जनसंख्या दिवस : आबादी और संसाधनों में संतुलन जरूरी
किसी भी देश की समृद्धि का ताना-बाना तभी बेहतर तरीके से बुना जा सकता है, जब उसकी कुल आबादी तथा उसके संसाधनों के बीच व्यवस्थित एवं तार्किक संतुलन कायम कर लिया गया हो।
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उपलब्ध संसाधन व आबादी, दोनों की स्थिति का पृथक मूल्यांकन तथा उनको एक इकाई के रूप में न देखना कतई तर्कसंगत नहीं है। दोनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं, उनको इकहरेपन में देखना इनकी जमीनी हकीकत पर पर्दा डालने की तरह है। जरूरी है कि दोनों की पारस्परिकता का वास्तविक अवलोकन करते हुए दोनों के लिए योजनाएं बनाकर उनका क्रियान्वयन किया जाए।
सही मायने में जनसंख्या देश पर बोझ नहीं बल्कि एक शक्ति है। परन्तु, जनसंख्या की असंतुलित वृद्धि या संसाधनों का असंतुलित व बेतहाशा दोहन, दोनों ही विस्फोटक हैं। विश्व की कुल आबादी का आधा या कहें कि इससे ज्यादा हिस्सा एशियाई देशों में निवास करता है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरूकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे दिखाई देने लगे हैं। इन देशों ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित नहीं की तो ये देश दुनिया के सामने असंतुलित विकास की श्रेणी में होंगे जहां संसाधन तो बढ़ेंगे परन्तु जनसंख्या वृद्धि दर अधिक होने के कारण संसाधन हमेशा अपर्याप्त ही साबित होंगे यानी जनसंख्या वृद्धि ही इस दौड़ में जीतेगी जिससे नागरिकों के गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर में गिरावट आएगी।
इस समय भारत की आबादी लगभग 1.39 अरब है। यहां प्रति मिनट 34 बच्चे जन्म लेते हैं यानी एक दिन में हमारे देश की आबादी में लगभग 50 हजार की वृद्धि हो जाती है। आज भारत चाहे जितनी भी प्रगति कर रहा हो या शिक्षित होने का दावा करता हो पर जमीनी हकीकत यह है कि आबादी का बड़ा हिस्सा जनसंख्या विस्फोट के प्रति जागरूक नहीं है। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा जागरूकता के लिए अनेक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं परन्तु केवल किसी एक विभाग, संस्था या व्यक्ति जनसंख्या विस्फोट के प्रति समग्र जनमानस को जागरूक नहीं कर सकता। लिहाजा, व्यापक जन आंदोलन की आवश्यकता है।
11 जुलाई, 1987 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब हुई थी, तब से इस विशेष दिन को विश्व जनसंख्या दिवस घोषित कर हर साल जनसंख्या नियंत्रण के अलार्म को जेहन में रखने और परिवार नियोजन का संकल्प लेने के दिन के रूप में याद किया जाने लगा। इस लिहाज से ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ दुनिया के लिए विशेष महत्त्व का दिन है क्योंकि आज हर विकासशील और विकसित देश जनसंख्या विस्फोट से चिंतित है। विकासशील देश अपनी जनसंख्या और संसाधन के बीच तालमेल बैठाने में माथापच्ची कर रहे हैं, तो विकसित देश रोजगार और पलायन के बाद आश्रय की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं। परेशानियों की सूची इतनी लंबी है कि उस पर तफसील से लिखा जाना नामुमकिन है। विकसित देशों ने भले ही जनसंख्या नियंत्रण के उपाय अपना कर वृद्धि दर को नियंत्रित कर लिया हो, लेकिन ये देश खुद ही असंतुलित विकास की उलझन में फंस गए हैं।
अनेक परिवार हैं जो अधिक बच्चों की मौजूदगी को परिवार की ताकत के रूप में देखते हैं। इस सोच से ग्रसित लोग असल में देश और समाज के लिए जनसंख्या विस्फोट के खतरों से बेखबर हैं। सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी विद्यालयों में जनसंख्या स्थिरीकरण विषय पर नियमित रूप से व्याख्यानमालाओं का आयोजन किया जाए ताकि यह पीढ़ी युवा होने पर संतुलित परिवार की परिकल्पना को साकार बनाने में अपना योगदान दे सके। पंचायतीराज विभाग भी अहम भूमिका निभा सकता है। स्वास्थ्य विभाग भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाते हुए वर्ष भर दंपत्ति संपर्क अभियान चलाकर पात्र दंपत्तियों को अपने क्षेत्रस्तरीय कार्यकर्ताओं के माध्यम से ‘संतुलित परिवार’ की आवश्यकताओं तथा परिवार नियोजन के साधानों के बारे में बेहतर एवं उपयोगी जानकारी प्रदान कर सकता है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से ‘संतुलित परिवार’ के लिए जन जागरण का महत्त्वपूर्ण काम सहजता से कराया जा सकता है। समाजसेवी संगठनों की भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अब बात जनप्रतिनिधियों की। जनप्रतिनिधि समाज को जनसंख्या के प्रति सजग करने के प्रति जागरूक करने में महती भूमिका निभा सकते हैं। मीडिया व सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म भी लोगों को जागरूक करने का प्रभावी माध्यम बन सकता है।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि यदि आप अपनों से, अपने देश से प्रेम करते हैं, तो आज के परिप्रेक्ष्य में संतुलित विकास की मूल अवधारणा को समझना आवश्यक होगा। संसाधनों का विकास, जनसंख्या वृद्धि व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, इन सभी को एक साथ समझकर संतुलित विकास और संतुलित परिवार की संरचना को स्वीकार करना होगा।
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