समलैंगिक विवाह : तीखी बहस छिड़ने की संभावना

Last Updated 03 Jan 2023 01:47:47 PM IST

सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में समलैंगिक विवाह को स्पेल मैरिज एक्ट में कानूनी मान्यता देने की मॉग वाली याचिकाओं पर विचार करने का मन बनाया है।


समलैंगिक विवाह : तीखी बहस छिड़ने की संभावना

उच्चतम न्यायालय ने इस मसले पर सुनवाई में मदद के लिए केन्द्र सरकार व अटार्नी जनरल को भी नोटिस जारी किये हैं। गौरतलब है कि प्रधान न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने समलैंगिक विवाह करने के अधिकार पर अमल करने और स्पेल मैरिज एक्ट के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने के निर्देश देने की मांग कर रहे दो समलैंगिक जोड़ों की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद नोटिस जारी किए हैं।

दरअसल, देखा जाए तो यह मुद्दा नवतेज सिंह जौहर (समलैंगिक संबध) और पुत्ता स्वामी (निजता का अधिकार) मामले में दिए गए फैसले की आगामी कड़ी है। शीर्ष अदालत में अभी हाल ही में दो याचिका और दाखिल की गई हैं। इनमें एक हैदराबाद के सुप्रियो चक्रवर्ती व अभय डांग ने दाखिल की है और दूसरी याचिका फिरोज महरोत्रा व उदयराज की ओर से दाखिल की गई है। दोनों याचिकाओं के परीक्षण पर शीर्ष अदालत ने अपनी सहमति दे दी है।

सर्वोच्च न्यायालय के इस लचीले रूख के तहत समलैंगिकता को लेकर देश में फिर से एक तीव्र विमर्श शुरू हो गया है। इसके पक्षकारों ने अपनी लैंगिकता को लेकर पिछले दिनों दिल्ली, चेन्नई, बंगलौर एवं भुवनेर में गे-प्राइड परेड का आयोजन करते हुए समलैंगिक रिश्तों को बनाए रखने की वकालत की थी। इसके पक्षकारों का साफ कहना था कि यह कानून 1860 में लार्ड मैकाले के द्वारा बनाया गया था जो हमारे जीवन जीने की स्वतत्रंता को बाधित करता है। दूसरी ओर धारा 377 समाप्त करने पर केंद्र सरकार के प्रयासों का विभिन्न धर्मगुरुओं ने भी कड़ा विरोध किया था।

वर्तमान में समलैंगिक यौन व्यवहार से जुड़े उस माहौल को लेकर आज जो विमर्श शुरू हुआ है उसका तात्पर्य यह है कि यदि समाज का कोई वर्ग अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं से बगावत करते हुए कोई विपरीत रास्ता अपनाता है तो क्या समाज को उन्हें इस विकल्प को चुनने की आजादी दे देनी चाहिए? हालांकि अभी यह विमर्श अपनी शैशवास्था में है, परंतु न्यायालय के लचीले रुख के कारण इस विमर्श में तेजी आने की संभावना है। सच यह है कि समलैंगिक व्यवहार का ढांचा भले ही आदिकाल से चला आ रहा हो, परंतु वह हमेशा से ही निंदा का विषय रहा है। 20वीं सदी की शुरुआत तक आते-आते समलैंगिक व्यवहार को एक मानसिक रोग समझा जाता रहा था, लेकिन वैिक संस्कृति के संक्रमण के साथ-साथ विदेशों से आकर समलैंगिक व्यवहार से जुड़ी अपसंस्कृति अब अपने देश की आबोहवा में भी तेजी से घुल-मिल रही है।

ब्रिटेन में पिछले दिनों समलैंगिक विवाहों को वैद्य करार दे दिया गया। इसका आश्चर्यजनक पहलू यह रहा है कि ब्रिटेन में इस कानून के बनने के बाद लगभग पांच हजार समलैंगिक जोड़ों ने विवाह रचाए। इसी के साथ वहां अब इन समलैंगिक जोड़ों को कर निर्धारण, अन्य लाभ प्राप्ति तथा विरासत जैसे मामलों पर अपना हक जताने का अधिकार भी मिल रहा है। ब्रिटेन के अलावा डेनमार्क (1989), नाव्रे (1996), स्वीडन (1996), आयरलैण्ड (1996), चीन (1997), नीदरलैंड (2001), जर्मनी (2001), फिनलैंड (2002), बेल्जियम (2003), न्यूजीलैंड (2004), कनाडा (2005), स्पेन (2005), नेपाल (2007),अमेरिका (2022) के अलावा यूरोपीय संघ के 27 देशों, एशिया के वियतनाम, फिलिपींस, थाईलैंड तथा अफ्रीका के चाड, कांगों तथा मेडागास्कर इत्यादि देशों में समलैंगिक व्यवहार से जुड़े कानून प्रभावी हैं।

समलैंगिक व्यवहार के पक्षधर अब भारत में भी इस प्रकार के व्यवहार से जुड़े कानूनों की वकालत करते दिखाई दे रहे हैं। आप स्वीकार करें या न करें, मगर सच्चाई यह है कि समलैंगिक यौन व्यवहार से जुड़ी घटनाओं को कानून की शिथिलता से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यह तो समाज में पनपता एक विसंगत व्यवहार है, जिसकी जड़ों पर समाज-मनौवैज्ञानिक प्रहार करना आवश्यक है। मानवीय व्यवहार का समाज- मनोवैज्ञानिक सिद्धांत यह बताता है कि लैंगिकता सामाजिक सीख के माध्यम से ही आत्मसात होती है।

संस्कृति ने हमें कार्य करने एवं जीवन जीने के अनेक विकल्प दिए हैं, परन्तु व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर चयनित मानदंड संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकते। विरासत में प्राप्त सांस्कृतिक सीमाओं से पूर्णतया: बाहर जाकर यदि कोई व्यक्ति व्यवहार के मानकीकृत मानदंडों के विपरीत व्यवहार का यदि कोई विकल्प चुनता है तो यह उनकी निजी जिंदगी के सुखबाद का हिस्सा तो हो सकता है, परंतु यह स्पष्ट रूप से पारिवारिक संस्कृति एवं संस्था के लिए चुनौती जरूर रहेगी। जिस प्रकार देश में सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार हुआ है, उससे निश्चित ही लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि के साथ परिवार की महत्ता घटी है। इस मसले पर कानूनी जद्दोजहद से भविष्य में समलैंगिक व्यवहार जैसी विसंगतियों में और अधिक तीव्रता आने की संभावना हैं। इससे बचाव के लिए परिवारों में बच्चों के स्वस्थ सामाजीकरण के साथ उनसे मित्रवत व्यवहार करते हुए उन्हें लैंगिक सुरक्षा प्रदान किए जाने की जरूरत है।

डॉ. विशेष गुप्ता


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