मुद्दा : छोटी नदियों को क्यों बिसराएं?

Last Updated 30 Sep 2020 12:37:17 AM IST

पानी बिन सब सून। जल ही जीवन है। नदियों में ही मानव जीवन बसता है।’ यह सब जानते हुए भी हम जीवन देने वाले स्रोत छोटी-बड़ी नदियों की सुरक्षा, संरक्षा और शुद्धता की अनदेखी कर रहे हैं।


मुद्दा : छोटी नदियों को क्यों बिसराएं?

बड़ी नदियों को बचाने की बात तो, फिर भी हो जाती है मगर छोटी नदियों की फिक्र बेहद कम हो गई है। सवाल उठता है, देश भर में गंगा-यमुना और नर्मदा को बचाने के कथित सरकारी-गैर सरकारी प्रयास किए जा सकते हैं, इनके लिए संघर्ष या आंदोलन हो सकते हैं तो छोटी नदियों के लिए क्यों नहीं? ज्ञात हो कि बड़ी नदियों को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने बकायदा ‘मंत्रालय’ ही बना डाला है।
केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं चला दीं, मगर बड़ी नदियों की तुलना में छोटी नदियां आज भी उपेक्षित हैं, जिसके कारण किसानों को बराबर सूखे का दंश झेलना पड़ता है और जिसका असर वहां की सभ्यताएं या समाज पर भी देखा जा सकता है। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ‘नदी जोड़ परियोजना’ पर विशेष बल दिया गया था। इनमें कुछ छोटी-छोटी नदियों के भी अविरल बहने देने की बात की गई थी। ऐसी योजनाओं से बुंदेलखंड और विदर्भ जैसी जगहों पर भी सिंचाई की समस्या से निजात मिलने वाली थी।
केंद्र सरकार को इस पर शीघ्रता से काम करने की आवश्यकता है। इससे भी छोटी नदियों को बचाया जा सकता है। कभी फतेहपुर के दोआब क्षेत्र से निकलने वाली छोटी नदी ‘ससुर खेदरी’ 42 गांव के हजारों हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती थी। अब आलम यह है कि पानी के लिए यह भूमि तरस जाती है। उसी प्रकार बनारस की अस्सी, बिहार की कमला, बलान, गंडक, उत्तर प्रदेश (गाजियाबाद) की हिंडन, चंबल या सरस्वती, मध्य प्रदेश (छिंदवाड़ा) की कूलबेहरा, बोदरी, राजस्थान की अल्वरी जैसी नदियां देश भर में बहुत हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर नदियों के नाम ही अब केवल शेष हैं। बढ़ते प्रदूषण, अतिक्रमण और गंदगी की वजह से इनकी भारी-भरकम जल धारा नाले के रूप में तब्दील हो गई हैं। कुछ का तो अस्तित्व भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। आपको पता है कि उत्तराखंड में जल पल्रय का कारण अलकनंदा नदी पर अतिक्रमण का होना ही था। यह सच है कि पानी नहीं रहेगा तो हमारा जीवन भी दूभर होता चला जाएगा। जिस प्रकार भू-जल का स्तर नीचे गिर रहा है। सिंचाई के साथ पीने के पानी को लेकर समस्याएं बढ़ रही हैं, उसका भावी संकेत अच्छा नहीं है।

भविष्य में पानी के लिए लड़ाई या संघर्ष की आशंका बन रही है। इसलिए पानी के स्रोत को जिंदा रखना हमारा महत्वपूर्ण कर्तव्य बन गया है। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। हमें हर स्तर पर छोटी-छोटी नदियों को भी बचाना होगा। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई बाढ़ या सूखे की विनाशकारी आफतों को निमंतण्रदेता है। मॉनसून के दौरान ज्यादातर पानी जमीन पर आ जाता है। बाढ़ आ जाती है, क्योंकि मिट्टी बारिश के पानी को नहीं सोखती और बारिश के बाद नदियां सूखने लगती हैं, क्योंकि उन्हें पोषित करने के लिए मिट्टी में नमी होना जरूरी है। इसी वजह से नदियों के दोनों किनारों पर पेड़ का होना भी जरूरी है। गंगा और यमुना की सफाई को लेकर जहां केंद्र और राज्य सरकारें हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, वहीं लगातार छोटी नदियों की उपेक्षा की जा रही है।
पर्यावरणविद या विशेषज्ञ भी मानते हैं कि-स्वस्थ नदियां न केवल मौजूदा प्रणाली बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए जल और जीवन को सुरक्षित करती हैं। इसलिए समाज में सुरक्षित जल संसाधन बेहद जरूरी है, वरना खेती-किसानी संकट में आ जाएगा। बड़ी नदियों को बचाने के लिए देश स्तर पर खूब चर्चा होती है, सरकार एवं बुद्धिजीवियों के बीच बौद्धिक धिंगामुश्ती चलती है, मगर छोटी-छोटी नदियों पर ध्यान नहीं दिया जाता। उन पर कोई चर्चा नहीं होतीं। ऐसी नदियां अब नालों में सिमटती जा रही हैं, जबकि छोटी नदियों को लेकर ज्यादा संजीदा होने की जरूरत है। हमें यह समझना पड़ेगा कि बड़ी नदियों की जो भूमिका होती है वही छोटी नदियों की भी होती है।
छोटी-छोटी नदियां साफ होंगी तो गंगा और यमुना जैसी नदयिां अपने आप साफ हो जाएंगी। छोटी नदियों को पुर्नजीवन मिलेगा तो किसान खुशहाल होंगे। पानी की कमी दूर होगी तो फसल अच्छी होगी। हमारा जीवन सुखमय होगा। हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और उनमें विविधता आएगी। छोटी नदियों को बचाने के लिए हमें बड़ी नदियों को बचाने जैसी संवेदनशीलता दिखानी होगी। तब जाकर ये नदियां फिर से हमारी ‘जीवनदायिनी’ बन सकेंगी।

सुशील देव


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