अमेरिकी चुनाव : निर्णायक होगा आप्रवासन मुद्दा
अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति चुनावों को कभी भी स्थगित नहीं किया गया।
अमेरिकी चुनाव : निर्णायक होगा आप्रवासन मुद्दा |
यहां तक कि अमेरिकी नागरिक युद्ध, प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, 9/11 आतंकवादी हमलों या स्पेनिश फ्लू के दौरान भी चुनावों को स्थगित नहीं किया गया। अभी कोरोना काल के दौरान भी चुनाव को टालने की बात जोर शोर से हुई लेकिन चुनाव अपने निर्धारित समय पर ही आहूत है। अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव 3 नवम्बर, 2020 को होना तय है। रोचक तथ्य है कि अमेरिका में चुनावी वर्ष के नवम्बर माह के पहले मंगलवार को ही चुनाव कराया जाता है।
जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है, तो इस बार आप्रवासियों का मुद्दा ट्रंप और बिडेन, दोनों के लिए सफलता और विफलता निर्धारित करने जैसा मुद्दा है। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और उसके बाद से आप्रवासी मतदाताओं का मुद्दा चुनाव में जीत की दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है। शायद इसलिए कि ट्रंप द्वारा अवैध आव्रजन, सीमा पर दीवार का निर्माण, सीरिया से शरणार्थियों और ‘सैंक्चुअरी सिटीज’ आदि विषयों पर कड़ा रु ख अपनाया गया। यूनाइटेड किंगडम में ब्रेक्सिट वोट, जर्मनी (2017) और इटली (2018) में हालिया राजनीतिक चुनावों ने आप्रवासियों की विवादास्पद राजनीतिक भूमिका और आप्रवासियों को लेकर विरोधी रुख से मिली चुनावी सफलता को उजागर किया है।
इस वर्ष के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने योग्य लगभग हर 10 में से 1 मतदाता आप्रवासी है और इन 2.3 करोड़ नागरिकों में अधिकांश (61%) सिर्फ पांच राज्यों में रहते हैं। किसी भी अन्य राज्य की तुलना में कैलिफोर्निया में सबसे अधिक आप्रवासी मतदाता (55 लाख) हैं, जो न्यूयूयॉर्क (25 लाख), फ्लोरिडा (25 लाख), टेक्सॉस (18 लाख)और न्यू जर्सी (12 लाख) से कहीं अधिक हैं। इन पांच राज्यों में रह रहे आप्रवासी मतदाताओं पर दोनों ही दलों की नजर टिकी हैं।
अमेरिका में 2000 में लगभग 1.2 करोड़ विदेशी मूल के मतदाता थे और 2018 तक यह संख्या बढ़कर 2.2 करोड़ हो गई। इस साल यह 2.3 करोड़ है। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है, इन मतदाताओं को लेकर नये-नये आंकड़े भी सामने आ रहे हैं। पीयू रिसर्च सेंटर के अनुसार एशियाई अमेरिकी मतदाताओं की संख्या 2000 में 46 लाख से बढ़कर 2020 में 1.1 करोड़ हो गई यानी 139% की वृद्धि। कमला हैरिस को डेमोक्रेट्स की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया है। हाल ही में जो बिडेन ने कैलिफोर्निया की सीनेटर कमला देवी हैरिस के नाम की घोषणा कर अपना चुनावी दांव चल दिया। इस कदम की कई स्पेक्ट्रमों खासकर भारतीय अमेरिकियों ने सराहना की है क्योंकि पहली बार है कि भारतीय मूल के व्यक्ति (वह भी एक महिला) को अमेरिका में राष्ट्रीय कार्यालय के लिए नामित किया गया है। वह पहली अेत, अफ्रीकी अमेरिकी और एशियाई अमेरिकी महिला भी होंगी जिन्हें बहुमत वाली पार्टी द्वारा उपराष्ट्रपति के लिए नामांकित किया गया है। क्या वह एशियाई अमेरिकियों के वोटों को स्विंग करने में सक्षम होंगी? मुख्य रूप से डेमोक्रेट के पक्ष में भारतीय अमेरिकियों को देखा जाना बाकी है।
भारतीय अमेरिकियों को किसी भी अन्य एशियाई समूह की तुलना में डेमोक्रेट के पक्ष में जाने की सबसे अधिक संभावना है। फिर अमेरिका और भारत के शीर्ष नेतृत्व के बीच सौहार्दपूर्ण संवाद वाले माहौल और कई अवसरों पर दोनों का एक दूसरे के लिए समर्थन जैसी भावना से लग रहा था कि भारतीय ट्रंप के पक्ष में ही खड़े होंगे लेकिन ट्रंप के गैर-जिमेदराना बयानों से पहले जैसी संभावनाएं कमजोर होती प्रतीत हो रही हैं। जो भारतीय अमेरिकी एक साल पहले तक उनके पक्ष में नजर आते थे वो कहीं न कहीं उनसे दूर जा रहे हैं। लेकिन इस बार भारतीय अमेरिकी किस रास्ते पे जाएंगे, इसे जानने की उत्सुकता अमेरिका के साथ-साथ भारत में भी है। बहरहाल, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, दोनों भारतीय अमेरिकी वोट हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं।
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