मीडिया : ’टिक टॉक’ से ’चिन्गारी’ तक

Last Updated 05 Jul 2020 02:25:29 AM IST

जब तक ‘टिक टॉक’ रहा अपने युवा जन बड़े ही मस्त थे। करोड़ों युवा अपनी अपनी नाना लीलाएं उसमें रिकार्ड कर दिखाया करते और अपने-अपने फोलोअर्स की संख्या पर इतराया करते कि मेरे इतने फोलोअर हैं, कि मेरे इतने चाहने वाले हैं, कि मुझे इतने लेग लाइक कर रहे हैं।


मीडिया : ’टिक टॉक’ से ’चिन्गारी’ तक

‘टिक टॉक’ के माध्यम से बहुत से युवा रातोंरात हीरो-हीरोइन बने। बहुत से सेलीब्रिटी बने। बहुत से लोगों को इसके जरिए अपनी कला को निखारने का अवसर मिला।
भारत के ग्यारह लाख लोग इसका उपयोग करते थे। यह कोई मामूली संख्या नहीं थी। यह युवाओं का एक भरा पूरा बाजार था, जिसे कोई भी पटाना चाहता! ‘टिक टॉक’ था भी ऐसा ऐप जो फ्री में उपलब्ध था। आपको अपने मोबाइल पर उसे ‘डाउनलोड’ करना भर था। उसके बाद आप दुनिया भर के हीरो या हीरोइन हो सकते थे। आपको अपनी लीलाएं दिखाने के लिए यह आपको एक ग्लोबल साइबर मंच देता था। आपको लाइव इवेंट दिखानी है तो दिखाएं। आपको अपने खेल दिखाने हैं तो दिखाएं और चमत्कारी कारनामे दिखाने हैं तो दिखाएं और बदले में कुछ पैसे भी कमाएं। बरसों से लेग इसका इस्तेमाल कर  रहे थे, लेकिन बहुतों को यह न मालूम था कि यह ‘चीनी ऐप’ है! और अगर ऐसा मालूम भी  होता  तो भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होने वाली थी क्योंकि यह एकदम फ्री था और युवाओं की जरूरतों को देखकर ही बनाया गया था। उसका उपयेग करके आप कुछ भी कर सकते थे।
सबसे बड़ी बात कि आप अपने व्यक्तित्व और कृतित्व को दुनिया को दिखा सकते थे और अपने फोलोअर्स, अपने ग्राहक और अपना ‘निषे मारकेट’ बना सकते थे। अपनी ‘ब्रांडिंग’ कर सकते थे। अपने मोबाइल से ही छोटी-छोटी फिल्में बनाकर आप फिल्मकार बन सकते थे और अपने नाच गाने रिकार्ड कर सकते थे। और सिर्फ यह एक ऐप ही नहीं था, जो हमारी जिदंगी के लिए जरूरी बन चला था और भी ऐप था जो हमारी जिंदगी को आसान किए थे, जैसे पेटीएम, स्नैपडील, ओला, बीबो और ऐसे ही कई ऐप!

हमारे ऐपों की दुनिया पर चीन ने मानो कब्जा ही कर रखा था। हमारा दैनिक जीवन बहुत कुछ उन पर निर्भर हो चला था! चीन हमारे अंदर कहां-कहां घुसा हुआ है, यह हमें कभी न महसूस होता अगर चीन ने गलवान घाटी में ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ को पार कर आगे बढ़ने की आक्रामक कोशिश न की होती और उसके जबाव में हमारे बीस दिलेर सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाकर जैसे उसके चालीस-पचास सैनिकों को न मारा होता और बाकी को न खदेड़ा होता!
इस घटना के चीन के प्रति हमारा सोच को एकदम बदल दिया। इस घटना के तुरंत बाद हमारे मीडिया ने जैसे ही चीन की इन ‘विस्तारवादी साम्राज्यवादी’ हरकतों का विरोध करते हुए ‘चीन के बॉयकाट’ का नारा दिया वैसे ही देश में चीन विरोधी भावनाएं बढ़ने लगीं। यों भी सन 1962 में चीन द्वारा धोखे से हमारी जमीन पर किए गए कब्जे की बात जनता नहीं भूली थी, गलवान में चीनी सैनिकों द्वारा की गई इस ताजा हमलावर हरकत ने 1962 की चीन की  धेखाधड़ी की याद एक बार फिर ताजा कर दी। लोग कहने लगे और विदेश नीति के एक्सपर्ट भी बताने लगे कि चीन की किसी भी बात का विश्वास नहीं किया जा सकता! चीन फिर भी अपनी हरकतों से बाज न आया! ऐसे में सरकार को भी सोचना पड़ा और चीन को सबक सिखाने के लिए चीन के ‘टिक टॉक’ समेत 59 ऐप्स पर पाबंदी लगा दी।
सरकार को महसूस हुआ कि इतने ऐपों के माध्यम से वह हमारी जनता को अपने पक्ष मे बरगला सकता है और हमारे लोगों के डाटा का विलेषण करके हमारे दिमाग व भावनाओं तक पर कब्जा कर सकता है। ध्यान रहे कि आज के युद्ध साइबर स्पेस और उसके जरिए लेगों के दिमागों के भीतर जगह बनाकर भी लड़े और जीते जाते हैं। इतने सारे ऐप्स का ऐसा मकड़जाल चीन ने भविष्य की रणनीति सोचकर ही बनाया होगा। शायद इसलिए ही इनको बैन करना पड़ा। इससे ‘टिक टॉक’ का उपयेग करने वालों को ‘बैन’ से कुछ मायूसी अवश्य हुई लेकिन ‘बैन’ ने एक वैकल्पिक रास्ता भी दिखा दिया जो अन्यथा नहीं दिखता। ‘टिक टॉक’ के बैन होते ही बहुत से ‘टिक टॉकिओं’ ने ‘चिन्गारी’ नामक एक देसी ‘ऐप’ को अपना लिया और यहां आकर सब  वही-वही कर रहे हैं, जो ‘टिक टॉक’ पर किया करते थे। इस घटना से साफ है कि इस बैन ने हमें आत्मनिर्भर होना भी सिखाया और यह भी सिखाया कि उधर का जीवन उधर की सुविधाएं हमें गुलाम ही बना सकती है!

सुधीश पचौरी


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