राष्ट्रमंडल खेल : खेल संस्कृति की दरकार

Last Updated 11 Aug 2022 01:40:13 PM IST

यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है, अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजनों में भारत की लगभग सांकेतिक उपस्थिति रहा करती थी।


राष्ट्रमंडल खेल : खेल संस्कृति की दरकार

हम हॉकी में तो कभी-कभार बेहतर प्रदशर्न कर लिया करते थे, पर शेष खेलों में हमारा प्रदशर्न औसत से नीचे या खराब ही रहता था। हिंदुस्तानी खेल प्रेमियों की निगाहें तरस जाती थीं कि एक अदद पदक को देखने के लिए। पर गुजरे दशक से स्थितियां तेजी से बदल रही हैं खासकर मोदी सरकार के आने के बाद।

सबसे बड़ी बात है कि हम बैडमिंटन में विश्व चैंपियन बनने लगे हैं, हमारा खिलाड़ी ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतता है और क्रिकेट में तो हम विश्व की बड़ी शक्ति हैं ही। इस कॉमनवेल्थ गेम में 22 स्वर्ण पदकों सहित कुल 61 पदकों के साथ भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया। पहली बार भारत को 22 स्वर्ण, 16 रजत और 23 कांस्य पदक मिले। भारतीय शटलर पी. वी. सिंधु ने आखिरी दिन बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीता। बैडमिंटन में सिंधु के अतिरिक्त लक्ष्य सेन ने एकल में और चिराग-सात्विक साईराज ने जुगल में स्वर्ण पदक जीता। ईशा-गायत्री और श्रीकांत ने भी कांस्य पदक प्राप्त किए। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार इस प्रकार पदकों की बारिश हुई। बेटियां वेटिलफ्टिंग तथा कुश्ती जैसी स्पर्धाओं में देश की झोली पदकों से भर देती हैं। कॉमनवेल्थ खेलों की वेटिलफ्टिंग स्पर्धाओं में मीराबाई चानू, जेरेमी लालरिनुंगा और अचिंता शुली ने तीन गोल्ड मेडल जीते, जबकि संकेत महादेव सरगर, बिंद्यारानी देवी सोरोखैबम और विकास ठाकुर ने सिल्वर और लवप्रीत सिंह, गुरु राजा, हरजिंदर कौर और गुरदीप सिंह ने कांस्य पदक जीता।

कुश्ती मुकाबलों में भारतीय खिलाड़ियों का जलवा देखने को मिला। पहले ही दिन साक्षी मलिक ने महिला 62 किलो भार वर्ग के फाइनल में कनाडा की एना गोडिनेज गोंजालेज को हराकर गोल्ड मेडल जीता। भगवान शिव के भक्त बजरंग पूनिया ने भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता। अंशु मलिक सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब रहीं जबकि दिव्या काकरान और मोहित ग्रेवाल कांस्य पदक हासिल करने में सफल रहे। रवि दहिया और दीपक पुनिया ने भी स्वर्ण पदक हासिल किए। कॉमनवेल्थ खेलों से ठीक पहले ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा ने र्वल्ड एथलेटिक्स चैंपियनिशप में इतिहास रच दिया था। उन्होंने इस चैंपियनिशप में 19 साल बाद भारत को पदक दिलाया। वह भारत के पहले पुरुष खिलाड़ी बन गए हैं, जिन्होंने र्वल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक हासिल किया है। उनसे पहले लंबी कूद में महिला एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने पदक जीता था। अंजू ने साल 2003 में र्वल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेडल अपने नाम किया था।

बीती मई में भारत ने थॉमस कप जीता था। लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, एच एस प्रणय और सात्विक साईराज रंकी रेड्डी-चिराग शेट्टी ने जो धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया उसने उस धारणा को धराशायी कर दिया कि भारतीय खेलों के लिए नहीं बने हैं। कहा जाता रहा है कि भारतीयों में जीतने वाला दम नहीं होता। हम सिर्फ  देश में ही अच्छा खेलते हैं, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिसड्डी साबित होते हैं। भारतीय बैडमिंटन की लंबी छलांग की बात करेंगे तो पी.वी. सिंधु को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं। उन्होंने कुछ हफ्ते पहले सिंगापुर ओपन चैंपियनशिप को जीता। उन्होंने अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी चीन की वैंग झी यी को धूल चटाई।  सिंधु के लिए यह किसी कड़ी परीक्षा  की तरह था लेकिन वो जंग ही क्या जिसे भारत की सिंधु पार नहीं कर पाए। मुकाबला टक्कर का था पर कोर्ट पर सिंधु की  फुर्ती के सामने चीनी दीवार ढेर हो गई। सिंधु ने महत्त्वपूर्ण लम्हों पर धैर्य बरकरार रखना सीख लिया है। सिंधु का मौजूदा सत्र का यह तीसरा खिताब है। सिंधु ओलिंपिक में रजत और कांस्य पदक के अलावा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदक भी जीत चुकी हैं।

बहरहाल, कहना पड़ेगा कि भारत खेलों में चौतरफा स्तर पर आगे बढ़ रहा है। हमारी क्रिकेट टीम ने हाल ही में पहले इंग्लैंड में और वेस्ट इंडीज में शानदार प्रदशर्न किया। यह वास्तव में सुखद स्थिति है। पर देखना होगा कि हमें खेलों में उपलब्धियां पूर्वोत्तर या हरियाणा से ही अधिक क्यों मिल रही हैं। बिहार, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से सफल खिलाड़ियों का निकलना बाकी है। इन राज्यों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। उभरतीं प्रतिभाओं को सुविधाएं देनी होंगी। झारखंड से बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी खास तौर पर निकलते रहे हैं। भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों की कुश्ती स्पर्धा में उम्मीद के मुताबिक सही प्रदशर्न किया। पदक दिलवाने वाले लगभग सब पहलवान हरियाणा से थे। उत्तर प्रदेश के वाराणसी, इलाहाबाद, आजमगढ़, गाजीपुर, गोरखपुर आदि जिलों के अपने अखाडों से श्रेष्ठ पहलवान क्यों नहीं निकल रहे? क्या हालत है इन जिलों के अखाड़ों की? उत्तर सुनकर सिर शर्म से झुक जाएगा कि बदहाल इन अखाड़ों को कोई पूछने वाला नहीं है। रु स्तम-ए-हिंद मंगला राय, हिंद केसरी विजय बहादुर, मनोहर पहलवान कभी तो इन्हीं अखाड़ों से निकले थे।

बिहार को भी खेलना होगा। याद नहीं आता कि 10-12 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश से कब कोई नामवर खिलाड़ी निकला। बिहारी समाज को खेलों पर फोकस करना होगा। खेलों का कल्चर विकसित करना जरूरी है। हरेक भारतवासी की चाहत है कि भारत खेलों की महाशक्ति बने। बेशक, हम इस दिशा में तेजी से बढ़ भी रहे हैं, लेकिन अब भी कुछ राज्यों में खेलों की संस्कृति विकसित नहीं हो पा रही है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य महानगरों से भी पदक दिलवाने वाले खिलाड़ी सामने नहीं आ रहे हैं। दिल्ली में 1982 के एशियाई खेल हुए। 2012 में कॉमनवेल्थ खेल हुए।  इसलिए यहां तमाम विस्तरीय स्टेडियम बने। इनमें उच्च कोटि की सुविधाएं दी गई।  इसके बावजूद दिल्ली भी बहुत सारे खिलाड़ी देश को नहीं दे रही है। इन पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार एवं पूर्व सांसद हैं)

आरके सिन्हा


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