क्रोध और टीवी

Last Updated 03 Apr 2021 11:54:18 PM IST

क्या हर समय कोई क्रोधित रह सकता है। अगर ऐसा करेगा तो जल्दी मरेगा। आज के डाक्टर भी यह कहते हैं।


क्रोध और टीवी

गीता में भी कहा गया है कि क्रोध से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि नाश से प्राण नष्ट हो जाते हैं। क्रोध मर जाता है तो भी हमारे मिथकों में परशुराम रहे हैं, जो जरा सी बात पर अपना फरसा उठा लेते थे और दुर्वासा रहे हैं, जो शकुंतला को अनजानी उपेक्षा से नाराज होकर शाप दे डालते हैं कि तू जिसकी याद में खोई है, वह तुझे पहचानने से इनकार कर देगा। लेकिन इनके बरक्स रामकथा में समुद्र पर क्षण भर के क्रोध को छोड़ राम कहीं क्रोध नहीं करते। शायद इसीलिए वे सबके प्रिय हैं, और कृष्ण तो गीता में ही कहते हैं कि क्रोध बुद्धि का नाश करता है और बुद्धविनाश से प्राण का नाश होता है।
जाहिर है कि आज की मेडिकल साइंस भी मानती है कि क्रोध के अधिक होने के साथ ब्लडप्रेसर के बढ़ने का संबंध है, और जब वह अधिक बढ़ जाता है तो कई बार घातक होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध उसका दुश्मन है। लेकिन क्रोध कैसे न हो? वह भी तो मनुष्य के स्थायी भावों में से एक है। उसे भी होना ही है, लेकिन नियंत्रण में रहे तो बेहतर। इसीलिए क्रोध के शमन के लिए योग, प्राणायाम या एक्सरसाइज या शारीरिक श्रम की जरूरत बताई जाती है।
आज के वातावरण में क्रोध को लगातार बढ़ता देख हम पूछ सकते हैं कि जब क्रोध इतना बुरा माना गया है, तो भी वह बढ़ क्यों रहा है? क्यों हमें टीवी की खबरों में हर चेहरा तमतमाया दिखता है? क्यों हर नेता एक दूसरे को गरियाता दिखता है? इसलिए कि मीडिया के आत्मरतिवादी वातावरण ने हर मनुष्य के चेहरे को अहंकार और अकड़ का स्तूप बना दिया है। टीवी और सोशल मीडिया का वातावरण ही ऐसा है कि यहां हर बंदा अपने को हमेशा सही मानने-मनवाने पर उतारू रहता है, और इसी अहंवृत्ति के जरिए ‘सत्ता के विमशर्’ (पावर डिस्कोर्स) को साधने के चक्कर में रहता है।

जैसे-जैसे सत्ता विमर्श तीखा होता जाता है, वैसे-वैसे सत्ता से बेदखल होने का डर बढ़ता जाता है कि अगर चूके तो गए सत्ता की हानि के आसन्न भय से ऐसा आत्मरतिवादी बंदा हर समय गुस्साया रहता है। चुनाव के इन दिनों कुछ नेताओं के चेहरे कुछ ज्यादा ही तमतमाए हुए नजर आते हैं। चैनलों के कैमरे उनको जस का तस अनकट  दिखाते हैं। ऐसे चेहरों में सबसे अधिक क्रुद्ध छवि है ममता दीदी की चिर छिन्नमस्ता छवि। उनका चेहरा हर समय क्रोध से तमतमाया दिखता है। इसी तरह टीवी की बहसों में दिखते कुछ कांग्रेसी प्रवक्ताओं के चेहरे भी तन्नाए दिखते हैं, और राहुल बाबा का चेहरा भी हर समय तन्नाया दिखता है जैसे कोई उनको छल के भाग गया हो।
ऐसे ही कुछ बरस पहले तक भाजपा के नेताओं के चेहरे भी तन्नाए हुए दिखा करते थे लेकिन इन दिनों उतने क्रुद्ध और क्षुब्ध नहीं दिखते। इनके बरक्स हम लालू के पुराने चेहरे को याद करें तो पाते हैं कि लालू के चेहरे पर क्रोध कम खेल का भाव या मजाक का भाव अधिक रहता था और दशर्क उनको देखना-सुनना पंसद करते थे लेकिन उनके बरक्स आजकल के नीतीश जी के चेहरे को देखें तो पाते हैं कि वे भी अधिक क्रुद्ध नजर आते हैं।
 ऐसे चिर क्षुब्ध चेहरों को कोई दशर्क पसंद नहीं करता। टीवी पर दिखने वाले चेहरे की अकड़ उसे अपने अहं से टकराती दिखती है। फिल्मी कहानी में कोई ‘मोगेंबो’ बनता है, तो वह दशर्क के अहं (ईगो) से नहीं टकराता लेकिन अगर कोई नेता अपने ईगो और अपने आहत अभिमान से उत्पन्न क्रोध को हर समय लाद कर सामने आता हो है, तो आम दशर्क उसे रिजेक्ट कर देता है। कारण यह कि टीवी और दशर्क का रिश्ता एक प्रकार का आलोचनात्मक (क्रिटिकल) रिश्ता होता है, और आम दशर्क अपनी इसी ‘आलोचनात्मक दृष्टि’  के जरिए टीवी के ‘हावी होने की ताकत’ को ‘चुनौती’ देता है। इसीलिए आम दशर्क उन्हीं चेहरों को पसंद करता है, जो उसकी आनंद की भावनाओं के आलंबन बनते हों। अगर कोई अपने को कुछ ज्यादा भारी, ज्यादा बोझिल और गुस्से वाला बनाकर पेश करता है, तो दशर्क उस पर रहम खाने की जगह चिढ़ने लगता है। ध्यान रहे : खिसियाया हुआ चेहरा सबसे बुरा ‘कम्यूनिकेशन’ होता है।
चूंकि आम दशर्क टीवी के कवरेज को ‘रियल टाइम’ में ‘इंटरएक्टिव’ तरीके से ‘क्रिटिकली’ देखता है, और अपनी तत्काल की कमेंटबाजी से टीवी में दिखते हर चेहरे की ताकत की हवा निकालता रहता है, इसलिए भी ममता दीदी का क्रुद्ध चेहरा दशर्क को पसंद नहीं आता। हमारी राय में उनका चिर क्षुब्ध चेहरा ही उनका दुश्मन है।

सुधीश पचौरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment