हॉकी : डालनी होगी जीतने की आदत
भारतीय हॉकी टीम के हॉकी विश्व कप में फ्लॉप शो का ठीकरा मुख्य कोच ग्राहम रीड के सिर फूट गया है।
हॉकी : डालनी होगी जीतने की आदत |
भारत ने इस विश्व कप में अज्रेटीना के साथ संयुक्त नवां स्थान प्राप्त किया। इस प्रदर्शन के बाद रीड और उनके सपोर्ट स्टाफ, विश्लेषणात्मक कोच ग्रेग क्लॉर्क और वैज्ञानिक सलाहकार माइकल पेमबर्टन ने भी इस्तीफा दे दिया है। वैसे तो रीड के नाम तमाम उपलब्यिां हैं। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भारत को चार दशक बाद पोडियम पर चढ़ाया, बर्मिघम कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक दिलाया। एफआईएच प्रो लीग के 2021-22 के सत्र में तीसरा स्थान दिलाया। इस लिहाज से लग रहा था कि उन्हें शायद अगले साल होने वाले पेरिस ओलंपिक तक बनाए रखा जाएगा। लेकिन हॉकी इंडिया ने टीम की कमान किसी अन्य कोच देने का मन बना लिया है।
विश्व कप में खराब प्रदर्शन से टीम का मनोबल नीचे है, और एशियाई खेलों के आयोजन में सात माह बाकी रह जाने से भारतीय हॉकी की डगर थोड़ी मुश्किल नजर आती है। कहा जा रहा है कि स्पेन के मौजूदा कोच मेक्स कालडास को लाने का प्रयास किया जा रहा है पर उनका पेरिस ओलंपिक तक करार होने से दिक्कत हो सकती है। रोलैंट ओल्टमेंस के आने की भी संभावना है। भारतीय टीम का शिविर 12 फरवरी से लगना है। तब तक तो नया कोच आने की संभावना नहीं दिखती।
जितनी जल्दी इस बारे में फैसला होगा उतना ही टीम के लिए अच्छा रहेगा। सही मायनों में भारत के इस फ्लॉप शो की प्रमुख वजह खेल में निरंतरता की कमी होना रही। इसके पीछे वजह दबाव में धड़कनों पर काबू नहीं रख पाना हो सकती है। न्यूजीलैंड के खिलाफ क्रॉसओवर मैच खोने में इस कमजोरी की अहम भूमिका रही। भारत ने इस मुकाबले में एक बार 2-0 और दूसरी बार 3-1 की बढ़त बनाई और वह इसे आखिर तक बनाए रखने में कामयाब नहीं हो सकी। पेनल्टी शूटआउट में भी भारत के लिए जीतने का मौका था पर अपनी गलतियों से उसने न्यूजीलैंड को गिफ्ट में मैच देकर अपने को क्वार्टरफाइनल की रेस से बाहर कर लिया। सही मायनों में भारत ने स्वाभाविक प्रदर्शन तब किया जब कहानी खत्म हो चुकी थी। भारत ने क्वालिफिकेशन मैच में जापान के खिलाफ 8-0 और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 5-2 से विजय प्राप्त की। सही मायनों में भारत के कुल जमाए 22 गोलों में से 13 गोल इन दो मैचों में ही आए हैं।
मौजूदा समय में खिलाड़ियों का कौशल मांजने के साथ मेंटल कंडीशिनिंग भी बेहद जरूरी होता है। हमारी टीम इस क्षेत्र में पिछड़ी नजर आती है पर भारतीय टीम बिना साइक्लोजिस्ट के खेल रही है। इसका भारतीय हॉकी को खमियाजा भुगतना पड़ा है। हॉकी इंडिया को अब खिलाड़ियों की मेंटल स्ट्रेंथ बनाने पर भी ध्यान देने की जरूरत है। चैंपियन जर्मनी जैसी कई टीमों के कुछ खिलाड़ी तो व्यक्तिगत मेंटल कोच रखते हैं। इस तरह के खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी कभी नहीं देखी जाती। भारत को अपनी इस गलती को सुधारने की जरूरत है। भारतीय टीम के ग्रुप के पहले दो मैचों में स्पेन और इंग्लैंड के खिलाफ एक भी गोल नहीं खाने से एक बार तो लगा कि हमारा डिफेंस मजबूत हो गया है। लेकिन पहले ग्रुप मैच में वेल्स और फिर क्रॉसओवर मैच में न्यूजीलैंड ने जब काउंटर अटैक बनाए तो हमारा डिफेंस एकदम छितराता नजर आया। वेल्स जैसी कमजोर टीम ने हमारे ऊपर एक समय तो मुकाबला बराबर खेलने का दबाव बना दिया था। किसी तरह हमारी टीम इस दबाव से तो निकलने में सफल हो गई पर न्यूजीलैंड द्वारा बनाए दबाव से नहीं बच सकी।
इसकी एक वजह तो यह नजर आई कि भारतीय मिडफील्डरों और फॉरवडरे ने हमले बनाने पर तो ध्यान दिया पर गेंद पर ज्यादा समय कब्जा रखने पर ध्यान नहीं दिया। परिणाम रहा कि भारत ने तेज गति से हमले बनाए और इसके तत्काल बाद भारतीय खतरा क्षेत्र में गेंद लौटती रही। इस वजह से डिफेंडरों को उभरने का समय नहीं मिल सका और वे लगातार दबाव में नजर आए। पहले मैच में मिडफील्ड में खेल को संचालित करने वाले हार्दिक सिंह के चोटिल हो जाने पर टीम के बाएं फ्लैंक से हमले बनने में एकदम से कभी आ गई। टीम ज्यादातर समय दाहिने फ्लैंक या फिर सेंटर से हमले बनाने लगी। इसका परिणाम हुआ कि विपक्षी डिफेंडरों को भारतीय हमले रोकने में आसानी हुई और खुद हमले बनाने के लिए एक कॉरिडोर खुल गया जिसका विपक्षी टीमों ने फायदा उठाया।
एंड्रे हेनिंग की टीम जर्मनी का हार नहीं मानने का जज्बा आखिर काम आया और वह हॉकी विश्व कप के खिताब पर कब्जा जमाने में सफल हो गई। यह खिताब उन्होंने 2006 के बाद जीता है, जो उनका तीसरा विश्व खिताब है। हेनिंग इस तरह विश्व हॉकी पर जर्मनी के दबदबे को फिर से स्थापित करने में सफल हो गए हैं। वह पेनल्टी शूटआउट तक खिंचे फाइनल में पिछली चैंपियन बेल्जियम के दबदबे को 5-4 से तोड़ने में तो कामयाब रही ही। खिताब की भी प्रमुख दावेदार मानी जा रही ऑस्ट्रेलिया के पदक से वंचित रहने से साबित हो गया कि उन्हें फिर से बादशाहत बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। वह असल में कांस्य पदक के मुकाबले में नीदरलैंड से हार गई।
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