दिननि चुनाव : आसान लग रही आप की राह
अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ-साथ दिल्ली नगर निगमों के होने वाले चुनाव में भी अन्य दलों के साथ-साथ भाजपा को दिल्ली सरकार में काबिज आम आदमी पार्टी (आप) से भी बड़ी चुनौती मिल रही है।
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कहने के लिए दिल्ली में नगर निगमों के चुनाव हैं, ये स्थानीय निकाय चुनाव माने जाते हैं, और इन्हें आम तौर पर असेंबली या संसदीय चुनाव से कमतर मान लिया जाता है। लेकिन दिल्ली नगर निगम के चुनाव दिल्ली के होने और नगर निगमों के स्वशासी होने से इन चुनाव का महत्त्व भी किसी राज्य के विधानसभा चुनाव या संसदीय चुनाव से कम नहीं है।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों में 15 साल (यानी तीन चुनाव जीत चुकी है) से भाजपा जीतती रही है। इन तीन चुनावों में दिल्ली सरकार की समानांतर चल रही निगम की सत्ता को कमजोर करने के लिए निगमों के वार्ड बढ़ा कर 138 से 272 किए गए। 2012 के चुनाव से पहले निगम को तीन निगमों में बांटा गया, फिर भी 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में भाजपा ही चुनाव जीती। दिल्ली की राजनीति में अपनी जगह बनाने के बाद 2017 के चुनाव में कांग्रेस की बजाय आप दूसरे नम्बर की पार्टी बन गई।
2020 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लगातार प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद आप की दिल्ली सरकार से दिल्ली नगर निगमों का विवाद बढ़ा और आप ने निगम चुनाव की तैयारी गंभीरता से शुरू कर दी। उसे लगने लगा कि नगर निकाय में भी उसका बहुमत होगा तो राजधानी को स्वच्छ रखने में दिल्ली सरकार और निगमों के बीच आये दिन होने वाली नोकझोंक का सामना नहीं करना पड़ेगा। गैर-भाजपा मतों के विभाजन और निगमों के छोटे वार्ड होने के चलते पार्टी के साथ-साथ निजी रूप से अनेक उम्मीदवारों की क्षमता से ही निगमों के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होते रहे हैं। महज 36 फीसद वोट लेकर लगातार 15 साल से निगम में भाजपा जीतती रही है। निगम की सीटें बढ़ाकर 272 करने के बाद 13 सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस 2016 में सालों बाद पहली बार बेहतर करती दिखी और लगा कि 2017 के निगम चुनाव में कम से कम पूर्वी दिल्ली नगर निगम तो कांग्रेस जीत ही जाएगी।
कांग्रेस के नेताओं की आपसी लड़ाई और बगावत के बावजूद कांगेस को तीनों निगमों में 21 फीसद वोट मिले जो आप से पांच फीसद कम थे लेकिन पार्टी के झगड़े और प्रदेश अध्यक्ष जैसे नेताओं का पलायन ने फिर से कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचा दिया। 2011 के दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ समाजसेवी अण्णा हजारे के आंदोलन में शामिल अनेक नेताओं ने 26 अक्टूबर, 2012 को आम आदमी पार्टी (आप) के नाम से राजनीतिक दल बना कर 2013 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ना तय किया। अण्णा हजारे के न चाहते हुए भी राजनीतिक दल बना और अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया। पहले ही चुनाव में ही बिजली-पानी फ्री का मुद्दा कारगर हुआ। आप को 70 सदस्यों वाली विधानसभा में करीब 30 फीसद वोट और 28 सीटें मिलीं। भाजपा करीब 34 फीसद वोट के साथ 32 सीटें जीती और दिल्ली में 15 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट के साथ महज आठ सीटें मिलीं। माना गया कि दिल्ली के अल्पसंख्यक वर्ग ने सही अनुमान लगाए बिना कांग्रेस को वोट दिया। अगले चुनाव में अल्पसंख्यक आप से जुड़ गए तो कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई। भाजपा के मना करने पर आप ने कांग्रेस से बिना मांगे समर्थन से सरकार बनाई और नियम का पालन किए बिना लोकपाल विधेयक विधानसभा में पेश करने से रोके जाने के खिलाफ 49 दिन पुरानी सरकार ने इस्तीफा दिया।
कांग्रेस की कमजोरी और भाजपा की अधूरी तैयारी के चलते और बिजली-पानी फ्री करने के वायदे ने आप को 2015 के चुनाव में दिल्ली विधानसभा में रिकार्ड 54 फीसदी वोट के साथ 67 सीटों पर जीत दिलवा दी। बाद में केजरीवाल ने खुद अपने फैसले को बदलते हुए 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। गोवा में तो आप को कोई सफलता नहीं मिली लेकिन पंजाब में बेहतर नतीजे मिले। 117 सीटों की विधानसभा में कांग्रेस को 77 सीटें और आप को 20 सीटें मिलीं। दस साल से प्रदेश सरकार चला रही अकाली दल-भाजपा को केवल 18 सीटें मिलीं। इस बार हालात अलग हैं। आप पंजाब विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है। उसका दावा मजबूत है। 2017 के नगर चुनाव में आप भले ही भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाई लेकिन कांग्रेस को पीछे करके दूसरे स्थान पर पहुंच गई।
आप ने निगम चुनाव की तैयारी काफी पहले ही शुरू कर दी है। जो हालात दिख रहे हैं, उनसे आप की तैयारी भाजपा से बेहतर दिख रही है। गैर-भाजपा मतों के बंटवारे और भाजपा का वोट बैंक स्थायी बन जाने के अलावा 2017 के निगम चुनावों में भाजपा को बिहार मूल के लोकप्रिय भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का भी लाभ मिला। इस बार दिल्ली निगम चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं दिख रहे।
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