नालंदा विवि : ज्ञान क्षितिज पर दैदीप्यमान

Last Updated 09 Nov 2021 12:32:48 AM IST

मनुष्य को धर्म, दर्शन, अध्यात्म समेत दुनियावी ज्ञान-विज्ञान में प्रवृत्त करने वाली एक सुव्यवस्थित प्रणाली का नाम ही शिक्षा है।


नालंदा विवि : ज्ञान क्षितिज पर दैदीप्यमान

मानव इतिहास के किसी भी कालखंड में शिक्षा जगत के आकाश में जो महानतम नक्षत्र जगमगाते रहे, उनमें पांचवीं सदी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय अग्रणी रहा। बारहवीं सदी में बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने के पहले तक नालंदा दुनिया में शिक्षा का पर्याय बना रहा। यही वजह है कि एक भग्नावशेष में तब्दील कर दिए जाने के बावजूद नालंदा विश्वविद्यालय कभी भी भारत के शैक्षणिक मानस पटल की सुनहरी स्मृति से ओझल न हो सका।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की परिकल्पना और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत की पहल का साकार रूप नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में भारत के प्राचीन गौरव को पुनर्जागृत करने का प्रयास है। नालंदा विश्वविद्यालय की पुनस्र्थापना की संकल्पना को पूर्वी एशिया के सत्रह देशों का समर्थन प्राप्त है।

ज्ञानपीठ नालंदा के निकट ऐतिहासिक स्थल राजगीर में स्थापित नवनिर्मिंत कैंपस शिक्षा, वास्तु कला और पर्यावरण अनुकूलता की दृष्टि से अपने-आप में अनुपम है। पिछले वर्षो में कैंपस में चहुंमुखी कार्य हुए हैं। वर्ष 2014 में शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के समय विश्वविद्यालय में तीन स्कूल थे, जो अब बढ़कर छह हो गए हैं। गत चार वर्षो में तीन नये रिसर्च सेंटर खुले हैं। क्लास, लैब, प्रशासनिक भवन और ऑडिटोरिम बनकर तैयार हैं। विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 0.28 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।

स्नातकोत्तर और पीएचडी स्कॉलर के लिए तीस बिम्स्टेक फेलोशिप की शुरु आत हो चुकी है। ‘बे ऑफ बंगाल स्टडीज’ के तहत इस फेलोशिप की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2018 में काठमांडू में आयोजित चौथे बिम्स्टेक शिखर सम्मेलन के दौरान की थी। ‘बे ऑफ बंगाल स्टडीज’ को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक शांति के लिए एक प्रयोगशाला के तौर पर विकसित करने की दिशा में काम जारी है। विश्वविद्यालयों के आसियान-भारत नेटवर्क के लिए नालंदा विश्वविद्यालय नोडल एजेंसी के तौर पर कार्य करेगा।

धर्म, दर्शन, इतिहास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों, भाषा-साहित्य और मैनेजमेंट तक के स्कूल चलाए जा रहे हैं। ग्लोबल पीएचडी प्रोग्राम के साथ ही कई पोस्ट-डॉक्टरल प्रोग्राम, शार्ट कोर्स, इंटीग्रेटेड स्टडी आदि के साथ एक नया और अनोखा शैक्षणिक ढांचा शुरू किया गया है। यहां का पूरा पाठ्यक्रम कैफेटेरिया मॉडल पर आधारित है। अध्ययनरत विद्यार्थियों में करीब साठ प्रतिशत विदेशी विद्यार्थी हैं। नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया में ‘नेट जीरो’ का सबसे बड़ा मॉडल है।

इस संदर्भ में यह विश्वविद्यालय अमेरिकी संस्थानों से भी आगे है। यहां ‘रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम’ से जल भंडारण के साथ ही बायो गैस का प्रयोग भी किया जा रहा है। विश्वविद्यालय परिसर में प्राकृतिक ढंग से बिजली का निर्माण किया जा रहा है, जिससे ऊर्जा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय आत्मनिर्भर हो सकेगा। ज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण कसौटी सभ्यताओं की बड़ी समस्याओं का समाधान करना भी होती है। कोरोना काल ने मानव अस्तित्व को लेकर अभूतपूर्व चुनौतियां सामने रखी हैं।

इसने मानव मूल्यों और प्रकृति के साथ हमारी सहजीविता एवं सहभागिता की परंपरा के क्षरण की ओर भी संकेत किया। कोरोना संकट ने एक ओर हमें परिवार और समाज के स्तर पर अपने परंपरागत जीवन मूल्यों की ओर लौटने, तो दूसरी ओर विज्ञान और तकनीक की आधुनिकतम शाखाओं में इनोवेशन करते रहने का संदेश दिया है। ऐसे में, शिक्षा के बड़े केंद्रों को खुद को पुनर्परिभाषित और पुनराविष्कृत करते रहने की जरूरत है।

ज्ञान का उद्देश्य हमेशा ही विश्व शांति और कल्याण से जुड़ा रहा है। ‘आत्मनो मोक्षार्थ जगत हिताय च’ और ‘सा विद्या या विमुक्तये’ जैसे सूत्रवाक्य विश्व को भारतीय ज्ञानधारा की अनमोल भेंट हैं। आज के बहुध्रुवीय विश्व में हमारे शिक्षण संस्थानों को मानवता की वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के साथ ही मानवीय जीवन की जटिलताओं का समाधान देने की ओर बढ़ना होगा।

ज्ञान में एक अंतर्निहित उदात्तता होती है, जिससे वह निरंतर अपने को नये आकार-प्रकार में ढालता रहता है। बदलते वैश्विक परिवेश में नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय प्राचीन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का संगम तो बनेगा ही, शांति, करुणा और सादगी के संदेश के जरिए दुनिया के देशों को मानव सभ्यता की सुरक्षा और विकास के लिए भी प्रेरित करेगा-ऐसी ही कामना है।

प्रो. सुनैना सिंह
नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति


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