पर्यावरण : पेड़ों पर भी बांधी जाती है राखी

Last Updated 11 Aug 2022 01:36:00 PM IST

चिपको के बाद रक्षा सूत्र आंदोलन 1994 में वनों की व्यावसायिक कटाई के खिलाफ प्रारंभ हुआ था।




पर्यावरण : पेड़ों पर भी बांधी जाती है राखी

उत्तराखंड में भिलंगना, बालगंगा, धर्म गंगा, जलकुर, अलकनंदा, भागीरथी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में 10-11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रयाला, चौरंगी खाल, हरसिल, हारूंता, अडाला आदि वन क्षेत्रों में व्यावसायिक कटाई प्रारंभ हुई थी। इससे चिंतित होकर नवयुवकों ने एक पर्यावरण टीम गठित करके वनों में जाकर कटान का अध्ययन किया। पाया कि वन विभाग ने वन निगम के साथ मिलकर हजारों हरे पेड़ों पर छपान कर रखा था और अंधाधुंध कटान हो रहा था। इसकी सूचना मिलने पर ग्रामीण सजग हुए। उन्होंने जानने का प्रयास किया कि वन निगम आखिर, किसकी स्वीकृति से हरे पेड़ काट रहा है।

पता चला कि क्षेत्र के ग्राम प्रधानों से ही वन विभाग ने मुहर लगवा दी थी कि उनके आसपास के जंगलों में काफी पेड़ सूखे हुए हैं, जिसके कारण गांव की महिलाएं जंगल में आना-जाना नहीं कर पा रही हैं। दुर्भाग्य की बात यह थी कि प्रतिनिधियों को ही जंगलों को काटने का ठेका मिला हुआ था जिसके कारण ग्रामीणों को पहले अपने ही जनप्रतिनिधियों से संघर्ष करना पड़ा। वन कटान रोकने के लिए टिहरी-उत्तरकाशी के थाती, खवाड़ा, भेटी, डालगांव, दिखोली, चौंदियाटगांव, भेटियारा, कमद, मुखेम, हरसिल, मुखवा, उत्तरकाशी आदि गांव के लोगों ने बैठक में निर्णय लिया कि पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे जाएंगे। इसे रक्षा सूत्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

इसकी मांग थी कि जंगलों से सर्वप्रथम लोगों के हक हकूक पूरे होने चाहिए और कटान का सर्वाधिक दोषी वन निगम में आमूलचूल परिवर्तन करने की मांग उठाई गई। यह भी मांग थी कि गांव वालों की आवश्यकता की पूर्ति के बाद जंगल में इससे अधिक वन उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं, तो निश्चित ही इसका इस्तेमाल दूसरी जगह होना चाहिए। ऊंचाई की दुर्लभ वन प्रजाति कैल, मुरैंडा, खरसू, राई, दालचीनी, देवदार आदि की लाखों प्रजातियों को बचाने का काम रक्षा सूत्र आंदोलन ने किया है। इन वन प्रजातियों के कारण वष्रा नियंत्रित रहती है, और निचली घाटियों की ओर पानी के स्रेत निकल कर आते हैं। रक्षा सूत्र आंदोलन के कारण महिलाओं का पेड़ों से भाइयों का जैसा रिश्ता बना है। जिस तरह चिपको आंदोलन की महिला नेत्री गौरा देवी ने जंगल को अपना मायका कहा है, उसको रक्षा सूत्र आंदोलन ने मूर्त रूप दिया है। प्रभावी रूप से वनों पर जनता के पारंपरिक अधिकारों की रक्षा का बीड़ा उठाया है।

हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान ने रक्षा सूत्र आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए ग्राम वन के विकास-प्रसार पर भी ध्यान दिया। इसके अंतर्गत जहां-जहां लोग परंपरागत तरीके से वन बचाते रहे हैं, और इसका संतुलित दोहन भी करते हैं, ऐसे कई गांवों में ग्राम वन के संरक्षण के लिए पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे जाते हैं। ग्राम वन की व्यवस्था गांव आधारित चौकीदारी प्रथा से की जाती है। इसके कारण गांव वालों की चारपत्ति, जंगली जानवरों से खेती व फसल सुरक्षा, पड़ोसी गांव से भी जंगल की सुरक्षा की जाती है।

इस कारण महिलाओं के कष्टमय जीवन को राहत मिलती है। वन संरक्षण व संवर्धन के साथ-साथ जल संरक्षण के काम को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया गया। गांव-गांव महिला संगठनों द्वारा अग्नि नियंत्रण के लिए भी स्थान-स्थान पर रक्षा सूत्र आंदोलन चल रहा है। इस कार्य में उत्तराखंड की अनेकों क्रांतिकारी महिलाएं आगे आई जिनमें मंदोदरी देवी, जेठी देवी, सुशीला पैन्यूली, सुमति नौटियाल, बसंती नेगी, मीना नौटियाल, कुंवारी कलूड़ा, गंगा देवी चौहान, हिमला, विमला, उमा बिष्ट, अनीता बिष्ट आदि शामिल हैं।

रक्षा सूत्र आंदोलन की सफलता ने वनों के प्रति नई दृष्टि को जन्म दिया। अब उत्तराखंड में विभिन्न इलाकों में वन आंदोलन चलने लगे हैं। रक्षा सूत्र कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष सघन वृक्षारोपण के साथ-साथ वनों को बचाने के लिए पेड़ों पर रक्षा सूत्र भी बांधते हैं ताकि लोगों की पेड़ों से आत्मीयता बनी रहे। कोविड-19 के दौरान कई क्षेत्रों में व्यावसायिक दोहन बड़ी मात्रा में हो रहा था। इसकी सूचना वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को दी गई थी जिसके बाद उत्तराखंड में हजारों पेड़ों को कटने से बचाया गया है।

वन निगम की ‘वनों को काटो और बेचो’ के कारण ही लोगों ने चिपको के बाद पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे हैं, जो इतने तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि जल, जंगल, जमीन की एकीकृत समझ बनाने के प्रति लोगों को जागरूक करता आ रहा है। स्कूल-कॉलेजों के बच्चे वृक्षारोपण के दौरान पेड़ों पर राखी बांधते हैं। रक्षाबंधन के पर्व पर भाई-बहन के अलावा पेड़ों पर भी रक्षा सूत्र बांधते हैं ताकि वे समय-समय पर घास, लकड़ी, पानी की आपूर्ति करें और उसके बदले समाज उनकी रक्षा के लिए तैयार रहें। वनों की व्यावसायिक कटाई के खिलाफ रक्षा सूत्र आंदोलन लगातार जारी है।
(लेखक रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रेरक हैं)

सुरेश भाई


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