रेलवे : अधिक तवज्जो की दरकार
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट में 2.40 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत परिव्यय के साथ दावा किया है कि यह अब तक का सर्वाधिक परिव्यय है, जो 2013-14 की तुलना में नौ गुना ज्यादा है।
रेलवे : अधिक तवज्जो की दरकार |
लेकिन इस बजट के केंद्र में रेलवे की जगह पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान है, जिसका सपना अरुण जेटली के आखिरी बजट में तैयार हुआ था। यह भारी भरकम करीब 100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजना है। इसमें सड़क, रेल, हवाई अड्डा, बंदरगाह, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक ढांचा शामिल हैं। बजट में जो व्यवस्था की गई है, वो रेलवे को मजबूती देगी लेकिन काफी बड़ी तादाद में लंबित रेल परियोजनाओं को और अधिक धन की दरकार है। अभी जिस तरह निजी निवेश का खाका बुना गया है, वह जमीन पर नहीं उतरा तो अपेक्षित बदलाव को झटका लग सकता है। फिलहाल रेलवे बेहतर सेहत की ओर अग्रसर है। सरकार द्वारा धन आवंटन में बढ़ोतरी होने से रेलवे में काफी काम हो रहा है।
भारतीय रेलवे के तहत चल रहीं प्रमुख परियोजनाओं में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना, मल्टी माडल कागरे टर्मिंनल, वंदे भारत रेलगाड़ी आदि हैं। इनमें डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर यूपीए सरकार में आरंभ किया गया था और यही रेल परिवहन के कायाकल्प वाली सबसे अहम परियोजना भी है, जो देर से सही पूरी होने के कगार पर है।
सरकार की चिंता देश में लॉजिस्टिक लागत में कमी की है, जो अभी जीडीपी के 14 से 18% के बीच है। दुनिया में तमाम जगहों पर 8% है। उच्च परिवहन लागत दुनिया के बाजारों में हमारे उत्पादों को टिकने नहीं देती। भले हमारी परिवहन प्रणाली में रेलवे के अलावा दूसरे साधन भी अहम हैं, लेकिन इनमें बेहतर तालमेल नहीं है।
रेलवे की क्षमता और अहमियत अलग है। लेकिन हकीकत यह है कि पीएम गतिशक्ति में सड़कों पर ज्यादा जोर है, जो 60% से ज्यादा माल ढुलाई कर रही है। 2014 से 2022 के दौरान सालाना औसतन 1835 किमी. लाइनें बनीं। दिसम्बर, 2023 तक रेलवे की बड़ी लाइन का 100 फीसदी विद्युतीकरण साकार करने की योजना है। 2017-18 में रेल बजट को आम बजट में समाहित करने के बाद उम्मीद थी कि रेलवे की सबसे तेज प्रगति होगी लेकिन सड़कों की गति तेज है। फिर भी 2024-25 तक रेलवे की अहम परियोजनाओं को साकार किया जा सकता है, जिसके बाद भीड़भाड़ में 51% तक कमी आएगी। इसी हिसाब से 2024-25 तक रेलवे 1600 मिलियन टन माल ढुलाई की कल्पना कर रही है।
तमाम चुनौतियों के बाद भी रेलवे यात्री और माल यातायात में सबसे ज्यादा किफायती है। वही सस्ती दर पर यात्रा कराती है। रेलवे में निजीकरण को लेकर चिंता है, जो इसके मूल स्वरूप को प्रभावित कर सकता है। 2020-2021 के आम बजट के बाद पीपीपी के तहत 150 यात्री गाड़ियों के प्रचालन का फैसला हुआ तो कई कयास लगे। हालांकि उसमें अभी बाधाएं हैं पर स्टेशनों को निजी क्षेत्र को सौंपने का काम शुरू हो चुका है। इस बार भी 100 नई योजनाओं की शुरु आत निजी क्षेत्र की मदद से करने का खाका तैयार किया गया है। रेलवे के साथ वित्तीय मोच्रे पर कई दिक्कतें हैं। पहले से ही रेलवे का कुल बजट में आंतरिक राजस्व का हिस्सा 5% से घट कर 2% पर आ गया था। 2020-21 में आतंरिक राजस्व सृजन वाषिर्क योजना का केवल 3.4% रहा और बाजार से उधारी पर रेलवे की निर्भरता बढ़ी।
उसका सामाजिक दायित्व 2018-19 में 55,857 करोड़ तक पहुंच गया और बढ़ता जा रहा है। वहीं रेलवे का प्रचालन अनुपात चिंताजनक है। उसे एक रुपया कमाने के लिए इतना व्यय करना पड़ता है कि पैसा बचता नहीं। सीएजी ने 2019 में ही कहा था कि यह रेलवे के वित्तीय स्वास्थ्य के विफल होने का संकेत है। सीएजी ने 2019-20 में पेंशन भुगतान को समाहित कर प्रचालन अनुपात 98.36 की जगह 114.35 फीसदी माना और कहा कि यात्री और अन्य कोचिंग शुल्कों पर विचार होना चाहिए।
रेलवे महाबली है पर उसे कई आवश्यक मदों को सस्ते में ढोना पड़ता है। बहुत जरूरी थोक मदों और लंबी दूरी के माल परिवहन पर ही उसकी निर्भरता है। 1950-51 के दौरान रेलवे 88% और सड़कें 10% माल ढुलाई कर रही थीं। रेलों का माल 27% पर आ गया। 2020-2021 में आम बजट प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संकेत दिया था कि रेलवे के उद्धार का सहारा पीपीपी ही रह गया है।
2017-18 में आम बजट में रेलवे को समाहित किया गया तो कहा गया था कि रेल आधुनिकीकरण और सुरक्षा पहलुओं पर अधिक ध्यान दे सकेगी। ऐसा हुआ है लेकिन अभी जो परिकल्पना थी, वह कहीं नजर नहीं आ रही। आजादी के बाद से रेलवे में यात्री यातायात 1344 फीसदी और माल यातायात में 1642 फीसदी बढ़ा लेकिन रेलमार्ग महज 23 फीसदी बढ़ा। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय रेल के कायाकल्प को सरकार की प्राथमिकता का हिस्सा बनाया।
विजन 2024 के तहत भारतीय रेल ने 14,000 किमी. पटरियां बिछाने, समूचे रेलवे नेटवर्क के विद्युतीकरण, महत्त्वपूर्ण मार्गों पर गति उन्नयन, महत्त्वपूर्ण कोयला संपर्क और बंदरगाह संपर्क जैसी योजनाओं को साकार कर 2024 मिलियन टन माल ढुलाई की जो परिकल्पना की थी, वह जमीन पर उतरती नहीं दिख रही। भारतीय रेल नेटवर्क के तहत वर्गीकृत उच्च यातायात वाले सात अहम कॉरिडोरों और 11 अति व्यस्त मार्गों पर काफी दबाव है। यह 24,230 किमी. और रेल नेटवर्क का करीब 35% है, जो 40% यात्री यातायात संभालता है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और बड़ी लाइनों के पूर्ण विद्युतीकरण से तस्वीर बदलेगी।
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