हाथरस कांड : षड्यंत्र का पर्दाफाश हो

Last Updated 13 Oct 2020 01:18:17 AM IST

कुछ लोग इस प्रयास में हैं कि उत्तर प्रदेश को देश का उत्तम प्रदेश बनने से रोका जाए।


हाथरस कांड : षड्यंत्र का पर्दाफाश हो

हाथरस के बहाने इन्हीं कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रातों-रात अलोकतांत्रिक, सर्वाधिक अप्रिय और नागरिक अधिकारों के हनन के दोषी के रूप में  निरूपित करने की कोशिश की। मीडिया के एक वर्ग और कुछ सोशल साइट्स ने इस प्रयास को धार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
हाथरस की घटना सचमुच हृदयविदारक और अमानवीय है, लेकिन इसे एक सामाजिक बुराई के बजाय इस रूप में प्रस्तुत किया गया, मानो पूरा प्रदेश जिम्मेदार हो। यहां तक कि मुख्यमंत्री को ही इसके लिए दोषी ठहराने की कवायद शुरू हो गई। इतने सारे आरोप! उफ्फ! किसी भी प्रदेश के लिए बेहद अफसोसनाक बात है कि किसी बालिका की अस्मिता लूट ली जाए, उसके खिलाफ इस कदर अमानवीय व्यवहार हो कि उसकी जान ही चली जाए। उत्तर प्रदेश में ऐसी घटना हो तो यह और शर्मनाक है, क्योंकि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ से आगे जाकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी सुरक्षा और उनके  प्रोत्साहन को बढ़ावा दिया। सत्ता संभालते ही ‘एंटी रोमियो स्क्वायड’ का गठन कर बेटियों को यह भरोसा दिलाया  कि वे बेफिक्र हो कर आगे बढ़ सकती हैं। फिर भी ऐसी घटना हो तो बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए।

