सामयिक : ब्रिटेन का शरणार्थी संकट

Last Updated 15 Mar 2023 12:25:23 PM IST

ब्रिटेन का समाज मुक्त व्यापार के फायदों और अपने देश की आर्थिक प्रगति से ज्यादा अप्रवासन की उन चुनौतियों से आशंकित है, जो पूर्वी यूरोप और गृह युद्ध से जूझ रहे अरब और अफ्रीकी देशों से आ रही हैं।


सामयिक : ब्रिटेन का शरणार्थी संकट

यहां के निवासियों को लगता था कि यूरोपीय यूनियन में ज्यादा समय तक बने रहने से न केवल उनका सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल जाएगा, बल्कि स्थानीय नागरिकों के सामने रोजगार और सुरक्षा का संकट भी गहरा सकता है। मुक्त आवाजाही को सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान का माध्यम बनाने की यूरोपीय संघ की कोशिशों को ब्रिटेन ने ब्रेक्सिट के जरिए झटका दिया था, जो यूरोप के एकीकरण के सपनों के ध्वस्त होने जैसा था। पिछले 10 सालों में ब्रिटेन की राजनीति बहुत बदली है, जो वैश्विक मानवाधिकारों की रक्षा की नसीहतों को नजरअंदाज करने पर आमादा नजर आती है।

दरअसल, करीब 12 साल पहले ब्रिटेन की जनसंख्या के आंकड़े सामने आए तो परंपरावादी समाज में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई। इसके अनुसार ब्रिटेन की जनसंख्या छह  करोड़  बत्तीस  लाख बताई गई जिसमें ब्रिटेन के स्थानीय निवासियों का अनुपात 2001 की जनगणना के 87 फीसदी के मुकाबले घटकर 80 फीसदी रह गया।  आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड और वेल्स में हर आठवां व्यक्ति विदेश में जन्मा है। ब्रिटेन के जनसंख्या अनुपात में पिछले 10 सालों में आए बदलाव के लिए मुख्य कारण अप्रवासियों का ब्रिटेन आना बताया गया। दिलचस्प है कि अवैध अप्रवासन का मार्ग ब्रिटेन में उस इंग्लिश चैनल को समझा जाता है, जो एक समय ब्रिटेन की सबसे बड़ी ताकत हुआ करता था।

करीब 100 साल पहले ब्रिटिश नौसेना की समुद्री शक्ति का कोई मुकाबला नहीं था। ब्रिटिश साम्राज्य का निर्माण इसीलिए संभव हुआ कि रॉयल नौसेना ने यूरोप के आसपास विशेष रूप से चैनल और उत्तरी सागर के समुद्र पर निर्विवाद रूप से नियंत्रण हासिल किया था। इंग्लिश चैनल ब्रिटेन-यूरोप और उत्तर सागर-अटलांटिक, दोनों रास्तों में यातायात के साथ दुनिया के व्यस्तम समुद्री मागरे में से है। इस मार्ग से प्रति दिन 400 से अधिक जहाजों का आवागमन होता है। ब्रिटेन सरकार के अनुसार, 2022 में 45 हजार लोगों ने छोटी नावों पर सवार होकर इंग्लिश चैनल को पार किया है। यह संख्या  2021 की तुलना में 60 फीसदी से अधिक है। यूएन शरणार्थी संगठन का कहना है कि लोग शरण पाने के इरादे से जान जोखिम में डालते हुए छोटी नावों पर सवार होकर इंग्लिश चैनल समेत अन्य मागरे से होकर ब्रिटेन में अनियमित ढंग से प्रवेश करते हैं।

इंग्लिश चैनल से अप्रवासन के मुद्दे पर ब्रिटेन का फ्रांस के साथ विवाद भी गहराया। इंग्लिश चैनल अटलांटिक महासागर की एक शाखा है, जो ग्रेट ब्रिटेन को उत्तरी फ्रांस से अलग करती है, और उत्तरी सागर को अटलांटिक से जोड़ती है। तकरीबन 560 किमी. लंबी और 240 किमी. चौड़ी है। फ्रांस पश्चिम यूरोप स्थित देश है किंतु इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्जमबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंग्लिश चैनल से घिरा है यानी यह तीन ओर सागरों से घिरा है।

