मीडिया : अथ बीबीसी विवाद
पहले गुजरात दंगों को लेकर बीबीसी द्वारा बनाई गई ‘डाक्यूमेंटरी’ को बैन किया गया।
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फिर कुछ दिन बाद इनकम टेक्स विभाग ने बीबीसी के दफ्तरों में जाकर ‘अकांउट्स’ की जांच शुरू कर दी। ऐसा होते ही बीबीसी को लेकर बहसें होने लगीं। विपक्षियों ने इसे ‘मीडिया की आजादी’ पर हमला कहा। कई का मानना रहा कि दुनिया बीबीसी की खबरनबीसी पर भरोसा करती है। मानते हैं कि खबर बनाने के उसके ‘मानक’ ऊंचे हैं। उसे बैन करना बदले की कार्रवाई है।
इसके बरक्स बीबीसी के आलोचक कहते रहे कि बीबीसी अब भी ‘कॉलोनियल संस्था’ है। अपने ‘पूर्व उपनिवेशों’ को अब भी ‘उपनिवेश’ की तरह लेती है और उनके अंदरूनी मामलों में दखल देती रहती है..इसी आधार पर एक बार इंदिरा गांधी ने भी बीबीसी पर बैन लगाया था। उसके दफ्तर सील कर दिए थे। उसके स्टाफ को वापस भेज दिया था..। इस बैन का कारण था बीबीसी द्वारा देश के तब के हालात को अपने पूर्वाग्रही नजरिए से बताना। बीबीसी का नजरिया तब की जनतांत्रिक सत्ता को निरंकुशतावादी बताता था। उसकी खबरें देश की शांति व्यवस्था के लिए खतरा नजर आती थीं। इसलिए इंदिरा गांधी ने उसे बैन किया था।
इन दिनों के बैन करने वाले भी यही कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने भी तो अपने वक्त में बीबीसी को बैन किया था। हमने किया तो क्या गुनाह किया? आखिर, वह फिर से भारत की छवि को विदूपित करने के चक्कर में है। उसकी ‘डाक्यूमेंटरी’ झूठ का पुलिंदा है। जब देश के सुप्रीम कोर्ट ने तब के गुजरात के सीएम और अब पीएम को गुजरात के दंगों में किसी भी प्रकार से लिप्त न पाकर, सभी आरोपों से ‘बरी’ कर दिया तब बीबीसी क्यों गड़े मुरदे उखाड़ रही है? क्या वह सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर है? ऐसे आलोचकों का मानना है कि गुजरात के दंगों को फिर से कुरेदना बीबीसी की ‘नव्य औपनिवेशिक’ राजनीति का हिस्सा है। आलोचक मानते हैं कि इस झूठी कहानी को गढ़ा है ‘जेक स्ट्रॉ’ नामक गोरे नेता ने जो खुद इंग्लैंड के इस्लामिक तत्ववादियों से जुड़ा है, जो अक्सर ऐसी झूठी खबरें गढ़कर किसी ‘हिट मैन’ की तरह काम करता है।
जब भारत की इकॉनमी उठान पर है, भारत को दुनिया में ताकतवर राष्ट्र के रूप में गिना जाने लगा है, दुनिया के देशों और बाजारों में छाई मंदी और मुर्दनी के बावजूद इंडिया की ग्रोथ की कहानी सबसे बेहतरीन दर से बढ़ रही है, और उसकी इकॉनमी ने इंग्लैंड को भी पीछे छोड़ दिया है, ऐसे में यह डाक्यूमेंटरी लाई गई है। बीबीसी के आलोचक यह भी मानते हैं कि पीएम मोदी आज के भारत की तेज ‘ग्रोथ’ की कहानी के ‘महानायक’ हैं। भारत के विकास के सबसे बड़े प्रतीक हैं। ऐसे पीएम की छवि पर की जाती चोट, देश पर की जाती चोट है। उनकी छवि गिरती है तो इंडिया की छवि भी गिरती है और बाजार के सेंटीमेंट डाउन होते हैं। इस डाक्यूमेंटरी को इंडिया की ‘ग्रोथ’ की कहानी को डाउन करने के लिए बनाया गया है, इसलिए इसे बैन करना उचित है। वे यह भी कहते हैं कि सिर्फ सार्वजनिक प्रदर्शन पर ही रोक लगाई गई है, इंदिरा की तरह दफ्तर सील नहीं किए हैं, न कर्मचारियों को भगाया ही है।
ऐसे आलोचक इस सबको देश के खिलाफ ‘तिहरी साजिश’ की तरह देखते हैं जैसे कि पहले बीबीसी की डाक्यूमेंटरी का आना, फिर विश्व बाजार में ‘शॉर्ट सेलिंग’ के उस्ताद हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का आना और दुनिया के नंबरी सेठ अडाणी का गिरना और फिर दुनिया के सट्टाखोर अरबपति जॉर्ज सोरोस का मोदी और अडाणी के खिलाफ बोलना और अगले चुनाव में मोदी के न जीतने देने की बात कहना। एक ही पखवाड़े में एक नहीं, दो नहीं, तीन तीन हमले और वो भी विदेशी संस्थाओं के हमले किसी तटस्थ व्यक्ति को यह बताने के लिए काफी है कि भारत को घेरा जा रहा है, और हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है। जब सोरोस जैसा सटोरिया एक अरब डॉलर का फंड देकर खुलेआम इंडिया को ‘फेल’ करने, यहां के कई मीडिया व नीति संस्थानों को डॉलर देने का खेल खेलता हो, जिसके लोग हिंडनबर्ग से लेकर ‘भारत जोड़ो’ तक से जुड़े दिखते हों वहां सत्ता पक्ष के तर्क और भी दमदार नजर आते हैं। फिर भी हमारा मानना है कि बीबीसी को बैन करना उचित नहीं लेकिन बीबीसी का ‘कॉलोनियल नजरिए’ से काम करना भी सही नहीं।
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