घटना के संज्ञान में आते ही पुलिस सक्रिय हुई। चार दिन में चारों आरोपितों को धर दबोचा गया। लड़की के इलाज के लिए दिल्ली तक रेफर किया गया, लेकिन दुर्भाग्य बिटिया को नहीं बचाया जा सका। घटना 14 सितम्बर की है। हाथरस जिले के बुलगधी गांव की वह भोली लड़की अपनी मां के साथ खेत में घास काटने जाती है, जहां उसे कुछ लोग जबरन खींच कर खेत में ले जाते हैं। उस पर हमला करते हैं। बिटिया लहूलुहान हो जाती है। थोड़ी देर में ही उसकी मां उसको खोजते हुए आती है। खेत के बीच में उसे मरनासन्न की स्थिति में पाती है, लेकिन उस स्थिति में भी परिवार उसे अस्पताल या किसी चिकित्सालय नहीं लेता जाता है। बिटिया थाने में लाई जाती है। पुलिस उसकी हालत देखती है, पूछताछ करती है और फिर उसे अस्पताल ले जाती है। अब आप बताइए कि राज्य सरकार से कहां चुक हुई है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किस तरह से असंवेदनशील सिद्ध होते हैं?
हाथरस की बेटी इस दुनिया में अब नहीं है। एक राज्य के रूप में किसी महिला का सम्मान और जान की रक्षा ना करना एक कलंक ही है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि राज्य के रूप में कानून के पालन का जो दायित्व है, उसमें जरा सी भी ढिलाई नहीं होने के बावजूद कहानी ऐसी गढ़ी गई, मानो जितना दोष अभियुक्तों का है उससे कहीं अधिक दोष राज्य और विशेषकर राज्य के मुखिया योगी आदित्यनाथ का है। झूठ की ऐसी बयार बहाई गई कि सच उसमें कुछ समय के लिए हवा की तरह उड़ गया। वे तमाम झूठ मीडिया में आज भी मौजूद हैं। विकीपीडिया लिखता है कि लड़की के चार लोगों ने बलात्कार किए, उसकी जीभ काट दी। पुलिस ने 20 सितम्बर तक कोई रिपोर्ट नहीं लिखी, पुलिस ने लोगों को धमकी दी। आदि-आदि।
सच्चाई यह है कि हाथरस पुलिस ने पीड़िता की मां और उसके भाई का बयान 14 सितम्बर को ही दर्ज कर लिया। पीड़िता ने ही अपने बयान में बताया कि उसकी जीभ नहीं काटी गई। पीड़िता के बयान के आधार 22 सितम्बर को ही रेप और गैंगरेप में दूसरी एफआईआर दर्ज कर दी गई। राज्य और परिवार के लिए यह आपदा  था, पर राजनीति में हाशिए पर खड़े कुछ दलों और सामाजिक सौहार्द बिगाड़कर अपना खेल जमाने में लगे कुछ लोगों ने यह आपदा अवसर लगा। फिर षड्यंत्र की चौसर बिछ  गई। लोग गोटियां फेंटने लगे। उधर पीड़िता ने 22 सितम्बर को कुछ लोगों का नाम लिया, जो तथाकथित ऊंची जातियों से संबंध रखते थे, इधर जाति के नाम पर समाज में आग लगाने वालों की तैयारी शुरू हो गई। शुरुआत कांग्रेस ने की। लुकाछिपी कर नहीं। सार्वजनिक रूप से। इस लक्ष्य के साथ कि समाज में तनाव भड़के। लोग हिंसा पर उतारू हो जाए और योगी सरकार में जारी अमन चैन एक क्षण में लुट जाए।
23 सितम्बर को शाम के 7  बजकर 21 मिनट पर ट्वीटर पर एक वीडियो डाला गया। इसे डालने वाली महिला का नाम अनुजा जायसवाल था। वीडियो में कांग्रेस के नेता श्योराज जीवन वाल्मिकी का बेहद भड़काऊ बयान था। इस वीडियो में श्योराज यह कहते हुए सुनने जा सकते हैं कि यदि किसी ठाकुर ने हमारे वाल्मिकी समाज की बेटियों को गंदी नजर से देखने की कोशिश की तो मां कसम हम उनकी आंखें फोड़ देंगे। हाथ काट देंगे। इसी वीडियो में यह कांग्रेस नेता को यह कहते हुए पाया गया कि दलितों उठो खड़े हो। अब कोई बताए कि कांग्रेस दलित को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ना चाहती है या जातीय दंगा भड़काना चाहती है।
प्रदेश में अब दलित सिर्फ  वोट बैंक बन कर रह गए हैं। इसी दिन समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता ने ट्वीट किया कि आगरा में दलित बेटी से बलात्कार किया गया। आईपी सिंह ने इस झूठी खबर को आधार बनाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खूब खड़ी खोटी सुनाई। बाद में आगरा पुलिस ने 24 सितम्बर को ही यह स्पष्टीकरण जारी किया कि आगरा में किसी भी दलित महिला से कोई बलात्कार नहीं हुआ है।
अब बात करते हैं कि राज्य सरकार की भूमिका और इस अत्यंत संवेनशील केस में मुख्यमंत्री के सूझबूझ रवैये की। सामाजिक बुराइयों का अंत सामाजिक सौहार्द और लोगों को जागरूक करके ही हो सकता है। दोषियों को सजा दिलाने के साथ साथ मासूम और निर्दोषों को हर तरह के षड्यंत्रों से बचाने में भी सरकार की भूमिका देखी-परखी जाती है। उत्तर प्रदेश में लगभग तीन साल के शासन के बाद योगी आदित्यनाथ ने लगभग इस बात को स्थापित कर दिया है कि उनके शासन काल में ना तो किसी का शोषण होगा और ना किसी का तुष्टिकरण। अपराधियों और माफियाओं का जीना उत्तर प्रदेश में ऐसे ही मुहाल हो गया है। ऐसे में उनका सरकार के खिलाफ होना और मुख्यमंत्री को येन केन प्रकारेण किसी विवाद या किसी प्रकरण आरोपित करने की कोशिश करना उनका दुस्साहस हो सकता है।

विक्रम उपाध्याय


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