गणतंत्र दिवस : गणतंत्र का गौरव गान

Last Updated 26 Jan 2023 01:57:59 PM IST

भारत अपने गणतंत्र का 74वां समारोह मना रहा है। जिस समय आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, उस समय राजपथ, जिसका नाम बदल कर नरेन्द्र मोदी सरकार ने अब कर्त्तव्यपथ कर दिया है, पर भारतीय राष्ट्र राज्य अपने पराक्रम और शौर्य का प्रदशर्न कर रहा होगा।


गणतंत्र दिवस : गणतंत्र का गौरव गान

युद्धक विमानों के गड़गड़ाहट से आसमान थर्रा रहा होगा और टैंक एवं तोपों की प्रदर्शनी से उपस्थित जनसमूह उल्लसित हो रहा होगा। विभिन्न राज्यों की झांकियां जनसमूह को आनंदित कर रही होंगी। इस दौरान दिखाए जा रहे अनुपम दृश्य बरबस हमारे मन को आह्लादित करते हैं और गर्व का अनुभव भी कराते हैं। लेकिन यह ऐसा अवसर भी है जब सोचना होता है कि हमारे आम जन का जीवन कितना बेहतर हुआ है?
डिजिटल होते भारत में उसके हालात पहले कहीं ज्यादा बदले हैं। बेशक, वह इन्हें देखकर आनंद का अनुभव करता है। परेड में शामिल सारे साजो-सामान राज्य के हैं, जो इनके प्रदर्शन से अपनी शक्ति का मुजाहिरा पेश करता है। प्रकारांतर से यह जनता की ही शक्ति है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि राज्य की शक्ति जनता की शक्ति नहीं होती है। वे कहते हैं कि जिस अनुपात में राज्य की शक्ति में इजाफा होता है, जनता की शक्ति में उसी अनुपात में क्षरण होता है। राज्य अमूमन इन शक्तियों का इस्तेमाल देश के दुश्मनों के खिलाफ करता है। इस मामले में भारत ने अपना लोहा मनवाया है। दुश्मन राष्ट्र की सीमा में घुसकर राज्य इन्हीं हथियारों का प्रयोग करने से नहीं हिचकिचाया।
हमें यह जानकर हर्ष होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर की हो गई है, लेकिन जब हम इसकी तह में जाते हैं, तो मन में हर्ष के बदले विषाद पैदा होने लगता है। पिछले कतिपय वर्षो में देश में आर्थिक असमानता अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। आलम यह है कि केवल पांच प्रतिशत लोगों के हाथों में देश का 60 प्रतिशत धन जमा है, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोगों के पास केवल तीन प्रतिशत धन है। ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार 2012-2020 के बीच देश में जितना धन का सृजन हुआ, वह केवल एक प्रतिशत लोगों के हाथों में गया। 2020 में हमारे देश जहां केवल 102 अरबपति थे, वहीं 2022 आते-आते 166 लोग अरबपति बन बैठे। भारत के सबसे धनी 100 लोगों के पास 54.12 लाख करोड़ की संपत्ति है। मालूम हो कि इस धन से 18 महीने तक केंद्रीय बजट का पोषण किया जा सकता है। न केवल आर्थिक असमानता, बल्कि गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी भी लगातार बढ़ती जा रही है। आज स्थिति यह है कि पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होने के बावजूद 80 करोड़ लोगों को पांच किलो के मुफ्त चावल पर जीवन चल रहा है। बेशक, हमारी जनता के हालात अब भी चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं, लेकिन सरकार के हर संभव प्रयास हैं कि उनके हालात बेहतर हों। खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर दवाई तक के इंतजाम में सरकार तल्लीन है। बेशक, भारत आज की तारीख में रोजगार के मोच्रे पर तमाम चुनौतियों का सामना कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि रोजगार के लिहाज से भारत अपने आज तक के सबसे बुरे दिन से गुजर रहा है। लेकिन छोटे और असंगठित क्षेत्र को ऋण सहूलियतें बेहतर करके सरकार की कोशिश है कि बेरोजगारी के हालात संवारे जाएं। दरअसल, कोरोना महामारी ने हमारे असंगठित क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके प्रतिकूल असरात से अर्थव्यवस्था अभी तक उभर नहीं पाई है, लेकिन सरकार ने जैसे कमर कस ली है कि हालात को बेहतर बनाया जाएगा। सरकारी क्षेत्र में रोजगार सृजन को प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि सरकार स्वयं कहती है कि देशभर में 30 लाख पद रिक्त पड़े हैं। सरकार ने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था, वही सरकार अब बेरोजगारी का महिमा मंडन कर रही है। आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा बेरोजगारी पढ़े-लिखे नौजवानों में है। इसके लिए सरकार को विशेष प्रबंध करने होंगे।
गणतंत्र कोई काल्पनिक अवधारणा नहीं होती, बल्कि वह नागरिकों की की आकांक्षा पथ प्रदशर्क होती है, जहां उसके अधिकार सुरक्षित होते हैं। लोकतांत्रिक साख और आर्थिक विकास ही गणतंत्र के पर होते हैं। सरकार इस तथ्य से पूरी तरह वाकिफ है, और इसी दिशा में उसके प्रयास हैं। चाहती है कि अवाम में लोकतांत्रिक चेतना का विकास हो और वह आज सत्ता के घर का बंधक भर न रह जाए।

शासन-प्रशासन की सारी संवैधानिक लोकतांत्रिक संस्थाओं को नये सिरे से चाक-चौबंद किया जा रहा है। देश-विरोधी ताकतें कोई मौका नहीं चूक रहीं देश के मान-सम्मान को चोट पहुंचाने की। संसद देश में बहस और विमर्श का सबसे बड़ा मंच है। लेकिन विपक्षी पार्टियां कोई मौका नहीं छोड़ना चाहतीं, उसकी उपयोगिता को महत्त्वहीन करने में। वर्तमान सरकार ने संसद की सार्थकता को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास जारी रखे हैं। हमने अनेक बार देखा है कि सरकार मुद्दों पर चर्चा तक कराने को तैयार होती है, तो विपक्ष अपने तई सरकार के साथ सहयोग के लिए तैयार नहीं होता। उसकी कोशिश रहती है कि बिना किसी बहस के कानून पारित करने की नौबत आए और सरकार की किरकिरी हो। इससे जाहिर होता है कि इस सरकार को लोकतंत्र की बेहद परवाह है।
विपक्ष की कोशिश रहती है कि संसद की कार्यवाही को बेमानी किया जाए। और वह इस काम में कुछ समय पूर्व कहे गए एक कथन का सहारा लेता है, जिसमें कहा गया था कि देश में कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है, जिसे कम किए जाने की सख्त जरूरत है। तो गणतंत्र दिवस की इस पूर्व संध्या में हमें जरा ठहरकर सोचना होगा कि देश किस कदर प्रतिगामी ताकतों से घिरे होते हुए भी अपनी मंजिल की ओर अग्रसर है। हाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने ऊंची छलांग लगाकर समूचे विश्व को हैरत में डाल दिया। उस ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ दिया जिसने कभी भारत पर शासन किया था। आने वाले दशक में उम्मीद है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरेगी। और इसी के साथ आजादी का यह अमृतकाल अपनी सार्थकता को प्राप्त कर लेगा।

कुमार नरेन्द्र सिंह


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