जी-20 पर यूक्रेन युद्ध का ग्रहण

Last Updated 26 Feb 2023 01:32:58 PM IST

मेजबान भारत के लिए जी-20 बैठकों के दौरान रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले पशिचमी देशों के बीच तकरार में मध्य मार्ग निकालना एक चुनौती साबित हो रहा है।


जी-20 पर यूक्रेन युद्ध का ग्रहण

विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं  वाले देशों के इस मंच की पहली बड़ी बैठक के दौरान यूक्रेन संघर्ष की छाया साफ दिखाई दी। 24-25 फरवरी को बंगलुरू के जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक का मुख्य एजेंडा दुनिया में आर्थिक संकट विशेषकर कर्ज की समस्या पर केंद्रित था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बैठक के शुरुआत में अपने संबोधन में वित्त मंत्रियों से दुनिया में समावेशी विकास सुनिश्चित करने तथा कमजोर राष्ट्रों की मदद करने का आह्वान किया था। अमेरिका के वित्त मंत्री जैनेट मेलेन सहित पश्चिमी देशों के नेताओं ने विचार-विमर्श के केंद्रीय विषय की बजाय यूक्रेन संघर्ष को तूल देने की कोशिश की। वे इस बात पर अड़े रहे कि बैठक के बाद जारी होने वाले संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए रूस की निंदा की जाए। मेजबान भारत ने सुझाव दिया था कि संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन पर आक्रमण या युद्ध की बजाय यूक्रेन संघर्ष या संकट शब्दावली का प्रयोग किया जाए।
भारत का मानना था कि यह एक ऐसा वक्तव्य होगा जिसे रूस भी स्वीकार कर लेगा। वास्तव में भारत में ऐसी ही सूझबूझ जी-20 के बाली शिखर सम्मेलन में भी प्रदर्शित की थी। इसके कारण एक संयुक्त वकतव्य जारी हो सका था। यूक्रेन संघर्ष का एक वर्ष पूरा होने पर अमेरिका और पश्चिमी देशों का रवैया रूस के प्रति और सख्त हो गया है। अमेरिकी वित्त मंत्री इस बात पर अड़ी रहीं  कि हर हाल में रूस की निंदा की जानी चाहिए। अपने आप को अपेक्षाकृत लचीला बताने वाला फ्रांस भी उनकी हां में हां मिला रहा है।

बंगलुरू बैठक के दौरान विदेशी प्रतिनिधिमंडलों ने राजनयिक शिष्टाचार को भी दरकिनार कर दिया। रूस के प्रतिनिधिमंडल ने आरोप लगाया कि उसके प्रति जर्मनी और पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने अपशब्दों का प्रयोग किया और उसके अधिकारियों को कथित युद्ध अपराध के लिए अंजाम भुगतने की धमकी दी। बाद में जर्मन अधिकारियों ने इस आरोप का खंडन किया। लेकिन इस पूरे प्रकरण से यह बात स्पष्ट है कि भारत के लिए जी-20 बैठकों के दौरान सौहार्दपूर्ण वातावरण में सार्थक विचार-विमर्श करना कितना मुश्किल होगा। जी-20 की अगली बैठक मार्च के पहले सप्ताह में नई दिल्ली में आयोजित है। इसमें अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव भाग लेंगे। इस बैठक में दुनिया में शांति और स्थिरता कायम करना स्वाभाविक रूप से एक प्रमुख मुद्दा होगा।

बैठक में रूस और पश्चिमी देशों के बीच वाकयुद्ध अवश्य होगा। लेकिन पश्चिमी देशों ने यदि रूस और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के विरुद्ध जहर उगला तो सग्रेई लावरोव की ओर से उनका प्रभावी प्रतिकार होगा। यह भी संभव है कि बैठक के बाद कोई संयुक्त वक्तव्य जारी न हो। अमेरिका इस बैठक के समानांतर अपने गुट के विदेश मंत्रियों की बैठक भी आयोजित कर सकता है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन अपनी आगामी भारत यात्रा के संबंध में एक बयान में कहा कि उनका देश भारत की मेजबानी में आयोजित होने वाली बैठकों की सफलता में सहयोग करेगा। लेकिन पश्चिमी देशों के रूस विरोधी रुख में लगातार आ रही तल्खी शुभ संकेत नहीं है।

रूस के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए पश्चिमी देशों ने भारत पर बहुत दबाव बनाया था। लेकिन पूर्व की तरह भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया। साथ ही पिछले एक वर्ष के दौरान भारत ने कभी रूस के आक्रमण अथवा यूक्रेन युद्ध जैसी शब्दावली का इस्तेमाल नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रूचिरा कंबोज ‘यूक्रेन संघषर्’ शब्दावली का प्रयोग करते रहे हैं। भारत के इसी रूख को पश्चिमी देशों में रूस का समर्थन करना माना जा रहा है। पश्चिम के कुछ नेता और मीडिया भारत पर प्रतिबंध लगाकर उसे सबक सिखाने की बात भी कह रहे हैं।

डॉ. दिलीप चौबे


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