दिल्ली : जोहड़ों, झीलों और बावड़ियों का जीर्णोद्धार

Last Updated 11 Oct 2021 12:34:51 AM IST

जल बिन सब सुन’ यानी जल के बिना हमारे जीवन का अस्तित्व नहीं। पानी के लिए भविष्य में हमें युद्ध करना पड़ सकता है, सुनकर सहसा विश्वास नहीं होता।


दिल्ली : जोहड़ों, झीलों और बावड़ियों का जीर्णोद्धार

असल में राज्यों या देशों के बीच जल विवाद के गहराते संकट ने चेतावनी देनी भी शुरू कर दी है। प्राकृतिक असंतुलन और मानवीय भूलों के कारण हम यह परिणाम पहले से ही भुगत रहे हैं। लोग पानी के अभाव के कारण एक शहर से दूसरे शहर को पलायन करने पर मजबूर होने लगे हैं। देश की राजधानी दिल्ली का भी यही हाल है। शुरू से सत्ता का केंद्र रही दिल्ली अपने जल स्रोतों को संरक्षित करने या बचाने में विफल रही है।

हाल में दिल्ली सरकार ने पानी के स्रोतों को पुन: ढूंढने और जल संरक्षण के मद्देनजर उन्हें पुनर्जीवन देने की योजना बनाई है। केजरीवाल सरकार ने आने वाले दो सालों के अंदर 22 झीलों और तकरीबन 200 जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की योजना तैयार की है। भू-जल संरक्षण के लिए तालाब, जौहड़, कुएं या झीलों को चिह्नित करके पुनर्जीवन देने का काम दिल्ली जल बोर्ड और सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को सौंपा गया है।

यमुना की सफाई से लेकर हौजखास झील, संजय झील, रोशनारा झील, भलस्वा झील, तिमारपुर झील और रोहिणी झील को लक्षित किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि यहां जल स्रोतों के गुम होने की अलग-अलग कहानियां हैं। दिल्ली के तालाबों और झीलों पर लोगों ने अपना आशियाना बना लिया है। कहीं श्मशान घाट, कब्रिस्तान, ईदगाह, धर्मशाला या मंदिर बन गए तो कई जगहों पर सरकारी संस्थाओं ने बस टर्मिंनल, स्कूल, स्टेडियम या किन्हीं अन्य कामों के लिए अतिक्रमण कर लिया है। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में अलग-अलग विभागों के तहत रजिस्र्टड 971 जल स्रोत हैं, वहीं सरकार 40 जल स्रोतों को नहीं ढूंढ पाई है।

इस तरह दिल्ली में जल स्रोतों का आंकड़ा 1011 हो जाता है। इन 168 जल स्रोतों पर अतिक्रमण हो चुका है वहीं करीब 40 जल स्रोतों पर गैर-कानूनी कब्जा करके कानूनी तरीके से निर्माण किया गया है। देखा जाए तो 1011 जल स्रोतों में से 285 पूरी तरह गायब हो चुके हैं, या सूख चुके हैं। सनद रहे कि पानी की कमी से जूझ रहे दुनिया के 20 शहरों में दिल्ली को दूसरे स्थान पर रखा गया है। धड़ाधड़ निर्माण कार्यों के चलते दिल्ली कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रही है, और पानी के स्रोत को बचाने की कोई कवायद नहीं हो रही। यह भी आश्चर्य की बात है कि इसे लेकर कोई सरकारी या गैर-सरकारी संगठन ज्यादा चिंता नहीं कर रहा है। ज्यादातर झीलों या तालाबों पर अतिक्रमण हो चुका है। कई जल स्रोत डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं, तो कई गंभीर रूप से प्रदूषित। दिल्ली सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि इस साल के अंत तक करीब 50 जल स्रोतों को पुनर्जीवन दिया जाएगा। यमुना नदी को पुराने स्वरूप में लौटाने की भी पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। दिल्लीवासियों के लिए सुकूनदायी खबर है कि दिल्ली स्थित पुराना किला की बावड़ी का जल स्रोत जाग उठा है।

काफी मशक्कत के बाद बावड़ी में स्वच्छ जल आने लगा है, जब बावड़ी की गहराई से मिट्टी की सफाई की गई तो यह जल स्रोत फिर से खुल गया। इससे पहले राजों की बावड़ी, गंधक की बावड़ी, निजामुद्दीन दरगाह की बावड़ी और काकी की दरगाह बावड़ी को खोलने पर काम किया जा रहा है। कनॉट प्लेस स्थित अग्रसेन की बावड़ी 5 साल पहले सूखी पड़ी है। जल संरक्षण बेहद जरूरी मसला है, लेकिन अतिक्रमण को लेकर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही। बांकनेर, नरेला, भोरगढ़, शाहपुर गढ़ी, रामपुर, अलीपुर नगली पुना, बख्तावरपुर, बवाना आदि गांव में जोहड़ों की हालत ऐसी है कि भौगोलिक रूप से उनकी पहचान कर पाना भी मुश्किल है। बवाना के जोहड़ गंदगी और मिट्टी से भर चुके हैं। बांकनेर-भटनेर गांव में जोहड़ पर स्टेडियम बन चुका है। गांव में जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे एक जोहड़ में सालों से पानी नहीं है। बादली में एक जोहड़ पर बैंकट हॉल बना दिया गया है।

बेहतर भारत के लिए वष्रा जल का संचयन-प्रबंधन जरूरी है। भूजल से अन्य प्रदेशों पर निर्भरता कम होती है। इसलिए ऐसे अभियानों की सफलता महत्त्वपूर्ण है। ज्ञात हो कि दिल्ली में 2018 में जब ये परियोजनाएं शुरू की गई थीं तो करीब 200 जल निकायों को सूचीबद्ध किया गया था, बाद में स्थानीय नागरिकों, विधायकों एवं भूमि स्वामित्व वाली एजेंसियों की सिफारिश पर दिल्ली जल बोर्ड ने ऐसे और स्थानीय तालाबों, झीलों और जलाशयों को जोड़ना शुरू कर दिया जिन्हें आने वाले कुछ महीनों में नया रूप दिया जाएगा। इसलिए दिल्ली सरकार जल निकायों के पुनरु द्धार के लिए निविदाएं भी जारी कर रही है।

सुशील देव


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