नशाखोरी : सख्त कार्रवाई की दरकार

Last Updated 13 Oct 2020 01:15:40 AM IST

देश की कई मुख्य समस्याओं में बड़ी समस्या देश में नशा करने वाले लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा होना है।


नशाखोरी : सख्त कार्रवाई की दरकार

खासकर युवाओं का इसमें तेजी से शामिल होना। नशे के सेवन से व्यक्तिगत बीमारियों, आर्थिक तंगी के साथ-साथ पारिवारिक विघटन, नैतिक मूल्यों का पतन, अपराध में वृद्धि होना आम बात है। आज कई बड़े अपराध के पीछे नशे का सेवन होना पाया जाता है। इस नशे की वजह से गरीब और गरीब होता जा रहा है वही अमीर लोगों के शौक में यह नशा शान से कम नहीं है। पारिवारिक विघटन, औरतों, बच्चियों के प्रति यौन हिंसा में भी वृद्धि हो रही है। बॉलीवुड की वर्तमान घटना ने नशे की पहुंच को हर स्तर पर होना पुन: जागृत किया है।  
देश के प्रत्येक राज्य, प्रत्येक जिला, प्रत्येक तहसील, प्रत्येक गांव तक नशे का कारोबार किसी-न-किसी रूप में मौजूद है। पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, हरयाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश राज्यों में नशाखोरी अपनी गहरी पैठ बना चुका है। विभिन्न स्वरूपों में जैसे शराब, देशी शराब, कैनिबस (भांग,गांजा, चरस,धतूरा) ओपिओइड ड्रग्स (हेरोइन, अफीम, अन्य फार्मास्यूटिकल ड्रग्स), सेडेटिव, हिप्नोटिक, नशीली दवाओं को इंजेक्शन द्वारा नसों में लगाना, उत्तेजक पदार्थ, नार्कोटिक/स्वापक, निकोटिन यह उपलब्ध है। व्यक्तिगत बजट के अनुरूप हर श्रेणी में नशा उपलब्ध है। हर तबके के लिए अलग-अलग नशा आज मौजूद है, जिसका कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है। फाइनेंसियल एक्सप्रेस ने नशा करने को लेकर एक सर्वे कराया था, जिसमें 186 जिलों के दो लाख घरों के 5 लाख लोगों को शामिल किया गया था।

इस सर्वे की रिपोर्ट फरवरी 2019 में प्रकाशित की गई थी। इसके अनुसार 123 जिलों में लगभग 10 हजार लोग प्रतिबंधित नशे का सेवन करते पाए गए थे। चौंकाने वाली बात यह भी है कि भारत में, इटली सहित विश्व के 1।2 देशों की, कुल आबादी से अधिक, छह करोड़ लोगो में शराब की लत है यानी यह 6 करोड़ शराबियों का यह घर है। इनमें से 3.2 करोड़ लोगों में शराब की लत है। 3.1 करोड़ से अधिक लोग कैनिबस (भांग, गांजा, चरस, धतूरा) का सेवन करते हैं। एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के अनुसार देश में 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। नशे के सेवन में महिलाएं भी शामिल हैं। हालांकि उनकी संख्या काफी कम है पर दिन-प्रतिदिन उनकी भी संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। खिलाड़ी, अभिनेता, व्यवसायी, कर्मचारी, नेता, छात्र, किसान, मजदूर, यहां तक की कुछ राज्यों में महिलाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा नशा बन गया है। इसमें वृद्धि के पीछे कई कारण हैं पर सरकार की दोहरी नीति भी नशाखोरी को बढ़ावा देती है। कोरोनाकाल में शराबों की दुकानों का खोला जाना इसका जीवंत प्रमाण है। कई राज्यों का आर्थिक बजट भी इन नशें के व्यापार पर टीका हुआ है। ऐसे में कई मनकों, प्रक्रियाओं, और सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है अन्यथा की परिस्थिति में सरकार की आय में वृद्धि होती रहेगी। परन्तु युवा गुमराह होता रहेगा, जिससे अपराध, अवसाद, आत्महत्या, भेदभाव, महिला अपराध को बढ़ावा मिलेगा। सरकार लाभ-हानि के अन्य विकल्पों पर विचार करते हुए नशे के कारोबार पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगाना अत्यंत जरूरी है और यह तभी संभव हो सकेगा, जबकि नशा के खिलाफ लोग एकजुट हो।
ड्रग्स का धंधा पूरी दुनिया में फैला है और भारत की भौगोलिक स्थिति उसकी सप्लाई में अहम भूमिका निभाती है। भारत हेरोइन और हशीश का उत्पादन करने वाले देशों के बीच में स्थित है। गोल्डन ट्रायंगल (थाइलैंड-लाओस-म्यांमार) और गोल्डन क्रीसेंट (अफगानिस्तान-पाकिस्तान-ईरान) के कई देशों की सीमाएं भारत से मिलती हैं। इसकी वजह से भारत में ड्रग्स को पहुंचाना आसान हो जाता है। वैसे तो कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, पर एजेंसियों के अधिकारियों के अनुसार देश में हर साल करीब 10 लाख करोड़ रु पये का ड्रग कारोबार किया जाता है। यह आकलन एजेंसियों द्वारा जब्त की गई ड्रग्स और सूचना के आधार पर किया गया है।
आज के समय में नशे के प्रति सामान्य कार्रवाई, जागरूकता बढ़ाने की नहीं बल्कि कठोर एक्शन की जरूरत है। पूर्ण प्रतिबंध के साथ-साथ स्कूली सिलेबस में नशे के दुष्प्रभाव को शामिल किया जाए, जिससे आगामी पीढ़ी इसके नुकसान को समझ सके और भविष्य में दुनियां के किसी कोनों में होने पर भी इससे दूरी बनाने में सफल भी हो सकें। जब तक ड्रग्स की मांग रहेगी, आपूर्ति होती रहेगी। ड्रग के अवैध कारोबार में मुनाफा बहुत ज्यादा है। इसलिए सरकार को सबसे पहले इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।

अजय कु. मिश्रा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment