बतंगड़ बेतुक : मां काली झल्लन के सपने में
झल्लन निकट आया और धीमे से हमारे कानों में फुसफुसाया, ‘ददाजू, कल रात हम एक सपना देखे हैं, सपने को कई कोनों से देखे-परखे हैं, पर समझ नहीं आ रहा है कि आपको अपने सपने के बारे में बताएं या फिर चुपचाप चुप्पी मार जायें।’
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हमने कहा, ‘इसमें क्या है, सपना तेरा है, तेरे सपने पर अधिकार तेरा है, अब ये तेरी मर्जी है चाहे तो बतिया ले चाहे तो जुबान पर लगाम लगा ले।’ झल्लन बोला, ‘सच कहें ददाजू, वह सपना बार-बार हमारी आंखों के आगे उतर रहा है, आपको बताने का मन भी कर रहा है पर सोचते हैं कि बताने से कुछ अनर्थ न हो जाये और हमारा सुंदर सपना धमकियों-आंदोलनों के बवंडर में न खो जाये।’ हमने मुस्कुराते हुए कहा, ‘पता नहीं तूने सपने में ऐसा क्या देख लिया है जिसने तुझे बताने-न-बताने की दुविधा में घेर दिया है?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, सपने के बारे में थोड़ा बाद में बताएंगे, पर पहले ये बताइए कि देश में ये क्या बवाल हो रहा है, लोगों के दिमागों का ये कैसा हाल हो रहा है? पहले पैगम्बर की शान में गुस्ताखी हुई तो बवाल कट गया और अब काली की शान में गुस्ताखी हुई है तो फिर धमाल मच गया। क्या हमारे देवी-देवता, पीर-पैगम्बर इतने कमजोर हैं कि कोई बौखलाहट में कुछ बोल दे या कोई सनकी फनकार अपनी कला की तराजू पर थोड़ा इधर से उधर तोल दे तो तुरंत उनकी शान घट जाती है और लोगों के दिमाग में गुस्से की मिसाइल फट जाती है?’
हमने कहा, ‘झल्लन, आस्था चीज ही ऐसी है कि अगर किसी के मुंह से थोड़ा इधर का उधर निकल जाये या कोई अपनी सनक में आस्था के पैमाने से इधर का उधर फिसल जाये तो इसे तुरंत चोट लग जाती है और यह क्रुद्ध नागिन की तरह किसी को भी डसने पर उतर आती है। यह इंसान के दिल-दिमाग के ढक्कन बंद कर देती है और तार्किक तरीके से सोचने की उसकी शक्ति को कुंद कर देती है। जिस क्षेत्र में न कोई तर्क काम में आता है, न विवेक काम में आता है, न विज्ञान काम में आता है वह क्षेत्र सचमुच बहुत खतरनाक हो जाता है और सभ्य समाज के ताने-बाने के लिए विनाशक हो जाता है। इसीलिए आस्था को अंधी कहा जाता है और इसको छेड़ने से बचकर चला जाता है। रही देवी-देवता, पीर-पैगम्बरों के कमजोर होने की बात तो अपने आप में न ये ताकतवर होते हैं न कमजोर होते हैं, कमजोरी और ताकत का प्रदर्शन तो वे आस्थांध लोग करते हैं जो इनसे जुड़े होते हैं।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, एक अल्पबुद्धि फिल्म निर्माता छोकरी ने खुद को प्रखरबुद्धि मानते हुए काली के हाथ में खप्पर की जगह सिगरेट लगाकर और त्रिशूल की जगह एलजीबीटी का झंडा थमाकर नवनारी शक्ति का प्रदर्शन कर लिया तो बताइए इससे शत्रूपा, बहुरूपा शक्ति अवतार मां काली का अपमान कैसे कर दिया?’ हमने कहा, ‘झल्लन, किसी भी देवी-देवता की स्थापित छवि को विरूपित करना अवांछनीय कृत्य के तौर पर जाना जाता है, इस छवि में देवी-देवता की शक्ति छिपी हो या अशक्ति मगर इसे उनका अपमान माना जाता है। जिस समाज में तर्क और विचार के रूप-स्वरूप कमजोर होते हैं उस समाज में आस्था के विस्फोट बहुत उग्र और विस्फोटक होते हैं। हिंदुस्तान में लोगों का वैज्ञानिक विवेक सो रहा है इसीलिए विभिन्न आस्थाओं के नाम पर जो तांडव हो रहा है, वह हो रहा है। खैर, यह अंध-आस्था और जाग्रत-विवेक की लड़ाई है जो सदियों से चलती आ रही है और सदियों तक चलती रहेगी, कहीं विवेक जीतता रहेगा तो कहीं आस्था जीतती रहेगी। पर ये बता तू कौन सा सपना देखकर आया है जो हमें दिखाना चाह रहा था, शायद कुछ बताना चाह रहा था?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपकी बातें सुनकर तो हमारी थोड़ी-थोड़ी रुलाई छूट रही है और सपना बताने की हमारी हिम्मत ही टूट रही है। फिर भी हम आप पर भरोसा जताए देते हैं और अपना सपना आपको सुनाए देते हैं। कसम खाइए कि आप इसे सोशल मीडिया पर नहीं ले जाएंगे, नहीं तो हमारी जान के लाले पड़ जाएंगे।’ हमने कहा, ‘आखिर बता तो सही कि तेरे सपने में ऐसा क्या डरावना है जिसके बारे में किसी और को नहीं जानना है?’ झल्लन धीरे से बोला, ‘ददाजू, कल हम सपने में काली मां को देखे रहे, उनके दर्शन किये और उनसे बात भी किये रहे। पर ददाजू, हमारे सपने की काली मां खड्ग की जगह संविधान उठाए हुए थीं, नरमुंड की जगह अपनी हथेली पर वेत कपोत बिठाए हुए थीं, अपने खप्पर में रक्त की जगह रस भरे हुए थीं, मुंडमाल की जगह कंजमाल धारण किये हुए थीं और अपना एक हाथ सबके लिए आशीर्वाद में उठाए हुए थीं। अब ददाजू, अगर हम मां काली की इस छवि को सोशल मीडिया पर ले जाएंगे, भक्तों के बीच पहुंचाएंगे तो आप ही सोचिए कि स्थापित छवि को तोड़ने के जुर्म में कितनी बड़ी सजा पाएंगे। सो, सोचे हैं कि आपको बता दिये सो बता दिये पर अपना सपना किसी और को नहीं बताएंगे और उम्मीद है कि आप भी इसे यहीं पचा जाएंगे।’
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