हालिया घटनाक्रम : बदनाम करने की साजिश

Last Updated 22 Apr 2022 12:16:26 AM IST

दिल्ली के जहांगीरपुरी में जिस तरह से हनुमान जन्मोत्सव की शोभा यात्रा पर पथराव, तलवारबाजी और बोतलों से हमला किया गया, जिस तरह से मुस्लिम महिलाओं ने पुलिसवालों को निशाना बनाया, जिस तरह से जहांगीरपुरी के स्थानीय मुस्लिम गुंडों ने पुलिस पर गोलियां चलाई और उसके बाद जिस अंदाज में सेक्युलर ब्रिगेड ने इस सारे घटनाक्रम का दोष हिंदुओं के माथे मढ़ने का प्रयास किया, सारा दोष शोभायात्रा और पुलिस को खुफिया सूचना क्यूं नहीं मिली, कह कर पुलिस के माथे पर भी इसका ठीकरा फोड़ने का प्रयास किया गया, इन सबके पीछे एक सुनियोजित तंत्र हैं।


हालिया घटनाक्रम : बदनाम करने की साजिश

इस सुनियोजित तंत्र की जड़ें भारत और पाकिस्तान समेत समग्र भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के पास है।
जहांगीरपुरी के पहले राम नवमी की शोभायात्रा में आठ प्रदेशों के दस स्थानों पर मुस्लिम बहुल इलाकों में हमले हुए। इन हमलों के लिए एक विशेष समय चुना गया। जिस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत की यात्रा पर आने वाले थे। अमेरिका और ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारवादी संगठन सक्रिय हैं। किसी भी देश के बारे में दुनिया जब कोई धारणा बनाती है, तो उस धारणा में इन दोनों देशों की बड़ी भूमिका होती हैं। पिछले डेढ़ सौ वर्षो में वैश्विक चिंतन और किसी भी देश की छवि इन दोनों देशों के बुद्धिजीवियों द्वारा गढ़ी गई तस्वीर के आधार पर ही देखी जाती रही है। ध्यान होगा, जब डोनाल्ड ट्रंप भारत यात्रा पर आए थे, उसी समय सीएए विरोधी आंदोलन के नाम पर दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। उन दंगों में 56 निर्दोषों की जान गई। उन दंगों की तैयारियां भी काफी पहले से की गई थीं, इसका खुलासा जांच में हो चुका है।
जब दंगाइयों से रास्ता खुलवाने की मांग को लेकर भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता कपिल मिश्र ने मोर्चा निकाला तो उसी को आधार बना कर उसे उकसावे की कार्रवाई बता कर दिल्ली में भयंकर रक्तपात किया गया। इस मामले में आम आदमी पार्टी के पाषर्द ताहिर हुसैन और कांग्रेस पाषर्द इशरत जहां की भूमिकाएं जांच एजेंसियों के सामने आ चुकी हैं। उस समय हुए दंगों के दौरान पूरी दुनिया को यह बताने की चेष्टा की गई कि भारत में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकाल में भारत के अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित किया जा रहा है। इसी प्रकार जैसे ही खरगोन में दंगाइयों के खिलाफ शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने बुलडोजर का प्रयोग किया, तत्काल पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम समुदाय के सामने भारत में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार की बांग दे दी। जहांगीरपुरी की घटना के बाद पाकिस्तान के नये-नवेले प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने एक बार फिर भारत विरोधी बांग दी है। भारत में मुसलमान असुरक्षित है, यह बारंबार सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। कर्नाटक हाईकोर्ट स्कूलों में गणवेष के रूप में हिजाब को अस्वीकार करने का आदेश देता है, तब भी पाकिस्तान की तरफ से यह प्रयास किया जाता है कि भारत में अल्पसंख्यक अपने कपड़े पहनने के लिए भी आजाद नहीं हैं।

नवरात्रि के समय किसी महानगरपालिका द्वारा वहां पर मांसाहार की बिक्री पर रोक लगा दी जाती है, तो इसे मुसलमानों के आहार की स्वतंत्रता को रोकने के रूप में प्रसारित किया जाता है। यह सभी घटनाक्रम एक सुनियोजित योजना के अंग हैं। इसमें भारत के लोकतांत्रिक और सर्वसमावेषी ढांचे को बदनाम करने का प्रयास है। बीते एक अरसे से पाकिस्तान, श्रीलंका समेत दक्षिण एशिया के अधिकांश देश कंगाली के कगार पर पहुंच चुके हैं। चीन की आर्थिक व्यवस्था भी मंद गति को प्राप्त है। यूरोप इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है, अमेरिका की आर्थिक वृद्धि की दर कोरोना काल के बाद मंद पड़ गई है। रूस और यूक्रेन के युद्ध के परिणामस्वरूप जिस तरह से ईधन आपूर्ति का संकट खड़ा हुआ है, उसके कारण भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का ढांचा चरमरा रहा है। इसके बावजूद मोदी जी के नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी अर्थव्यवस्था होकर भी सुदृढ़ बताई जा रही है। बीते दो वर्षो से भारत अपने 80 करोड़ देशवासियों को मुफ्त राशन दे कर उन्हें अति गरीबी के गर्त में जाने से बचाने में कामयाब रहा है।
इसी दौरान वह अफगानिस्तान को गेहूं और वैक्सीन जैसी मदद तथा संकटग्रस्त श्रीलंका को हर तरह की मदद देकर दुनिया के सामने अपना मानवीय चेहरा भी प्रस्तुत करने में कामयाब रहा है। ऐसे में भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। निवेश की इन संभावनाओं को रोकने का एकमात्र तरीका है कि भारत में कानून-व्यवस्था की स्थिति को गड़बड़ बताया जाए। भारत की सरकार को अल्पसंख्यक उत्पीड़क बताया जाए और इस आधार पर भारत में मध्य एशिया के देशों द्वारा आने वाले निवेश को रोक दिया जाए, जबकि आज सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देश भी पाकिस्तान के लाख दुष्प्रचारों के बावजूद हमारे कश्मीर में निवेश को तैयार दिख रहे हैं। इस सोचे-समझे षड्यंत्र के तहत ही ये सारी कार्रवाइयां हो रही हैं, और इन कार्रवाइयों को हवा देने का काम सोनिया गांधी और कांग्रेस के सहयोगी दल लंबे समय से करते आ रहे हैं। एक साल से ज्यादा चला किसान आंदोलन भी ऐसे ही एक षड्यंत्र का हिस्सा था, जिसकी आग में पंजाब में खुद कांग्रेस को ही झुलसना पड़ा।
जिस उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसान आंदोलन के जरिए भड़काने की साजिश रची गई थी, वहां तो कथित किसान नेता राकेश टिकैत के ही गांव में उनकी हवा निकल गई। चुनाव में इस करारी मात के बाद योगेंद्र यादव जैसे बहुरूपिये खुद मान चुके हैं कि उनके आंदोलन का किसानों के हित से कोई लेना-देना नहीं था, वह तो सिर्फ  चुनाव में भाजपा को हराने की भूमिका तैयार कर रहे थे। दूसरी ओर अब गेहूं कटने के बाद किसानों को एमएसपी वाली सरकारी मंडियों के बजाय निजी मंडियों में आसानी से मूल्य भी अधिक मिलता दिखाई दे रहा है। ‘अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत’ की तर्ज पर अब ये आवाजें भी उठने लगी हैं कि किसानों के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गए कानून रद्द किए जाने से किसानों का ही नुकसान हुआ है। खासतौर से छोटे किसानों का।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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