काशी-तमिल संगमम : साझा ज्ञान साझी परंपराएं

Last Updated 01 Dec 2022 01:23:16 PM IST

बनारस की पवित्रता वास्तविकता और आस्था, दोनों है..सच्ची गंगा आपके भीतर है’-रमण महर्षि।


काशी-तमिल संगमम : साझा ज्ञान साझी परंपराएं

विभिन्न भाषाओं, सांस्कृतिक परंपराओं और भौगोलिक परिदृश्यों का घर भारत हमेशा सर्वोत्कृष्ट विभिन्न रूपकों के एकरूपता वाले समाज के रूप जाना जाता है। यह साझा विरासत के लिए जाना जाता है, और सतत भारतीय समाज की विशेषताओं को व्यापार, यात्रा और विज्ञान में विकास के माध्यम से सतत स्थापित करता रहा है। बनारस में यह प्रक्रिया युगों से आगे बढ़ रही है। ऐसा ही पहलू यह भी है कि  काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराना संबंध है, जिसे इन दिनों काशी-तमिल संगमम में मनाया जा रहा है, जिसे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा 17 नवम्बर-16 दिसम्बर, 2022 तक आयोजित किया जा रहा है।

इसके महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा-‘संगमों का हमारे देश में अत्यधिक महत्त्व है, वह संगम चाहे नदियों का हो या ज्ञान और विचारों का। यह संगमम भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृतियों का उत्सव है।’ विभिन्न राज्यों के समान सांस्कृतिक संबंधों की खोज और भारत,  श्रेष्ठ भारत के संदेश को बढ़ाने के लिए दिशा प्रदान करता है। इन दो धाराओं के संबंध प्राचीन काल से लेकर काशी के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक बीएचयू की नींव तक रहे हैं। गुरुवर रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा था, ‘यदि ईश्वर की इच्छा होती तो सभी भारतीय एक ही भाषा बोलते..भारत की शक्ति अनेकता में एकता रही है और हमेशा रहेगी।’ देश में 19500 से अधिक भाषा-बोलियां बोली जाती हैं, जिनमें काशी और तमिलनाडु दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं-संस्कृत और तमिल-के केंद्र रहे हैं। सुब्रमण्यम भारती जैसे दिग्गज काशी में रहे, उन्होंने संस्कृत और हिंदी सीखी और स्थानीय संस्कृति को समृद्ध किया और तमिल में व्याख्यान दिए। भारतीय सभ्यता के इतिहास में काशी और तमिलनाडु, दोनों को ज्ञान-अन्वेषण, जीवंत भाषायी परंपरा के विकास और आध्यात्मिकता के प्रसार में उनके योगदान के लिए उच्च स्थान प्राप्त है।

15वीं शताब्दी में शिवकाशी की स्थापना करने वाले राजवंश के वंशज राजा अधिवीर पांडियन ने दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु के तेनकासी में उन भक्तों के लिए शिव मंदिर बनवाया जो काशी की यात्रा नहीं कर सकते थे। 17वीं शताब्दी में तिरु नेलवेली में पैदा हुए संत कुमारगुरु पारा ने काशी पर कविताओं की व्याकरणिक रचना ‘काशी कलमबकम’ लिखी और कुमारस्वामी मठ की स्थापना की। काशी और तमिलनाडु, दोनों महत्त्वपूर्ण मंदिरों के शहरों के रूप में उभर, जिनमें काशी का विनाथ मंदिर और रामनाथस्वामी मंदिर जैसे सबसे शानदार मंदिर शामिल हैं। प्रसिद्ध लेखक एवं व्यवसायी एसएमएल लक्ष्मणन चेट्टियार (1921-1986) का जन्म शिवगंगा में हुआ था। उन्होंने काशी से लेकर रामेरम तक भारत के प्रमुख मंदिरों पर लगभग 20 कुंभाभिषेकम संस्करणों का संकलन किया था। यह महत्त्वपूर्ण कार्य वर्षो की व्यापक यात्रा और अन्य क्षेत्रों की परंपराओं को आत्मसात करने के बाद संभव हो पाया।

