अमेरिका के पूंजीपति जॉर्ज सोरोस के ‘खतरनाक’ सपने

Last Updated 19 Feb 2023 01:38:30 PM IST

अमेरिका के पूंजीपति जॉर्ज सोरोस के बयान को भारत ने गंभीरता से लिया है।


अमेरिका के पूंजीपति जॉर्ज सोरोस

म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन  में सोरोस के भाषण को पहले केवल एक बकवास और बूढ़े आदमी की भड़ास के रूप में लिया जा रहा था, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पूरे प्रकरण को दुनिया के भू-रणनीतिक हालात के प्रकाश में समझने और समझाने का प्रयास किया है। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में केवल सोरोस ही नहीं, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के सत्ता प्रतिष्ठानों, थिंक टैंक और मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया है। सोरोस ने अपने बयान में भारत में सत्ता परिवर्तन और रूस के विघटन का दिवास्वप्न देखा था। उसने चीन में कम्युनिस्ट शासन के विरुद्ध (प्रति) क्रांति की भी आशा व्यक्त की थी। रूस और चीन की ओर से सोरोस के बयान पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन जयशंकर ने सोरोस जैसे लोगों और संस्थाओं बखिया उधेड़ दी। जयशंकर के बयान से अमेरिका सहित पश्चिमी देशों में खलबली मच गई होगी।
जयशंकर ने कहा कि सोरोस न्यूयॉर्क में बैठा एक बूढ़ा अपनी राय के प्रति हठधर्मी धनपशु है, लेकिन यदि वह केवल इतना होता तो उसके बयान को नजरअंदाज किया जा सकता था। जयशंकर के अनुसार सोरोस एक खतरनाक आदमी भी है। सोरोस अपने आप को स्वयंभू न्यायाधीश मानता है जिसे यह तय करने का अधिकार है कि कोई देश या नेता लोकतांत्रिक है या नहीं। इतना ही नहीं जिस देश या नेता को वह लोकतांत्रिक नहीं मानता उसे अस्थिर बनाने के लिए आर्थिक संसाधन भी झोंकता है।  
जयशंकर ने वर्ष 2024 के लोक सभा चुनाव के पहले सोरोस जैसे लोगों और संस्थाओं के मंसूबों का पर्दापाश किया है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां विभिन्न देशों में सत्ता परिवर्तन का  कुचक्र रचा जाता है। उनका इशारा अमेरिका और पश्चिमी देशों की शह पर अथवा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से इराक, लीबिया, तत्कालीन यूगोस्लाविया में सत्ता परिवर्तन कराया गया। जयशंकर ने कहा कि भारत को औपनिवेशिक शासन का अनुभव है। इसके आधार पर हमें इस बात का भान है कि किस तरह किसी देश की घरेलू राजनीति पर शिंकजा कसा जाता है। जयशंकर ने अपनी बेबाक और सख्त प्रतिक्रिया से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री, फ्रीडम-हाउस और पश्चिमी मीडिया के मोदी विरोधी दुष्प्रचार का प्रभावी प्रतिकार किया। उन्होंने कहा कि सोरोस ने कुछ वर्ष पूर्व म्यूनिख सम्मेलन में कहा था कि भारत में लाखों मुसलमानों को नागरिकता से वंचित किया जा रहा है। ऐसा कुछ नहीं हुआ। लेकिन भय पैदा करने वाले बयान दिए जाते हैं तो इससे सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है। कुछ नावाकिफ लोग ऐसे बयानों पर विश्वास भी कर लेते हैं।
किसी देश का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि जब किसी देश या नेता के विरुद्ध आरोप गढ़े जाते हैं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई करने की आधारभूमि तैयार हो जाती है। सोरोस जैसे लोग संसाधन मुहैया कराते हैं। अनेक संस्थाएं खड़ी हो जाती हैं जो सत्ता परिवर्तन कराने के लिए जमीन पर काम करती हैं। हाल के दिनों में अमेरिका और ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों ने मोदी सरकार की प्रत्यक्ष रूप से कोई आलोचना नहीं की है, लेकिन जयशंकर के बयान से साबित होता है कि मोदी सरकार इस संबंध में बहुत सतर्क है। भारत में सत्ता परिवर्तन के किसी प्रयास को सरकार गंभीर चुनौती के रूप में ले रही है।
सोरोस ने रूस के विघटन और चीन में कम्युनिस्ट शासन विरोधी विद्रोह होने की जो आशा व्यक्त की है, वह पश्चिमी देशों की सरकारों की रणनीति से मेल खाती है। अमेरिका और नाटो देशों ने यूक्रेन के जरिए रूस के विरुद्ध जो सैनिक अभियान चलाया है, उसका लक्ष्य राष्ट्रपति पुतिन को सत्ता से हटाना है। पश्चिमी देश एक देश के रूप में रूस के विघटन का सपना भी देख रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार वाले रूस के विघटन का क्या नतीजा होगा। राष्ट्रपति पुतिन ने सोवियत संघ का विघटन देखा है। वह रूस के विघटन के लिए प्रेरित किसी भी प्रयास को असफल बनाने को किसी भी हथियार का प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेंगे। हाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पुतिन से बंद कमरे में लंबी बातचीत की थी। बातचीत का ब्यौरा तो नहीं है, लेकिन संभव है कि उन्होंने भावी चुनौतियों के बरक्स साझा रणनीति पर विचार किया हो।

डॉ. दिलीप चौबे


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