेकर अपनी संकल्पना के प्रति पार्टी वचनबद्ध रही। 1989 के पालमपुर सम्मेलन में पार्टी ने तय किया कि उसका मुख्य राजनीतिक एजेंडा ‘राम जन्मभूमि को मुक्त करवाकर भव्य मंदिर बनवाना’ होगा। वरीय नेता और पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अगले ही साल ‘रथयात्रा’ शुरू की। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह कालजयी घटना थी। खैर, यह मान कर चलिए कि 2024 के लोक सभा चुनाव में राम मंदिर फिर से बीजेपी की चुनावी कैंपेन के केंद्र में होगा और 2024 में नरेन्द्र मोदी की सरकार तीसरी बार बनवाने में सफल होता दिख रहा है।

डॉ. आर.के. सिन्हा


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