प्लाज्मा थेरेपी : कितना कारगर, कितना फायदेमंद

Last Updated 08 Jul 2020 05:51:28 AM IST

दिल्ली सरकार के प्लाज्मा थेरेपी को हरी झंडी देने के बाद से ही लोगों में चर्चा शुरू हो गई है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज कैसे होगा और यह कितना कारगर है?




प्लाज्मा थेरेपी : कितना कारगर, कितना फायदेमंद

वैसे इस महामारी काकेंद्र रहे चीन में प्लाज्मा थेरेपी की मदद से इलाज में सकात्मक नतीजे देखे गए हैं। लेकिन भारत में इसे लेकर और जनता में जागरूकता का आलम अभी शुरुआती स्तर के ही हैं।
प्लाज्मा थेरेपी तकनीक कोविड-19 संक्रमण के इलाज में उम्मीद की एक किरण माना जा रहा है। कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के शरीर से निकाले गए खून से कोरोना पीड़ित चार अन्य लोगों का इलाज किया जा सकता है। प्लाज्मा थेरेपी सिस्टम इस धारणा पर काम करता है कि जो मरीज किसी संक्रमण से उबर कर ठीक हो जाते हैं, उनके शरीर में वायरस के संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद उस वायरस से पीड़ित नये मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज के खून का एक अवयव प्लाज्मा डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए नये मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है। जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के ब्लड में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित होता है तो वह वायरस की वजह से होने वाली बीमारियों से ठीक हो सकता है। प्लाज्मा थेरेपी के पीछे आइडिया यह है कि इस तरह की रोग प्रतिरोधक क्षमता ब्लड प्लाज्मा थेरेपी के जरिए एक स्वस्थ व्यक्ति से बीमार व्यक्ति के शरीर में ट्रांसफर की जा सकती है। हमारा खून चार चीजों से बना होता है।

रेड ब्लड सेल, वाइट ब्लड सेल, प्लेट्लेट्स और प्लाज्मा। इसमें प्लाज्मा खून का तरल हिस्सा है। इसकी मदद से ही जरूरत पड़ने पर एंटीबॉडी बनती हैं। कोरोना अटैक के बाद शरीर वायरस से लड़ना शुरू करता है। यह लड़ाई एंटीबॉडी लड़ती है जो प्लाज्मा की मदद से ही बनती हैं। अगर शरीर पर्याप्त एंटी बॉडी बना लेता है तो कोरोना हार जाएगा। मरीज के ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ शरीर में रहती हैं, जिन्हें डोनेट किया जा सकता है। जिस मरीज को एक बार कोरोना का संक्रमण हो जाता है, वह जब ठीक होता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी डिवेलप होती है। यह एंटीबॉडी उसको ठीक होने में मदद करते हैं। ऐसा व्यक्ति रक्तदान करता है। उसके खून में से प्लाज्मा निकाला जाता है और प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी जब किसी दूसरे मरीज में डाला जाता है तो बीमार मरीज में यह एंटीबॉडी पहुंच जाता है, जो उसे ठीक होने में मदद करता है। एक शख्स से निकाले गए प्लाजमा की मदद से दो लोगों का इलाज संभव बताया जाता है। कोरोना नेगेटिव आने के दो हफ्ते बाद वह प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जो मरीज ठीक हो जाते हैं, उनके शरीर से ऐस्पेरेसिस तकनीक से खून निकाला जाता है, इसमें खून से प्लाज्मा जैसे अवयवों को निकालकर बाकी खून को फिर से उसी रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक, एंटीबॉडी खून के प्लाज्मा में मौजूद होता है, डोनर के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जाता है, इसका लगभग तीन से चार मरीजों में इस्तेमाल हो सकता है। 
प्लाज्मा ट्रीटमेंट कितना कारगर है साफ तौर पर कहा नहीं जा सकता, लेकिन चीन में कुछ मरीजों को इससे फायदा हुआ था। तीन भारतीय-अमेरीकी मरीजों को भी इससे फायदे की खबरें थी। दिल्ली में भी मरीजों को इससे फायदा पहुंचा था। आपने प्लाज्मा ट्रीटमेंट का नाम भले ही पहली बार सुना हो, लेकिन यह कोई नया इलाज नहीं है। यह 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने खोजा था। इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था। जानकारों का कहना है कि इस थेरपी का इस्तेमाल 1918 में फैले स्पैनिश फ्लू में किया गया था।
यही नहीं, इसी तर्ज पर 2010 में फैले स्वाइन फ्लू में भी इस थेरेपी से इलाज किया गया था। इसके अलावा 2003 में सार्स और 2012 में मर्स में भी यूज किया गया है। जब-जब किसी बीमारी में एंटीबॉडी की जरूरत होती है तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक जिसे सिर्फ  साधारण फीवर, कफ और सांस लेने में थोड़ी दिक्कत हो रही है, उन्हें प्लाज्मा देने की जरूरत नहीं है। इसका इस्तेमाल केवल उन्हीं मरीजों में किया जाना चाहिए जो काफी सीरियस हों। दिल्ली में सबसे पहले प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल हुआ था और नतीजे बेहतर आए। एलएनजेपी हॉस्पिटल में पिछले कुछ दिनों में 35 मरीजों को प्लाज्मा दिया था, उनमें से 34 मरीज बच गए।

कुमार समीर


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