सामयिक : पाकिस्तान पर तालिबानी खतरा

Last Updated 17 Jan 2023 01:45:17 PM IST

हममें से शायद कइयों को यह दूर की कौड़ी लगे, लेकिन अफगानिस्तान की तरह पाकिस्तान में तालिबानों के वर्चस्व का प्रत्यक्ष खतरा दिखने लगा है।




सामयिक : पाकिस्तान पर तालिबानी खतरा

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी अफगानिस्तान को केंद्र बनाकर सत्ता पर कब्जा करने की जंग छेड़ चुका है। उसने बलूचिस्तान, वजीरिस्तान आदि में अपनी समानांतर सरकारें गठित कर इसकी घोषणा भी कर दी है।

टीटीपी को लेकर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ चुका है। अफगानिस्तान के उप प्रधानमंत्री तालिबानी अहमद यासिर ने ट्विटर पर 1971 में भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक तस्वीर साझा करते हुए लिखा है कि पाकिस्तान ने उन पर हमला किया तो उसे ऐसी ही शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ेगा। दरअसल, पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने तालिबान को धमकी दिया था कि टीटीपी ने उनके देश पर हमले नहीं रोके तो पाकिस्तानी फौज अफगानिस्तान में घुसकर उन आतंकवादियों के ठिकानों को खत्म करेगी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भी अफगानिस्तान सरकार को कहा कि  टीटीपी पर लगाम लगाएं। अगर वह इसमें विफल रहते हैं तो आतंकवादियों के खिलाफ सीधी कार्रवाई की जाएगी। इसकी प्रतिक्रिया में ही राणा सनाउल्ला ने यह ट्वीट किया है।

इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान इस समय टीटीपी के खतरे को लेकर किस स्थिति से गुजर रहा है। दरअसल, जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करना शुरू किया तो पाकिस्तान ने हर तरीके से न केवल उसकी मदद की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इमरान खान और उनके साथियों ने उनका पूरी तरह बचाव किया। उनको लगता था कि तालिबान के शासन स्थापित होने के बाद वे पहले की तरह फिर से एक उपनिवेश की भांति इसका उपयोग करेंगे और भारत जैसे देश के लिए परेशानियां बढ़ेगी। पाकिस्तान ने तालिबान से अपने संबंधों का उपयोग कर चीन के लिए वहां काम करने के आधार भी तैयार किए। किंतु तालिबान ने सत्ता पर आने के साथ धीरे-धीरे स्वतंत्र स्वायत्त व्यवहार करना शुरू किया और इस समय वे सबसे बड़े दुश्मन और सिरदर्द किसी के लिए बने हुए हैं तो वह पाकिस्तान है।

तालिबान ने केवल जिहादी आतंकवादी गुटों को शरण देना आरंभ किया बल्कि धीरे-धीरे उनकी सारी नीतियां 2001 तक उनके शासन की स्थिति में लौट रही है। सामान्य तौर पर पाकिस्तान को इससे कोई समस्या नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह ऐसा चाहते भी थे। हां, दुनिया के लिए अवश्य चिंता का विषय है। अमेरिका के साथ तालिबान ने दोहा में जो समझौता किया था, उसमें माना था कि अलकायदा जैसे आतंकवादी गुटों को प्रश्रय नहीं देगा। भारत ने उस समय भी अमेरिका और दूसरे देशों को आगाह किया था कि तालिबान पर इस तरह भरोसा न करें। वहां इस समय न केवल अलकायदा की प्रकट मौजूदगी दिखी है, बल्कि इस्लामी स्टेट के साथ-साथ अनेक आतंकवादी समूह सक्रिय हैं। इनमें टीटीपी भी शामिल है।

 टीटीपी अफगानिस्तान में प्राप्त प्रश्रय एवं सहयोग के कारण पाकिस्तान में जाकर हमले करता है और वापस आ जाता है। टीटीपी पाकिस्तान के फाटा यानी संघ शासित जनजातीय क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व कायम कर चुका है और स्वात घाटी कभी भी उसके नियंत्रण में आ सकता है। टीटीपी ने पाकिस्तानी सेना के साथ शांति संधि को पहले से तोड़ना आरंभ कर दिया था। वास्तव में आज शांति संधि केवल कागजों पर है और टीटीपी से पाकिस्तानी सेना का सीधा युद्ध चल रहा है। तालिबान की सोच और नीति तथा उसके कारण विश्व भर के आतंकवादी समूहों की फिर से वहां सक्रियता पूरे दक्षिण एशिया और भारत के साथ विश्व समुदाय के लिए भी चिंता का कारण बनना चाहिए। टीटीपी ने पूरे दक्षिण एशिया में इस्लामिक शासन लागू करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यानी टीटीपी  भी केवल पाकिस्तान के लिए खतरा नहीं है; हमारे और आसपास के अन्य देशों के लिए भी यह चिंता का कारण है। लेकिन इस समय वह पाकिस्तान केंद्रित हमले कर रहा है। इसलिए पाकिस्तान के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की तस्वीर बन रही है।

टीटीपी के नेता पाकिस्तान, वहां की राजनीति, इस्लाम आदि को लेकर जो कुछ बोलते हैं उससे जनता के एक वर्ग का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है। वर्तमान शासन को वह इस्लाम विरोधी और पाकिस्तान राष्ट्र के लक्ष्य के विपरीत बताता है। इस तरह टीटीपी का पाकिस्तानी राजनीतिक प्रतिष्ठान या यूं कहें पूरे सप्ताह प्रतिष्ठान के साथ वैचारिक संघर्ष भी चल रहा है। पाकिस्तान इस समय भयानक आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। दूसरी ओर सत्तारूढ़ गठबंधन एवं इमरान खान की पार्टी के अलावा दूसरे कट्टरपंथी राजनीतिक समूहों के बीच भी टकराव चल रहा है। इसमें उसके लिए टीटीपी से निपटना काफी मुश्किल हो गया है। इस समय केवल टीटीपी ही उसका दुश्मन नहीं अफगान का तालिबान भी है। दोनों से वह कैसे निपटे यह बड़ा प्रश्न पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के साथ खड़ा है। इधर अमेरिका ने पाकिस्तान को फिर से पहले की तरह गोद में लिया है। उसे काफी सैन्य और वित्तीय मदद दे रहा है। राष्ट्रपति बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिका पाकिस्तान, अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया के बारे में क्या सोच रखता है यह आसानी से नहीं समझा जा सकता। क्या बाइडेन भूल गए कि एक समय पाकिस्तान के संरक्षण में पले आतंकवादियों ने ही तालिबान को केंद्र बनाकर अमेरिकी ठिकानों सहित न्यूयॉर्क और वाशिंगटन तक पर हमला कर दिया था?

वास्तव में पाकिस्तान में एक समय भारत को लहूलुहान करने तथा दुनिया के देशों को दबाव में लाने के लिए जिस आतंकवाद को पाला-पोसा और प्रश्रय दिया वह स्वयं उसके साथ पूरे क्षेत्र के लिए दावानल बनने की और पूरी तरह अग्रसर है। इस्लाम और शरिया के टाइम का अपना नजरिया है। यह सभी स्वयं को इस्लाम के योद्धा मानकर इस्लामी शासन स्थापित करने के मजहबी लक्ष्य संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें जान लेना और जान देना भी इस्लाम की सेवा है। इसलिए इन्हें रोकना और खत्म करना आसान नहीं है।

अवधेश कुमार


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