मुद्दा : बदलने वाली है दिल्ली की पहचान

Last Updated 22 Sep 2020 03:52:52 AM IST

कहते हैं समय के साथ काफी कुछ बदल जाता है या बदल दिया जाता है। यह बिल्कुल सच है। कुछ इसी तर्ज पर लुटियंस की दिल्ली की सबसे बड़ी पहचान इंडियन होने जा रही है।


मुद्दा : बदलने वाली है दिल्ली की पहचान

सच भी है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर जहां जनता के प्रतिनिधि बैठते हों उसकी स्वतंत्रता के बरसों बाद तक विदेशी छाप रहे? शायद यही भावना संसद के अन्दर भी और बाहर भी रही होगी जो कभी भी सार्वजनिक तो नहीं हुई, लेकिन वहां बैठने वाले अधिकतरों को मन में चुभती रही होगी।
यकीनन, वर्तमान संसद भवन को चाहे गुलामी की मानसिकता से जकड़ी भव्य इमारत कह लें या अंग्रेजी वास्तु शिल्प की मिशाल या फिर स्वंतत्रता के बाद भी गुलामी की पहचान या अंग्रेजों की निशानी पर सच तो यही है कि चाहे अंदर बैठने वाले हों या बाहर से देखने वाले, हर भारतीय के मन में लुटियंस की यह साकार परिकल्पना जरूर टीस मारती होगी। शायद  इसी भावना से निर्णय भी लिया गया हो! जिससे भारतीय वास्तु शिल्प की नई कृति के रूप में नया और विशुद्ध भारतीय संसद भवन बने, जो भारतीय नक्शाकारों, भारतीय हाथों और वर्तमान भारतीय जरूरत के हिसाब से न केवल डिजाइन्ड हो बल्कि भविष्य की जरूरतों और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप देश के लिए वह नया मॉडल बने जिसे हम गर्व से कह सकें कि ये लुटियंस की नहीं इंडियंस की बनाई संसद है। करीब सवा बरस में 92 बरस पूर्व बनी संसद का नया अलग भवन, राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच 60 हजार स्क्वायर मीटर में त्रिकोणीय आकार में बनेगा। इसमें 120 दफ्तर होंगे। राज्य सभा की नई इमारत में 400 सीटें होंगी। यह भविष्य के परिसीमनों की जरूरतों को लंबे समय तक पूरा करेगा। नई इमारत संसद भवन के प्लॉट संख्या 18 पर बनेगी। निर्माण सेंट्रल विस्टा री-डेवलपमेंट परियोजना के तहत के तहत होगा।

साढ़े 9 एकड़ में संसद भवन की नई इमारत बनेगी, जबकि करीब 63 एकड़ में नया केंद्रीय सचिवालय और 15 एकड़ में आवास बनेगा। इससे अलग-अलग स्थानों पर दूर-दूर मौजूद सभी केंद्रीय मंत्रालय, उनके कार्यालय एक ही जगह यानी आस-पास हो जाएं। जाहरि है देश की जरूरतों के लिहाज से सारे कार्यालय एक जगह होना समय की बचत के साथ बेहद सुविधाजनक व खचरे में कमी के लिहाज से उपयोगी होगा।
यहां प्रधानमंत्री आवास भी केंद्रीय सचिवालय के आसपास साउथ ब्लॉक स्थित बनने वाले नये प्रधानमंत्री कार्यालय के पास बन सकता है, जो अभी लोक कल्याण मार्ग पर है। नये केंद्रीय सचिवालय के लिए विजय चौक से इंडिया गेट के बीच चार प्लॉट पर 10 आधुनिक इमारतें बनेंगी, जिनमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय होंगे। अभी केंद्र के 51 मंत्रालयों में केवल 22 मंत्रालय ही सेंट्रल विस्टा में हैं। तीन प्लॉट में तीन-तीन 8 मंजिला इमारतें और चौथे प्लॉट में एक इमारत के अलावा कन्वेंशन सेंटर होगा, जिसमें 8000 लोगों की बैठक क्षमता होगी तथा 7 हॉल होंगे। नये निर्माण के दौरान कृषि भवन, शास्त्री भवन, निर्माण भवन व साउथ ब्लॉक के समीप कई अन्य महत्त्वपूर्ण इमारतों, बंगलों को तोड़कर नया परिसर बनेगा। बस इसके लिए 2 से 4 वर्षो का इंतजार होगा। हां, हमारी नई संसद दिसम्बर 2021 तक बनकर तैयार हो जाएगी और 15 अगस्त 2022 यानी स्वतंत्रता की 75वीं वषर्गांठ के मौके पर सारे जश्न नए भवन में ही होंगे।  
इसका मतलब यह नहीं कि मौजूदा संसद भवन का महत्त्व कम हो जाएगा। यह ऐतिहासिक धरोहर थी, है और रहेगी। 91 साल पुरानी मौजूदा संसद, जहां वास्तु शिल्प का बेजोड़ नमूना है जो मात्र 83 लाख रु पये में, करीब 6 वर्षो में बनी थी। वर्तमान संसद भवन की नींव 12 फरवरी 1921 को उस ड्यूक ऑफ कनाट ने रखी थी, जिसके नाम पर कनाट प्लेस है। दिल्ली के सबसे भव्य भवनों में एक मौजूदा यह भवन तबके मशहूर वास्तुविद एडविन लुटियंस के डिजाइन और हर्बर्ट बेकर की देखरेख में बना। मौजूदा संसद की पूरी डिजाइन, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले स्थित मितालवी में बने 9 वीं शताब्दी के इकोत्तरसोया इंकतेर महादेव मंदिर जिसे अब चौंसठयोगिनी मंदिरके नाम से जाना जाता है;से प्रेरित है। नया संसद भवन समय के साथ प्रासंगिक है। हो भी क्यों न जब 2026 में संसदीय क्षेत्रों का नये सिरे से परिसीमन होगा, आबादी के साथ संसदीय कार्यक्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, तब सुरक्षा, तकनीक और सहूलियत के लिहाज से भी नया भवन जरूरी होगा और दिल्ली की पहचान धीरे-धीरे लुटियंस नहीं इंडियंस की दिल्ली होती जाएगी।

ऋतुपर्ण दवे


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