घृणापराध और मीडिया

Last Updated 10 Jul 2022 11:21:57 AM IST

जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे को एक आदमी ने एक सभा के दौरान दो गोलियां मारीं। शिंजो की मौत हो गई।


घृणापराध और मीडिया

यद्यपि सुरक्षाकर्मियों ने उस जापानी हत्यारे को तुरंत पकड़ लिया और उसकी तस्वीर भी मीडिया में दिखी। लेकिन क्या जापान के मीडिया ने उस ‘कातिल’ को किसी हीरो की तरह देर तक दिखाया? जी नहीं। जापानी मीडिया ने हत्यारे की एक झलक दिखलाने के अलावा कुछ न दिखाया। कहने का मतलब यह कि इस घटना के जापानी मीडिया के कवरेज से हमारा मीडिया बहुत कुछ सीख सकता है।
हम देख सकते हैं कि विदेशी मीडिया ‘खलों’ को दिखाते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतता है जबकि अपना मीडिया अपने दैनिक ‘खलों’ को कई बार इतनी देर तक और इतनी तरह से दिखाता है कि एक ‘दुर्दात दुष्ट’ भी अपने को ‘हीरो’ समझने लगता है। अपने मीडिया की इस ‘असावधानी’ को अपने यहां का हर ‘खल’ और हर ‘अपराधी’ खूब पहचानता है। इसीलिए वह अपने को लॉन्च करने के लिए मीडिया का पूरी तरह इस्तेमाल करता है। ऐसे ‘खल’ प्राय: अपने ‘एक्शन प्लान’ का ‘एडवांस वीडियो’ बनाते हैं, उसको सोशल मीडिया पर ‘वायरल’ कराते हैं ताकि लोग उनका ‘रुतबा’ मानें कि वे जो कहते हैं, वो करते हैं। ऐसा करके वे अपने को किसी बड़ी ‘सेलीब्रिटी’ की तरह पेश करते हैं। जिस तरह कोई फिल्म निर्माता फिल्म का ‘टीजर’ एडवांस में देता है। फिर फिल्म ‘रिलीज’ करता है, उसी तरह  कई ‘खल’ भी अपने संभावित ‘एक्शन’ के ‘टीजर’ को पहले सोशल मीडिया पर देकर वायरल करते हैं, और फिर अपने ‘एक्शन’ के वीडियो को ‘रिलीज’ करते हैं। टीवी और सोशल मीडिया प्लेटफार्मो के इस आवारा दौर में ‘घृणापराध की संस्कृति’ में भी फर्क आया है।

पहले के अपराधी ‘प्रमाण’ छिपाते थे। आज के ‘खल तत्व’ अपने ‘खलत्व’, अपने ‘घृणापराध’ को छिपाने की जगह उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर दिखाते हैं। ऐसे वीडियो कच्चे दिमागों पर असर डालते हैं। नये ‘घृणापराधियों’ की ‘कूट कुटिलता’ को समझने की जगह अपना मीडिया कई बार ऐसी घटना को भी किसी सामान्य ‘घटना’ की तरह दिखाता है, और उसके भी ‘पक्ष विपक्ष’ गिनाने लगता है। नये ‘घृणापराधी’ मीडिया की इस असावधानी का पूरा फायदा उठाते हैं। इसीलिए, अपने मीडिया को भी समझना होगा कि आज के दौर में न केवल ‘घृणापराध’ की प्रकृति और संस्कृति, दोनों बदल गई हैं, बल्कि ऐसे ‘खल तत्वों’ ने अपने फायदे के लिए मीडिया का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। अगर आज एक से एक ‘भड़काउ’ बयान, ‘घिनौनी धमकियां’ और ‘घृणामूलक  वचन’ बोले जाते हैं, तो इसीलिए कि बनाने वाले जानते हैं कि मीडिया ऐसी ‘भड़काउ’ खबरों को तुरंत उठा लेगा, फिर इन पर एक-दो दिन बहस कराएगा और ऐसी भड़कबाजी करने वाला/धमकी देने वाला एक दो दिन तक अपने लोगों के बीच ‘सुपर हीरो’ बना रहेगा। ऐसी न जाने कितनी ‘भड़कबाजियां’ और ‘धमकियां’ पिछले दिनों टीवी खबर चैनलों में कई- कई दिन तक छाई रहीं, और न जाने कितने ‘नामालूम’ तत्व मुख्यधारा के मीडिया में ‘मेन स्ट्रीम’ होकर ‘हीरो/हीरोइन’ बने हैं।
ध्यान से देखें तो ऐसे ‘भड़कबाज’ और ‘धमकीबाज’ तीन तरह के होते हैं : एक, जो पहले कुछ ‘औल फौल’ बोलकर मीडिया में छा जाते हैं, फिर ‘माफी मांगकर’ पतली गली से निकल जाते हैं। दूसरे,  जो अपनी पब्लिसिटी के लिए ऐसी भड़कबाजी का जानबूझकर इस्तेमाल करते हैं, और तीसरे, जो बाजाप्ता प्लान करके ‘घृणामूलक धमकी’ से ‘घृणापराध’ को अंजाम देकर अपने आप मीडिया में खबर बनाते हैं, और अपनी ‘कस्टीट्वेंसी’ को तुष्ट करते हैं, और अपनी ‘घृणांधता’ पर मुस्कुराते दिखते हैं। मीडिया को इन तीनों के बीच फर्क करना चाहिए।  समझना चाहिए कि न हर मुद्दा बहस के योग्य होता है, न हर मुददे के ‘पक्ष’ या ‘विपक्ष’ होते हैं। क्या ‘घृणा-हत्या’ का  ‘पक्ष’ भी हो सकता है या कि उसे ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ बताकर उसे उचित ठहराया जा सकता है?
 इसी तरह मीडिया को भी ‘फ्री की पब्लिसिटी’ के भुक्खड़ों से सावधान रहना चाहिए जो ‘घृणा पोस्टर’ बनाकर किसी समुदाय को चिढ़ाकर मीडिया में छाना चाहते हैं, मीडिया में बने रहने के लिए हर रोज कुछ न कुछ बकते रह सकते हैं, और जब उनका विरोध करने के लिए लोग सड़कों पर निकल पड़ें तो वे अपने को ‘विक्टिम’ की तरह पेश करने लगते हैं। जाहिर है कि बदलती ‘अपराध कल्चर’ के संदर्भ में  मीडिया को भी ‘घृणापराध’ की खबर का ‘ट्रीटमेंट’ बदलना होगा।

सुधीश पचौरी


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