कोरोना : ‘वन नेशन, वन डॉयरेक्शन’ जरूरी

Last Updated 28 Aug 2020 01:08:04 AM IST

आखिर हुआ क्या जो लोगों के मन से कोरोना का डर खत्म हो रहा है? पहले केंद्र की इकलौती गाइडलाइंस थीं।


कोरोना : ‘वन नेशन, वन डॉयरेक्शन’ जरूरी

अब राज्यों के अपने दिशा-निर्देश हैं। कई राज्यों में डीएम को जरूरत के मुताबिक जिले में आदेश का अधिकार है तो डीएम अपने-अपने अनुविभागों में एसडीएम को जिम्मेदारी दे चुके हैं। नतीजतन, एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से भी भारत में कोरोना महामारी पर राज्यों की अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग जैसी स्थिति बन गई। बस यहीं से लोगों में भ्रांतियां भी फैलीं और ऐसी भ्रांति सोशल मीडिया पर कैसी-कैसी क्रांति लाती हैं पूछिए मत। वाट्स एप यूनिर्वसटिी का सच सबको पता है। कोरोना को लेकर भी कुछ यही हुआ। वह अपनी अंधी रफ्तार बढ़ता रहा।

सच कहा जाए तो होम आइसोलेशन, क्वारंटीन, कंटेनमेंट एरिया के जहां-तहां नित नये बदलते नियमों से भी आम जनमानस में डर कम और भ्रम बढ़ा। माना कि हालात के मद्देनजर यह जरूरी था लेकिन उससे भी जरूरी था कि जनसामान्य को मानसिक रूप से संक्रमण के पहले जैसे बल्कि और भी बड़े खतरे से आगाह कराते हुए राहत की वजहें बताकर सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटेशन की जरूरत पर सख्ती से अमल का कड़ा संदेश दिया जाता। यही नहीं हुआ। नहीं भूलना चाहिए कि उसी सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो भी खूब फॉर्वड और शेयर हुए जिन्हें कई कोरोना पीड़ितों ने मौत से पहले बनाकर जारी किया था। बावजूद इन सबके कोरोना को लेकर बेफिक्री हैरान करती है। अब चाहे व्यापारी हों, नागरिक या फिर अधिकारी ही क्यों न हों, मास्क न लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लापरवाही, सार्वजनिक स्थलों पर थूकना या गंदगी फैलाने पर जुर्माना प्रशंसनीय है। लेकिन दुख तब होता है जब एक आम आदमी यह कीमत लाठियों से पिटकर चुकाता है। कठोरता का मतलब पिटाई तो नहीं। समझाइश से भी हल निकलता है, निकल सकता है, और निकला है।

दूसरे देशों के आंकड़ों से रिकवरी की तुलना कर हम जनसामान्य को अच्छा संदेश जरूर देते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि केवल कोरे संदेशों और आंकड़ों की बाजीगरी से लड़ाई जीत नहीं पाएंगे। निदान के रास्ते पर बढ़ना होगा और कोरोना से बचाव, सेहत की सुरक्षा, जनजीवन के लिए जरूरी गतिविधियों को बिना संक्रमण की जद में आए जारी रखने वाले प्रयासों पर ज्यादा ध्यान देना होगा। जाहिर है कि अब लॉकडाउन की स्थिति नहीं दिखती। हां, ऐसी सख्तियों की सख्त जरूरत है ताकि लोग खुद ही सतर्क रहें। केंद्र द्वारा राज्यों को दिए गए मनमाफिक अधिकारों के बजाय कोरोना पर ‘वन नेशन, वन डायरेक्शन’ का फॉर्मूला अपनाया जाए।  सोशल डिस्टेंसिंग, सभी जरूरी जगहों पर मास्क पहनने, देश भर में दुकानों के बंद और खुलने का एक-सा समय, सप्ताहांत और साप्ताहिक कर्फ्यू जैसी सख्ती के लिए पूरे देश में एक से नियम हों ताकि विविध नियमों का भय और संशय न रहे। कोविड अस्पतालों की बेहतरी के लिए देश में सभी सेंटरों को सीसीटीवी सर्वेलॉन्स के एक प्लेटफॉर्म पर लाकर तुरंत एक सेंट्रल मॉनीटिरंग प्रणाली विकसित की जाए जो नामुमकिन नहीं है। सभी बड़े अस्पतालों और जिला अस्पतालों में सीसीटीवी होते हैं, जिन्हें सहज उपलब्ध तकनीक से जोड़ कर नेशनल सर्वेलान्स सिस्टम बनाना  होगा ताकि देश के किसी भी अस्पताल की व्यवस्था-अव्यवस्था को रेंडमली कभी भी देखा, जाना जा सके। इससे भयवश ही सही व्यवस्था सुधरेगी।
एक बार फिर कोविड-19 युद्ध पर सरकारी तंत्र की कसावट के साथ पुलिसिंग को भी पूर्ववत सख्ती के लिए तैयार करना होगा ताकि सार्वजनिक स्थान, हाट, बाजार, चल रहे सार्वजनिक परिवहन और कोरोना संक्रमित क्षेत्रों में नियमों का सुनिश्चित पालन हो। उससे भी बड़ा यह हो कि बढ़ते आंकड़ों के बावजूद कोरोना के भय को लेकर हाल ही में हुई लापरवाहियों को बिना किसी टीका-टिप्पणी के दुरु स्त किया जाए। जरूरत पड़ने पर कड़े फैसले किए जाएं। अब तक लापरवाही से ही सही आ बैल मुझे मार वाली स्थिति आगे न बढ़ पाए क्योंकि कोरोना का असर पूरे देश में है और यह कोई मायने नहीं रखता कि कहां ज्यादा, कहां कम। रिकॉर्ड बताते हैं कि कब, कहां कोरोना ब्लास्ट हो जाए,  किसी को नहीं पता होता। जब होता है तब हड़कंप मच जाता है। वैसे भी इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए देश को एकजुट होना होगा। और यह तभी होगा जब केंद्र के निर्देशों के अनुसार राज्य काम करें ताकि पूरे देश में कोरोना की एक जैसी, एक साथ लड़ाई लड़ी जा सके।

ऋतुपर्ण दवे


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