बसंत पंचमी : प्रकृति परिवर्तन और खुशहाली का पर्व

Last Updated 26 Jan 2023 01:55:29 PM IST

क्या बसंत महज एक मौसम मात्र है। बसंत भौतिक कम मानसिक ज्यादा है, और अध्यात्म तक जाता है। बसंत मन की स्थिति है, प्रकृति का श्रृंगार और काम भाव का उद्दीपक होने के साथ ही ज्ञान और शौर्य का संगम भी है।




बसंत पंचमी : प्रकृति परिवर्तन और खुशहाली का पर्व

भौतिक रूप से कहें तो जब कलियां, पल्लव, पुष्प, कोंपल तथा पत्ते तक खिल उठें, मौसम खुशगवार हो जाए, न गर्मी सताए और न ही सर्दी का प्रकोप रहे तो समझिए कि बसंत आ गया है। जब हृदय में काम भाव हिलोरें मारने लगे तो यह बसंत के आने का संकेत है। बसंत पंचमी का दिन बसंत के आने का संदेश लाता है। मिथकों और ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन सरस्वती देवी का अविर्भाव हुआ था। ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा आराधना विशेष रूप से की जाती है। भारतीय परंपरा में बसंत का आरंभ बसंत पंचमी से होता है। इसी दिन ‘श्री’ अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है।
सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षो तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुई। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा-स्वप्न वष्राव्यनेकानि देव देव ममाप्सिनम। यानी मैं कई वर्षो तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है। बसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को ही अर्पित है। इस दिन संपूर्ण प्रकृति में मादक उल्लास और आनंद की सृष्टि हुई थी। ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं।  अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव और महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं, जिन पर सरस्वती की कृपा होती है, वे ज्ञानी और विद्या के धनी होते हैं। इसका आरंभ और समापन सरस्वती वंदना से होता है। मां सरस्वती की वंदना की जाती है, जिसके भाव होते हैं-‘असतो मा समय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के। आज के दिन पूजा कक्ष को खास तौर पर स्वच्छ करें, सरस्वती देवी की प्रतिमा को पीले फूलों से सजाएं, मंडप को भी पीत पुष्पों से सुसज्जित करें एवं पीले परिधान पहनाएं। इसी प्रतिमा के निकट गणोश का चित्र या प्रतिमा भी स्थापित करें, परिवार के सभी सदस्य पीले वस्त्र धारण कर तथा पूजा में सम्मिलित हों। बेर और सांगरी प्रसाद में मुख्य रूप से खाएं, प्रसाद की थाली में नारियल और तांबूलपत्र भी रखें।

मान्यता है कि एैसा करने से ज्ञान की देवी सरस्वती कृपा करती हैं। अगर आप मंदिर जा रहे हैं, तो पहले  ‘ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप करें। उसके बाद माता सरस्वती के मंत्र-‘ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:’ का जाप करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वशिष्ठ, विामित्र, शौनक, व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। विद्वानों का मानना है कि सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है। यह वही अवधि है, जिसमें पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्याग कर नई कोपलों से आच्छादित दिखाई देते हैं। समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौरों की गूंज से भरा होता है। मधुमक्खियों की टोली पराग से शहद लेती दिखाई देती हैं, इसलिए इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। प्रकृति काममय हो जाती है। बसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ‘शुक्र’ का प्रभाव रहता है। शुक्र भी काम और सौंदर्य के कारक हैं, इसलिए रति-काम महोत्सव की यह अवधि कामोद्दीपक होती है। अधिकतर महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं। जन्मकुंडली का पंचम भाव-विद्या का नैसर्गिक भाव है। इसी भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है।
भारतीय सिने जगत ने भी समय-समय पर बसंत को गीतों में गूंथ कर परोसा है, उसे मस्ती का पर्व बनाया है ‘रंग बसंती आ गया, मस्ताना मौसम छा गया’ जैसे गीत इसका प्रमाण है। लोक गीत और साहित्य भी बसंत को अपने तरीके से वर्णित करते रहे हैं। जायसी जैसे कवि तो पद्मावत में पद्मावती के वियोग में भी बसंत को ले आते हैं। देखिए ‘चैत बसंता हओइ धमारि, मोहे लेखे संसार उजारि’ कर वे बसंत को सीधे मन से जोड़ देते हैं। अस्तु, बसंत तन, मन, जीवन को रंग-उमंग देने का मौसम है, और इस मौसम के आगाज का नाम है बसंत पंचमी।

घनश्याम बादल


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