काशी और तमिलनाडु के बीच सक्रिय अकादमिक, साहित्यिक और कलात्मक संवाद का इतिहास रहा है। जहां  काशी ने पंडित परंपरा को स्थापित किया, वहीं तमिलनाडु ने तमिल इलक्कियापरंबराई (तमिल साहित्यिक परंपरा) का उदय देखा। बनारस हिंदू विविद्यालय के शिलान्यास समारोह में महान वैज्ञानिक सीवी रमन जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे और भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन इसके कुलपति थे। काशी और चेन्नई, दोनों को यूनेस्को द्वारा ‘संगीत के सृजनात्मक शहरों’ के रूप में मान्यता दी गई है, और इस शानदार संबंध को इस रूप में देखा जा सकता है कि महान गायक, अभिनेत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने काशी की प्रसिद्ध हिंदुस्तानी गायिका सिद्धेरी देवी से संगीत सीखा था। किसी स्थान की संस्कृति का सबसे अच्छा अध्ययन उसकी सौंदर्य परंपराओं द्वारा परिभाषित किया जा सकता है, और इन दोनों स्थानों ने साझा कला एवं साहित्य के समृद्ध कोष को संरक्षित और पोषित किया है।

प्राचीन काल से ही समाजों का उद्भव और विकास नदियों के आसपास हुआ। परिवहन, व्यापार और वाणिज्य हो या फिर कविता, सभी क्षेत्रों में नदियां केंद्र में रही हैं। काशी और तमिलनाडु, दो सबसे संपन्न नदियों, गंगा और कावेरी-जिसे दक्षिण गंगा भी कहते हैं-  के कारण से विशिष्ट हैं। इन नदियों के तटीय समाज में उन नदियों की पवित्रता समाहित है, और इनमें एक प्रकार की सांस्कृतिक और दाशर्निक एकता प्रदर्शित होती है। इसने न केवल उनका सामाजिक-आर्थिक उत्थान हुआ, बल्कि इसके परिणामस्वरूप कला और साहित्य के प्रमुख कार्य भी हुए । अनिवार्य है कि इस साझा विरासत का ज्ञान युवा पीढ़ी को दिया जाए और उन्हें भारत के सांस्कृतिक और सभ्यतागत लोकाचार के बारे में दृष्टिकोण प्रदर्शन किया जाए। महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था, ‘विविधता में एकता को पाने की हमारी क्षमता ही हमारी सभ्यता की सुंदरता और परीक्षा होगी।’

काशी-तमिल संगमम देश के दो सिरों, उत्तर और दक्षिण के मिलन का प्रतीक है। यह  ऐसा स्थान है जहां छात्र, शिक्षक, सभी क्षेत्रों के पेशेवर और संस्कृति और विरासत के विशेषज्ञ साथ आते हैं, और इस साझा विरासत के सार को जीवित रखने का प्रयास करते हैं, और नए मार्ग बनाने के लिए प्रयास करते हैं। यह साहित्य, पुरातत्व, इतिहास, संगीत वगैरह और किताबों के अनुवाद पर तमिलनाडु से आए मेहमानों के लिए सेमिनार और काशी, अयोध्या और प्रयागराज के दौरों के माध्यम से  किया जा रहा है। दोनों शहरों की कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रमों में भरतनाट्यम और लोक नृत्य प्रदशर्न, कला-संस्कृति पर प्रदशर्नियां, संगीत और किताबें और दक्षिण भारतीय भोजन और तमिल फिल्मों पर आधारित त्योहार भी शामिल हैं। भारत की पहचान सदियों से चली आ रही काशी-तमिल की तरह समागमों को आत्मसात करने की क्षमता का परिणाम है, और ऐसे हजारों सूत्र हैं, जो इसे आज की तरह महत्वपूर्ण सम्मिलन का निर्माण करते हैं।

युवराज मलिक


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