महाराष्ट्र भाजपा : पांचों उंगली घी में
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, जिसका उसे बहुत लाभ मिलने वाला है।
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शिंदे के गले में देवेंद्र फडणवीस की घंटी टांग दी गई है। शिंदे तो हाथी के दांत की तरह सजावटी मुख्यमंत्री रहेंगे। असली सत्ता तो उपमुख्य मंत्री फडणवीस की मार्फत भाजपा के हाथ में रहेगी। महाराष्ट्र देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र है, और आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत है। इसलिए महाराष्ट्र की सरकार पर काबिज हो कर आठ वर्षो में दुनिया की सबसे धनी पार्टी बन चुकी भाजपा अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत कर लेगी।
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए उपमुख्य मंत्री का पद स्वीकारना आसान नहीं था। महाराष्ट्र के सर्वमान्य भाजपा नेता के लिए यह परिस्थिति बहुत विचित्र बन गई। उन्हें आला कमान के आदेश से अपमान का घूंट पीना पड़ा। हालांकि उन्हें समझाया यही गया होगा कि इस व्यवस्था में भी सत्ता के केंद्र वही रहेंगे। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया जाता है, उसके पर निकलने में देर नहीं लगती। अनेक प्रांतों के उदाहरण हैं, जहां कठपुतली मान कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जिसे बिठाया गया, वही कुछ दिनों में अपने कड़े तेवर दिखाना शुरू कर देता है। कभी-कभी तो वो नेता गद्दी पर बिठाने वाले पार्टी के बड़े नेताओं को ही आंख दिखाने लगते हैं। भाजपा के हाथ में एक ही चाबुक है, जिससे एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायकों को अपनी मुट्ठी में रख सकती है। वो है भाजपा के तरकश में ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियां। चूंकि पाला पलटने वाले शिवसेना के बागी विधायकों में ज्यादातर विधायक पहले से ही ईडी के शिकंजे में हैं।
इसलिए जरा सी चूं-चपड़ करने पर उनकी कलाई मरोड़ी जा सकती है। महाराष्ट्र की राजनीति को नजदीक से जानने वालों का कहना है कि इन विधायकों की छवि पहले से ही विवादास्पद है। इसलिए इन्हें नियंत्रित करना भाजपा आला कमान के लिए बहुत आसान होगा। इस पूरी डील में भाजपा का लक्ष्य शिवसेना का आधार खत्म करना है। इसीलिए उसने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है। अब भाजपा शिवसेना की पकड़ वाले मतदाताओं के बीच पैंठ बढ़ाने का हर संभव प्रयास करेगी। यह बात दूसरी है कि बाला साहेब ठाकरे की विरासत के प्रति समर्पित मराठी जनमानस अब भी उद्धव ठाकरे के साथ खड़ा हो और अगले चुनावों में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे को सहानुभूति लहर का लाभ मिल जाए और भाजपा और शिवसेना के बाजी विधायकों को मराठी जनता के कोप का भाजन बनना पड़े। यह तभी संभव होगा जब उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे आराम त्याग कर जनता के बीच अभी से निकल पड़ें और आंध्र प्रदेश के जगन रेड्डी या तेलंगाना के केसी राव की तरह गांव-गांव नगर-नगर जा कर महाराष्ट्र की जनता को अपने समर्थन में खड़ा कर दें। इस प्रक्रिया में अगर उद्धव ठाकरे को शरद पवार की सलाह और सहयोग मिलता है, तो उनकी स्थित और भी मजबूत हो सकती है। हालांकि भाजपा अपने धनबल, बाहुबल और सत्ता के बल का उपयोग करके उद्धव ठाकरे को आसानी से सफल नहीं होने देगी।
यह भी सच है कि पश्चिम बंगाल की जनता की तरह महाराष्ट्र की जनता भी अपनी संस्कृति, जाति और भाषा के प्रति भरपूर आग्रह रखती है। इसलिए उद्धव ठाकरे को हाशिए पर धकेलना आसान नहीं होगा। जो भी हो कुल मिलाकर ये सारा प्रकरण लोकतंत्र में आई भारी गिरावट का प्रमाण है। ये गिरावट भाजपा के कारण ही नहीं आई जैसा विपक्ष आरोप लगा रहा है। आयाराम-गयाराम की राजनीति और विपक्षी दलों की प्रांतीय सत्ताओं को पलटने की साजिश कांग्रेस के जमाने में ही शुरू हो गई थी, जो भाजपा के मौजूदा दौर में परवान चढ़ गई है। अंतर यह है कि कांग्रेस ने न तो कभी अपने दल को नैतिक और दूसरों से बेहतर बताने का दावा किया और न ही विपक्ष के प्रति इतना द्वेष, घृणा और विषवमन किया जैसा भाजपा का मौजूदा नेतृत्व हर समय करता आ रहा है। इससे लोकतंत्र में राजनैतिक कटुता और असहजता बढ़ी है। चूंकि भाजपा का हर नेता पिछली सरकारों और वर्तमान विपक्षी दलों को डंके की चोट पर भ्रष्ट और खुद को ईमानदार बताता है, इसलिए स्वाभाविक ही है कि सामान्य व्यक्ति भाजपा से नैतिक आचरण की अपेक्षा करे। पर अनुभव में ऐसा नहीं आ रहा। सत्ता में बैठे लोग बदल जरूर गए हैं पर ठेकों और तबादलों में भ्रष्टाचार की मात्रा एक अंश भी घटी नहीं है, बल्कि कई जगह तो पहले के मुकाबले बढ़ गई है।
ऐसे में इस तरह के सत्ता परिवर्तनों को आम मतदाता बहुत अरु चि और शक से देखता है। दल के कार्यकर्ताओं की बात दूसरी है। उनका दल जब जा-बेजा हथकंडे अपना कर सत्ता पर काबिज हो जाता है, तो स्वाभाविक है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ जाती है। पर महाराष्ट्र की ताजा घटनाओं ने भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी निराश किया है। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री के पद पर उनके नेता देवेंद्र फडणवीस को ही बिठाया जाएगा, नितिन गड़करी तक को नहीं, जो लंबे समय से इस पद के दावेदार हैं, और जिन्हें नागपुर का वरदहस्त प्राप्त है। कार्यकर्ताओं को भी अब यही सोच कर संतोष करना पड़ेगा कि इस प्रयोग से शायद भविष्य में उनके दल की स्थिति महाराष्ट्र में वर्तमान स्थिति से बेहतर हो जाए। इस पूरे प्रकरण में जो सबसे रोचक पक्ष है वो ये की देश के सबसे कद्दावर नेता और महाराष्ट्र की राजनीति के कुशल खिलाड़ी शरद पवार भी फिलहाल भाजपा के चाणक्य अमित शाह से मात खा गए जो शरद पवार की फितरत और मराठा खून के विपरीत है।
ऐसे में यह मान लेना कि आज अपनी हारी हुई बाजी से हताश हो कर शरद पवार चुप बैठ जाएंगे, नासमझी होगी। अपने कार्यकर्ताओं और सांसद बेटी सुप्रिया सुले के राजनैतिक भविष्य पर लगे इस ग्रहण से निजात पाने की पवार भरसक कोशिश जरूर करेंगे। उधर, कांग्रेस भी इस विषम परिस्थिति उद्धव ठाकरे का दामन छोड़ने को तैयार नहीं है। इसलिए महाराष्ट्र विकास आघाड़ी और भाजपा के बीच रस्साकशी जारी रहेगी जिससे महाराष्ट्र की जनता को कोई लाभ नहीं होगा।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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