योगी आदित्यनाथ : मठ से प्रदेश की सेवा तक
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति का पर्व हमेशा ही विशेष होता है। न सिर्फ गोरखपुर एवं भारत के दूसरे हिस्सों, बल्कि नेपाल तक के आस्थावान लोग मकर संक्रांति के दिन महायोगी गुरु गोरखनाथ पर खिचड़ी चढ़ाने गोरखनाथ मंदिर आते हैं।
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इस बार भी तड़के तीन बजे से ही यह सिलसिला शुरू हो गया था। गोरक्षपीठाधीर योगी आदित्यनाथ जी के खिचड़ी चढ़ाने के बाद दूर-दूर से आए लोग खिचड़ी चढ़ा रहे थे। जय-जयकार हो रही थी। बाहर खिचड़ी के मेले की धूम थी। इसी बीच दोपहर बाद खबर आई कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बार गोरखपुर शहर से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस खबर ने गोरखनाथ मंदिर परिसर में मौजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कितने गुना बढ़ा दिया होगा, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
गोरक्षपीठाधीर के लिए गोरखपुर से चुनाव लड़ना कोई नई बात नहीं रही है। अब तक तीन गोरक्षपीठाधीर गोरखपुर लोक सभा सीट से संसद में पहुंच चुके हैं। 1967 में पहली बार महंत दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर लोक सभा का चुनाव जीते थे, लेकिन दो साल बाद ही उनका निधन हो जाने के बाद हुए उपचुनाव में उनके शिष्य एवं तत्कालीन पीठाधीर महंत अवैद्यनाथ जीत हासिल कर लोक सभा में पहुंचे। उसके बाद 1989, 1991 एवं 1996 का चुनाव भी महंत अवैद्यनाथ ने ही जीता। फिर 1998 से 2014 तक लगातार महंत योगी आदित्यनाथ यह चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचते रहे, लेकिन तक ये सारे पीठाधीर सिर्फ अपने लोक सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
15 जनवरी को विधानसभा चुनाव के लिए घोषित हुई योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी पांच साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके एवं पुन: मुख्यमंत्री के चेहरे को मिली उम्मीदवारी थी। इसकी खुशी न सिर्फ गोरखपुर के सभी वगरे के हिंदू समाज में देखी जा सकती थी, बल्कि गोरखनाथ मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर स्थित मुस्लिम बस्ती में भी देखी जा सकती थी।
इन मुस्लिम भाइयों के शब्द तो सुनने लायक थे। पूरे प्रदेश के मुस्लिमों में भाजपा के नाम पर भय का वातावरण निर्माण करने वाले अखिलेश, प्रियंका और ओवैसी जैसे नेताओं को कम-से-कम एक बार तो इस मुस्लिम बस्ती में आकर यहां के लोगों की भावनाएं जरूर जाननी चाहिए। दरअसल, गोरक्षनाथ पीठ आज से नहीं, बल्कि सदियों से धार्मिंक, शैक्षणिक के साथ-साथ सामाजिक जनजागरण का केंद्र रहा है।
योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ ने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के समर्थन में अपना स्कूल छोड़ दिया था। फिर प्रसिद्ध चौरी-चौरा कांड में भी वह सक्रिय रहे और उन्हें गिरफ्तार भी होना पड़ा। धार्मिंक क्षेत्र की बात करें तो 1934 से ही महंत दिग्विजयनाथ अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख स्तंभ, या यूं कहें कि अगुआ रहे हैं। साथ ही आजादी के तुरंत बाद उनके ही प्रयासों से पूर्वाचल में गोरखपुर विश्वविद्यालय की नींव पड़ सकी, जिसमें पढ़कर निकले न जाने कितने नौनिहाल आज पूर्वाचल ही नहीं पूरे देश को संवारने में अपना योगदान करते आ रहे हैं।
सामाजिक अवदानों की ये श्रृंखला सिर्फ एक पीढ़ी तक सीमित नहीं रही। इस श्रृंखला को महंत दिग्विजयनाथ के शिष्य महंत अवैद्यनाथ, और फिर उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ भी निभाते आ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के सांसद रहते गोरखनाथ मंदिर में रोज जनता दरबार लगता रहा है। जहां हर धर्म-जाति-वर्ग के लोग जाकर अपनी बात कह सकते थे, और उनकी समस्याओं का समाधान होता रहा है। यही कारण है कि आज योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी पर गोरखपुर शहर के सभी लोग प्रफुल्लित दिखाई दे रहे हैं, लेकिन यह भी सही है कि योगी आदित्यनाथ जहां अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ की भांति सामाजिक सरोकारों वाले नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं, वहीं धार्मिंक चेतना के क्षेत्र में वह अपने दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ की परछाई नजर आते हैं। राजनीति उनकी पहली प्राथमिकता कभी नहीं थी। 1993 में संन्यास की दीक्षा लेने के बाद उन्हें तो गोरखनाथ मठ में गोशाला एवं भंडारे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
गोवंश से उनका वह प्रेम आज भी दिखाई देता है, जब वह एक दिन के लिए भी मठ में जाने पर कुछ पल गायों के बीच गुजारना नहीं भूलते। गायों से इसी प्रेम ने तो उन्हें मुख्यमंत्री बनने के बाद गोवंश वध पर पूर्ण प्रतिबंध का निर्णय लेने पर बाध्य किया। ‘गो-रक्ष’ पीठाधीर की उपाधि धारण करने वाला मुख्यमंत्री भला कसाइयों के हाथ गोवध होते कैसे देख सकता था? आज कैराना और मुजफ्फरनगर जैसे मुद्दों पर बड़ी साफगोई से व्यक्त किए जाने वाले उनके विचार भले वर्ग विशेष को कड़वे लगते हों, लेकिन इसी ‘वर्ग विशेष’ द्वारा उनके गोरखपुर एवं उसके पड़ोसी जिलों मऊ एवं आजमगढ़ में मचाया गया उत्पात उन्होंने न सिर्फ करीब से देखा है, बल्कि उसके प्रतिकार के लिए अपने हजारों समर्थकों के साथ जमीन पर भी उतरे हैं। जनवरी 2007 में गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों का प्रतिकार करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
कौन भूल सकता है 2005 में हुआ मऊ का सांप्रदायिक दंगा एवं माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की खुलेआम की जा रही दबंगई, जिसका प्रतिकार करने के लिए योगी आदित्यनाथ को मऊ के लिए प्रस्थान करना पड़ा था, लेकिन तत्कालीन सपा शासन ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया था, लेकिन 2008 में मुख्तार अंसारी के आतंकवाद का विरोध करने के लिए योगी सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ आजमगढ़ पहुंच ही गए थे, जहां उन्हें मुख्तार के दंगाइयों के हमले का शिकार भी होना पड़ा था। कहने का अर्थ यह कि योगी आदित्यनाथ की प्रबल हिंदुत्ववादी नेता की छवि मठ में बैठकर नहीं बन गई है। यह छवि उन परिस्थितियों ने गढ़ी है, जिनका दोहराव रोकने के लिए वह आज भी प्रतिबद्ध हैं और निश्चित रूप से जनता भी यही चाहती है।
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