आखिर पीरियड लीव से परहेज क्यों

Last Updated 26 Feb 2023 01:18:17 PM IST

हाल ही में सर्वोच्च अदालत में दाखिल जनहित याचिका ने एक बार फिर महिलाओं के बुनियादी हक की आवाज को सच के आईने में ला खड़ा किया है।


आखिर पीरियड लीव से परहेज क्यों

इस याचिका के सुर्खियों में आने के बाद सार्वजनिक संवाद और मंथन के केंद्र में निश्चित ही महिलाएं और उनकी वर्षो पुरानी मांग आ गई है। आखिर इस अति महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर सिरे से विचार हो भी क्यों न? भारतीय समाज के लिए इस तरह की मांग अप्राकृतिक, अनुपयोगी और अलाभकारी जरूर हो सकती है, लेकिन ब्रिटेन, चीन, जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और जांबिया जैसे समाज ने तो बहुत पहले इस दस्तक की गूंज को स्वीकार लिया था। और इसकी अनिवार्यता समझते हुए वहां के दफ्तरों और स्कूलों में  बेझिझक इसकी मान्यता दे दी थी।
महिला कर्मचारियों और छात्राओं को पीरियड्स यानी मासिक धर्म के दौरान छुट्टी के लिए सभी राज्यों को नियम बनाने का आदेश मानने वाली एक जनहित याचिका पर विचार करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में  एक याचिका दर्ज की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे सरकार का नीतिगत मामला बताते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट की यह भी दलील थी कि पीरियड लीव की अनिवार्यता महिलाओं के लिए लाभकारी भी हो सकती है क्योंकि पीरियड के दौरान छुट्टी की अनुमति देने से नियोक्ता महिलाओं को काम पर रखने से परहेज करेंगे। हैरानी है कि एक मजबूत राष्ट्र की एक अति शक्तिशाली इकाई आज भी अपनी पारंपरिक सोच से निजात नहीं पा सकी है। यदि वास्तव में माननीय कोर्ट आधी आबादी को लेकर चिंतित है तो इस नियम को लागू करने के साथ सभी नियोक्ताओं से सख्ती से निपटने वाला कोई आदेश पारित करे यदि कोई भी नियोक्ता पीरियड लीव की आड़ में महिलाओं को नौकरी आदि में अड़ंगे डालता है। ये किसी से छुपा नहीं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और छात्राओं को कई तरह की शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। ऐसे में उन्हें पीरियड्स लीव दिए जाने के संबंध में आदेश पारित किए जाने चाहिए। यदि कानूनी धाराओं की भी बात करें तो 1961 के अधिनियम में महिलाओं से जुड़ी समस्याओं के लिए विस्तार से प्रावधान करता है।
मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत कानून के ये प्रावधान कामकाजी महिलाओं के मातृत्व और मातृत्व को पहचानने और सम्मान देने के लिए संसद या देश के लोगों द्वारा उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक हैं। हालांकि फिर भी कानून होने के बाद भी इनका सख्ती से पालन नहीं होता है। ऐसे में एकमात्र राज्य बिहार में नजीर बना है जो साल 1992 से ही महिलाओं को दो दिन की स्पेशल मेंस्ट्रूअल लिख देता रहा है। हालांकि 1912 में, कोच्ची (वर्तमान एर्नाकुलम जिला) की तत्कालीन रियासत में स्थित त्रिपुनिथुरा में सरकारी गल्र्स स्कूल ने छात्रों को उनकी वार्षिक परीक्षा के समय ‘पीरियड लीव’ लेने की अनुमति दी थी, लेकिन इन छिटपुट उदाहरणों से काम चलने वाला नहीं। महिलाएं राष्ट्र और श्रम की महत्त्वपूर्ण इकाई है; ऐसे में उन्हें ये हक दिया ही जाना चाहिए कि वे तकलीफ के दिनों में आराम करें। उनकी उत्पादक क्षमता प्रभावित न हो इसके लिए माननीय अदालत को याचिका पर पुनर्विचार करना चाहिए।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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