भारत-रूस : सामरिक संबंधों को नये आयाम

Last Updated 01 Dec 2021 12:16:51 AM IST

इक्कीसवें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में सहभागिता हेतु रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन 6 दिसम्बर को भारत की आधिकारिक यात्रा पर आ रहे हैं।


भारत-रूस : सामरिक संबंधों को नये आयाम

टू-प्लस-टू वार्ता में दोनों देशों के रक्षा एवं विदेश मंत्री भी सहभागिता करेंगे। परंपरागत रूप से भारत-रूस, सामरिक साझेदारी 6 प्रमुख घटकों-रक्षा, आर्थिक, राजनीति, आतंकवाद विरोधी सहयोग, नागरिक परमाणु ऊर्जा व अन्तरिक्ष सहयोग पर आधारित है।
उल्लेखनीय है कि विगत वर्ष यह वार्षिक शिखर सम्मेलन कोरोना महामारी के कारण आयोजित नहीं हो सका था। अब ऐसे समय में होने जा रहा है, जब रूसी नेतृत्व अमेरिका के साथ भारत के तेजी से सुदृढ़ होते संबंधों को लेकर चिन्तित है, जबकि भारतीय पक्ष पाकिस्तान के साथ रूस के सुदृढ़ होते संबंधों को लेकर आशंकित व असमंजस की स्थिति से गुजर रहा है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार बैठक में भारत की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर भाग लेंगे, जबकि रूस की ओर से रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु तथा विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव सहभागिता करेंगे। शिखर सम्मेलन में रूस-भारत-चीन (आरआईसी) तंत्र के भीतर बातचीत पर भी विचारों का आदान-प्रदान होने की पूरी संभावना है। ग्रुप-20 (जी-20), ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिणी अफ्रीका) और संघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के भीतर संयुक्त रूप से काम करने सहित सामयिक वैश्विक मामलों पर भी व्यापक रूप से परिचर्चा होगी।

भारत-रूस के द्विपक्षीय संबंधों में रूस का रक्षा सहयोग प्रमुख आधार कहा जा सकता है। लंबी अवधि से भारत रूस के रक्षा उद्योग के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार बना रहा है। 2017 में भारतीय सेना के हार्डवेयर आयात का लगभग 68 प्रतिशत रूस से किया गया। फलस्वरूप रूस भारत के लिए रक्षा उपकरणों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया। यही कारण है कि आज भी अधिकांश रूसी लोग भारत को सकारात्मक दृष्टि से ही देखते हैं। मास्को स्थित गैर-सरकारी थिंक टैंक लेवाडा सेंटर द्वारा 2017 के एक जनमत सर्वेक्षण के अनुसार-रु सियों ने भारत को अपने शीर्ष पांच ‘दोस्तों’ में से एक के रूप में भारत को मान्यता दी। चार अन्य देशों में बेलारूस, चीन, अफगानिस्तान व सीरिया हैं। सामरिक संकट एवं समस्याओं को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए भारत इस समय अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए अति आधुनिक हथियार और रक्षा प्रणाली जुटा रहा है। विगत सदी के आखिरी दशक तक रूस भारत के लिए सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश रहा है, लेकिन विगत दो दशक में इजराइल और अमेरिका से सबसे अधिक हथियार खरीदने के कारण रूस की हिस्सेदारी भारत की शस्त्र आपूर्ति में घटकर लगभग 60 प्रतिशत ही रह गई है। अभी तक भारत ‘क्वाड’ (चतुर्भुज सुरक्षा संगठन) के सदस्यों यानी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक फ्रेमवर्क में काम कर रहा है। नया संगठन ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंग्डम तथा यूनाइटेड स्टेट) के तैनात व तैयार होने के कारण चीन के साथ ही रूस भी चिन्तित हुआ है।
हाल में भारत ने अमेरिका की तिरछी नजर की परवाह न करते हुए रूस से एस-400 (एंटी मिसाइल सिस्टम) की खरीद की। इससे स्पष्ट है भारत अपने सामरिक हितों को लेकर किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं करने वाला। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अनेक बार संकेत दिए कि रूस से एस-400 प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली की खरीद पर भारत पर ‘प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका के विरोधियों के माध्यम से प्रतिबंध अधिनियम’ (काउंटिरंग अमेरिका’ज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट-‘काट्सा’) के तहत प्रतिबंध लगा सकते हैं। यह कानून डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पेश किए गए कानून का ही भाग है। यही कारण है कि अमेरिका अभी तक किसी भी संभावित छूट पर ठोस निर्णय नहीं कर पाया है। इसका प्रमुख कारण यह भी माना जा रहा है कि भारत-अमेरिका के बीच बढ़ती सामरिक साझेदारी के कारण भारत ‘कास्टा’ के तहत छूट पाने में भी सक्षम होगा। वास्तव में इस अमेरिकन आधिनियम ‘कास्टा’ (सीएएटीएसए) के सन्दर्भ में भारतीय सोच यही है कि इस समय भारत व अमेरिका के बीच नई व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी बनी है और एक लंबी अवधि से भारत की रूस के साथ एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी भी है। बाइडेन प्रशासन ने हाल ही में कहा कि इस कानून में देश विशेष के लिए छूट का प्रावधान नहीं है और इस विषय से संबंधित हमारी द्विपक्षीय बातचीत जारी रहेगी। अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ अपनी ‘रणनीतिक साझेदारी’ को महत्त्व देता है । हम यह भी जानते हैं कि हाल के वर्षो में भारत के साथ हमारे सामरिक संबंधों में न केवल विस्तार हुआ है, बल्कि ये और अधिक प्रगाढ़ हो गए हैं।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत अमेरिका से 30 सशस्त्र ‘प्रीडेटर’ ड्रोन खरीदने के लिए लंबी अवधि से चल रहे प्रस्ताव को अपना अन्तिम रूप देने को तैयार है। तीनों सेनाओं (स्थल, नौ एवं वायु सेना) के लिए खरीदे जाने वाले ड्रोन पर लगभग 22000 करोड़ रुपये (तीन अरब अमेरिकी डॉलर) का अनुमानित व्यय होगा। भारतीय नौ सेना ने इस ड्रोन की खरीद के लिए प्रस्ताव दिया था और अब तीनों सेनाओं को दस-दस ड्रोन मिलने की संभावना है। भारतीय सशस्त्र बल विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ चल रही लगातार तनातनी और जम्मू एयर बेस पर ड्रोन हमले के बाद ऐसे हथियारों को खरीदने के लिए विशेष रूप से अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह ड्रोन लगभग 35 घंटे तक अनवरत हवा में रहने में सक्षम है।
शिखर सम्मेलन में जहां द्विपक्षीय व विशेष सामरिक संबंधों की परिचर्चा व्यापक स्तर पर होगी वहीं रूस भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण सामरिक सहयोगी के रूप में स्थापित होगा। इससे दोनों ही देशों के भू-सामरिक, भू-आर्थिक, भू-रणनीतिक तथा भू-राजनयिक लाभ छिपे हैं। विश्वास है कि दोनों देश सम-सामयिक परिदृश्य को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए न केवल नई पहल करेंगे, बल्कि दोनों पक्ष अपने रक्षा, व्यापार, निवेश के साथ ही विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण समझौतों को भी अन्तिम रूप देंगे।

डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र


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