प. बंगाल : ये कैसी ‘ममता’

Last Updated 20 Mar 2023 01:36:21 PM IST

ऋषि अरविंद घोष ने कहा था, ‘हमारा वास्तविक शत्रु कोई बाहरी ताकत नहीं है, बल्कि हमारी खुद की कमजोरियों का रोना, हमारी कायरता, हमारा स्वार्थ, हमारा पाखंड, हमारा पूर्वाग्रह है।’


प. बंगाल : ये कैसी ‘ममता’

बंगाल में जन्मे इस प्रखर राष्ट्रवादी सपूत ने यह बात तब कही थी, जब भारत परतंत्र था और इसका मकसद था स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए लोगों को जगाना। आजादी के अमृत काल में ये बातें आज बंगाल के संदर्भ में बहुत कुछ लागू हो रही हैं, जहां अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए विरोधियों की हत्या से लेकर दूसरों का हक छीनकर अपने कैडर तंत्र को मजबूत रखने की लपलपाती आकांक्षा दिख रही है।

हाल में ऋषि अरविंद की 150वीं जन्म वार्षिकी को लेकर कोलकाता के अलीपुर बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में सीएम ममता बनर्जी आमंत्रित थीं। मंच पर हाई कोर्ट के जस्टिस सुब्रत तालुकदार भी थे। अपने भाषण में बंगाल की दीदी ने जो बातें कहीं, उनकी किसी ने उम्मीद न की थी। उनकी वाणी में करु णा थी क्योंकि हाल में कोर्ट के आदेश से जलपाईगुड़ी में नौकरी गंवाने वाले ग्रुप सी के दो कर्मचारियों ने खुदकुशी कर ली थी। ममता ने मासूमियत से कहा कि मुख्य न्यायाधीश से तो बात नहीं हुई पर यहां मौजूद सुब्रत (तालुकदार) दा से मेरी अपील है कि अदालत मानवीय रुख दिखाए। फिर उन्होंने नाम लिए बिना माकपा नेता एवं कोलकाता के पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य की ओर इंगित कर कहा कि लोग नौकरी दे नहीं सकते पर दूसरों की नौकरी खाने में दिन-रात लगे रहते हैं। मालूम हो कि विकास रंजन ने कई जनहित याचिकाएं दायर की हैं, और नौकरी से वंचित किए गए प्रतिभाशाली व योग्य शिक्षक और गैर-शिक्षक अभ्यर्थियों के कई मामले लड़ रहे हैं।

सीएम ने कहा कि वाम मोर्चा के शासन की ‘फर्जी’ नियुक्तियों को तो उनकी सरकार ने रद्द नहीं किया? सवाल यह है कि अगर वाम शासन में फर्जी नियुक्तियां हुई थीं, तो उसकी जांच करवाना उनका राज धर्म था। दीदी इतनी उत्तेजित थीं कि उन्होंने यह भी कह डाला कि आप चाहें तो मुझे मारें, पीटें लेकिन किसी की नौकरी न लें। सोचिए, कल को अगर लालू प्रसाद यादव कहें कि जमीन के बदले नौकरी मामले में मुझ पर या मेरे परिवार पर रहम किया जाए  क्योंकि मेरी किडनी बदली गई है, तो क्या यह गुहार जांच एजेंसी या किसी अदालत को मान्य होगी? पिछले साल शिक्षक दिवस पर आयोजित समारोह में दीदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस ‘कथन’ को उद्धृत किया था कि भूल करना हमारा अधिकार है। वे कई सभाओं में कह चुकी हैं कि कुछ लोगों ने भूल की है पर उन्हें सुधार का मौका देना चहिए। पर, आज बंगाल की जनता भी कह रही है कि हमने आपको तीसरी बार चुना, आप हमें सुशासन दें। भूल वाली सफाई के साथ-साथ ममता ने मंत्रिमंडल की बैठक कर नौकरी गंवाने वालों के लिए खाली पद सृजित करने का फैसला किया।

मामला जब हाई कोर्ट के जज अभिजित गांगुली की कोर्ट में गया तो उन्होंने बिफर कर तृणमूल की मान्यता रद्द करवाने के लिए चुनाव आयोग से आग्रह करने तक की बात कही। कलकत्ता हाई कोर्ट के कई जजों व खंडपीठ ने सबसे पहले इस साल जनवरी में 183 प्राथमिक शिक्षकों की सेवा रद्द कीं। हालांकि सीबीआई के मुताबिक अवैध भर्तियों की संख्या 952 है। फिर 11 फरवरी को सरकारी स्कूलों में 1,911 ग्रुप डी कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त की गई। ग्रुप डी कर्मचारियों के लिए 2016 में हुई भर्ती परीक्षा के लिए उनकी ओएमआर शीट में हेराफेरी सामने आई। जिन्हें 1 नंबर मिले थे, उनके 51 नंबर कर दिए  गए और जिन्हें जीरो मिला था, उनके अंक 50 हो गए। 10 मार्च को हाई कोर्ट ने 842 ग्रुप सी कर्मचारियों पर गाज गिराई। इससे खुलासा हुआ है कि बड़े पैमाने पर सत्तारूढ़ पार्टी से संबंध रखने वाले लोगों को नौकरियां मिली हैं।  

इसमें सालबोनी के विधायक श्रीकांत महतो के भाई, मंदिरबाजार सीट से विधायक जॉयद हलदर के बेटे, दक्षिण 24 परगना में डायमंड हार्बर नगर पालिका के पार्टी पाषर्द अमित साहा , बागदा के तृणमूल के पूर्व विधायक दुलाल बर की बेटी जैसे दर्जनों लोगों के नाम हैं। हालांकि अब दुलाल भाजपा की ‘वाशिंग मशीन’ में धुलकर गेरु आ चोला पहन चुके हैं। अब तक हाई कोर्ट ने अवैध तरीकों से सरकारी स्कूलों के 3,623 लोगों की नियुक्तियां रद्द की हैं। ममता महसूस करें कि वे बंगाल के 9 करोड़ लोगों की मुख्यमंत्री हैं। अपनी पार्टी के कैडरों की नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि बंगाल में भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है। पूर्व शिक्षा मंत्री से लेकर स्कूल सर्विस कमीशन के एक दर्जन से ज्यादा लोग सलाखों के पीछे हैं। चाहिए था कि ममता दोषियों को बचाने की कोशिश के बदले न्यायिक प्रक्रिया से सहयोग कर तृणमूल और अपनी सरकार की गंदगी साफ करतीं। वे बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का ध्यान रखतीं। ऐसा करने पर हम फिर वही ममता देखते, जिसने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जंग लड़कर 34 साल की वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका था।

बिमल राय


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