अवैध प्रवासन फ्रांस में बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। फ्रांस का जुड़ाव कई देशों और समुद्रों से होने से लोग फ्रांस के तट का इस्तेमाल करना ज्यादा मुफीद समझते हैं। फ्रांस से ब्रिटेन आने वाले शरणार्थियों को लेकर ब्रिटेन ने 2021 में फ्रांस के समुद्र तटों पर हवाई निगरानी की पेशकश की थी जिसे फ्रांस से अस्वीकार्य बताया था। तत्कालीन बिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उत्तरी फ्रांस के समुद्र तटों पर ब्रिटिश सीमा अधिकारियों द्वारा गश्त शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा था। एक-दूसरे के जल क्षेत्र में संयुक्त समुद्री गश्त और मानवयुक्त उड़ानों और ड्रोन से हवाई निगरानी की भी सिफारिश की थी। बाद में अवैध प्रवासियों की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए दोनों देशों के बीच एक समझौता हो गया। इसके तहत फ्रांस समुद्री इलाकों में गश्त बढ़ाएगा ताकि अवैध प्रवासियों को रोका जा सके जो ब्रिटेन में प्रवेश करने के लिए खतरनाक छोटी नावों से इंग्लिश चैनल पार करते हैं। फ्रांस को इसकी एवज में ब्रिटेन से सात करोड़ यूरो की मदद भी मिलेगी। अब ब्रिटेन में अवैध प्रवेश करने वालों की खैर नहीं। ऐसे लोगों को रवांडा जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

ब्रिटेन के इस नये सख्त कानून की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है। ब्रिटेन 1951 की उस शरणार्थी संधि के मूल हस्ताक्षरकर्ताओं में है, जिसमें माना गया है कि शरणार्थियों को शरण पाने के लिए किसी देश में अनियमित रूप से प्रवेश करना पड़ सकता है। यूएन का कहना है कि ब्रिटेन में शरण चाहने वाले लोग शरणार्थी संरक्षण पाने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। शरण पाने के इच्छुक लोगों की व्यक्तिगत परिस्थितियों की जांच किए बिना ही उन्हें हिरासत में रखा या देश-निकाला भी दिया जा सकता है। तथ्यों की विवेचना की जाए तो अप्रवासन की समस्या यूरोप के लिए संकट का कारण बनती जा रही है।

यूरोपीय यूनियन के देश आर्थिक समझौते के साथ सांस्कृतिक एकता भी चाहते रहे हैं, लेकिन तुर्की के प्रभाव से मुस्लिम अप्रवासन बढ़ने को बड़ा संकट माना गया। अरब से अफ्रीका के गृह युद्ध से पनपे संकट में शरणार्थियों के लिए जर्मनी ने भी उदारता से अपने द्वार खोले। जर्मनी भी यूरोपीय यूनियन का बड़ा और प्रभावी देश है। इसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ा। ब्रिटिश समाज को अप्रवासन अपने देश के लिए सांस्कृतिक संकट लगा। मुक्त आवाजाही से यूरोप के अन्य देशों के नागरिक ब्रिटेन में रोजगार तलाशने आने लगे और स्थानीय लोगों में प्रवासियों के प्रति असंतोष पैदा हुआ। मुक्त व्यापार व आवाजाही को यहां का समाज अपनी स्वतंत्रता के विरुद्ध मानने लगा था।

बहरहाल, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन से अलग होकर भी जब अवैध अप्रवासन से मुक्ति नहीं पा सका तो अब उसने कड़े नियमों का दांव खेला है। ब्रिटेन का यह कदम यूरोप के दूसरे देशों को भी कड़े कानून बनाने को प्रेरित करेगा। ऐसे में दुनिया में नये संघर्ष की आशंका बढ़ सकती है। विकसित देशों के पिछड़े और विकासशील देशों  की समस्याओं के प्रति कड़ा रुख से हिंसा का भयावह दौर शुरू हो सकता है, और यह विश्व शांति के लिए चुनौती बन सकता है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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