मां का दूध : जहर बन रहा ‘अमृत’
मां का दूध बच्चों के लिए अमृत माना जाता है। बच्चे का पहला आहार, जो पोषक तत्वों और शुद्धता के मामले में कुदरत की अनमोल सौगात के समान है।
![]() मां का दूध : जहर बन रहा ‘अमृत’ |
अफसोस कि कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल और मिलावटी खानपान के चलते न केवल मां के दूध में मौजूद पोषक तत्वों में कमी आई है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर भी जोखिम बढ़ गए हैं।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिर्वसटिी, लखनऊ का ताजा अध्ययन इस मोर्चे पर चिंतित करने वाला है। अध्ययन में मां के दूध में कीटनाशक पाए जाने का दावा किया है। यह भी सामने आया है कि शाकाहारी महिलाओं की तुलना में मांसाहारी महिलाओं के दूध में 3.5 गुना अधिक कीटनाशक पाए गए।130 महिलाओं पर किए गए इस अध्ययन की शुरुआत असल में प्रसव के लिए आई महिला के कॉर्ड ब्लड में कीटनाशक का स्तर ज्यादा पाए जाने के बाद हुई। ऐसे में नमूने एकत्रित कर जानने का कोशिश की गई कि क्या कीटनाशक मां के दूध में भी मौजूद हैं?
अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि नवजातों को बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने वाले मां के दूध में मौजूद रसायन और कीटनाशक उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालते हैं। विडम्बना है कि एक ओर बिगड़ती आबोहवा और जहरीले होते खानपान के चलते मां के गर्भ में पलते बच्चों का विकास भी प्रभावित हो रहा है, तो दूसरी ओर मां का दूध भी रसायनों की मिलावटी हो गई है। गर्भावस्था के दौरान मां द्वारा दूषित हवा में सांस लेने और मिलावटी चीजों का सेवन करने से नई पीढ़ी दुनिया में आने से पहले ही कई व्याधियों का शिकार हो रही है। प्रसव के बाद मां के दूध में घुले कीटनाशक भी सेहत के लिए खतरा बन रहे हैं। हालिया बरसों में अधिकतर फलों-सब्जियां और फसलों को कीटनाशकों और रसायनों की मदद से उगाया जा रहा है।
इंसानी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले विषाक्त रसायनों का इस्तेमाल खाद्य पदाथरे के भंडारण के लिए भी किया जाता है। फलों को पकाने से लेकर अनाज की बुआई तक सीमा से ज्यादा कीटनाशकों का खमियाजा कमोबेश हर उम्र के लोगों के स्वास्थ्य पर दिख रहा है। हमारे यहां खाने-पीने की चीजों की शुद्धता लंबे समय से सवालों के घेरे में है। चिकन को जल्दी बड़ा करने के लिए तो कहीं मवेशियों का दूध बढ़ाने के लिए कई तरह के रसायन मिले सप्लीमेंट्स दिए जा रहे है।
यही कीटनाशक पहले माताओं के भोजन में और फिर स्तनपान से बच्चों में भी पहुंच रहे हैं। खानपान की चीजों में मौजूद केमिकल्स अजन्मे बच्चे के शरीर और मस्तिष्क, दोनों के विकास को प्रभावित करते हैं, इनमें भ्रूण के विकास को जोखिम होने साथ ही दिमागी विकास पर नकारात्मक असर, लिवर और पेट की बीमारी, हॉर्मोनल असंतुलन, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी तक का खतरा बढ़ जाता है। संक्रामक बीमारियों का आसान शिकार बना भी देते हैं। विचारणीय है कि रसायनों और कीटनाशकों के दुष्प्रभाव के लक्षण तुरंत नजर नहीं आते। बच्चे की उम्र पांच-छह साल होने के बाद इनसे जुड़ी व्याधियों के लक्षण दिखने शुरू होते हैं। तब तक स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को काफी नुकसान पहुंच चुका होता है।
ज्ञात हो कि सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन और एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के दो वर्ष पहले छपे अध्ययन के अनुसार मां के दूध में फूड पैकेजिंग, कपड़े बनाने और कारपेट के दाग-धब्बे छुड़ाने के लिए काम में लिए जाने वाले पॉलीफ्लूरोएल्किल नामक जहरीले रसायन पाए गए थे। यही वजह है कि प्रोटीन से भरपूर मां का दूध बीमारियों से बच्चे की ढाल बनने के बजाय बीमारियां देने वाला साबित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के अनुसार मां के दूध में कीटनाशक की अधिकतम मात्रा 0.05 एमजी प्रति किलोग्राम हो सकती है, जबकि करीब 8 साल पहले सिरसा स्थित चौधरी देवी लाल यूनिर्वसटिी के डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी एंड एनवायरमेंटल साइंसेज की रिसर्च रिपोर्ट 1 किलो मां के दूध में 0.12 एमजी कीटनाशक पाया गया था। यह डब्लूएचओ के अंदाजे से 100 गुना ज्यादा था।
समझना मुश्किल नहीं साल दर साल खानपान में मिलावट ओर बढ़ ही रही है। यह कटु सच है कि कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल आने पीढ़ियों को रु ग्ण और कमजोर बना रहा है। बावजूद इसके आज हर चीज की शुद्धता पर सवाल उठ रहे हैं। हवा पानी भी जानलेवा स्तर तक प्रदूषित हो चुके हैं। देखा जाए तो चिकित्सकीय ही नहीं, नैतिक दृष्टि भी अनुचित है। कीटनाशकों के इस्तेमाल से लेकर मिलावट के खेल तक, देश की भावी पीढ़ी को बीमारियों के जाल में फंसाने वाली गतिविधियों पर सख्ती जरूरी है। आवश्यक यह भी है कि ऐसा करने वाले लोग भी अपनी मानवीय जिम्मेदारी को समझें।
| Tweet![]() |