इंटरनेट : कनेक्टिविटी का संकट

Last Updated 03 Jul 2020 02:34:02 AM IST

एक तरफ सरकार भारत को डिजिटलाइजेशन के मामले में दुनिया का अग्रणी देश बता रही है, तो दूसरी तरफ सरकार के केंद्रीय उपभोक्ता मामले एवं खाद्य मंत्री राम विलास पासवान सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ की राह में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी को सबसे बड़ी बाधा बता रहे हैं।


इंटरनेट : कनेक्टिविटी का संकट

उल्लेखनीय है कि इस योजना को मार्च, 2021 तक देशभर में लागू किया जाना है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ योजना को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की जा रही है। अभी तक इस योजना से बीस राज्य जुड़ चुके हैं, और एक अगस्त तक तीन और राज्य जुड़ने वाले हैं। हालांकि पहाड़ी राज्यों के साथ-साथ कुछ मैदानी इलाकों वाले राज्य भी खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से इस योजना को अपने यहां लागू करने में असमर्थता जता रहे हैं।

गौरतलब है कि इस योजना के तहत किसी भी राज्य का उपभोक्ता देश के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में अपने हिस्से का अनाज सरकारी राशन दुकान से ले सकता है, लेकिन इस सुविधा का लाभ लेने के लिए उपभोक्ताओं को बायोमीट्रिक आधारित पॉइंट ऑफ सेल मशीन में अंगूठे के जरिए अपनी पहचान बतानी होती है। इस प्रक्रिया का अनुपालन करके कोई भी उपभोक्ता अपनी पात्रता के अनुसार देश के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में सरकारी राशन दुकान से राशन ले सकता है। बायोमीट्रिक आधारित पॉइंट ऑफ सेल मशीन का संचालन इंटरनेट के जरिए किया जाता है, इसलिए इस योजना का लाभ लेने के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी का होना जरूरी है।

हकीकत यह है कि आज देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी के अलावा दूसरों कारणों से भी लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। स्मार्टफोन की कमी, देश के दूर-दराज इलाकों में मोबाइल टावर का नहीं होना, देश में ब्रॉडबैंड की सीमित उपलब्धता आदि ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से मौजूदा समय में भी देश में शत-प्रतिशत डिजिटलाइजेशन सपना बना हुआ है। इधर, कोरोना वायरस की वजह से भारत में लोगों की इंटरनेट पर निर्भरता अभूतपूर्व ढंग से बढ़ी है।

खास तौर पर ब्रॉडबैंड और वाई-फाई की। लॉकडाउन की वजह से लोगों को अपने घर में रहना पड़ रहा है। कंपनियों ने कर्मचारियों से घर से काम यानी वर्क फ्रॉम होम करने को कहा है। इसके अलावा, लोग सिनेमा, बेवसीरीज, गेम खेलने आदि के लिए भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। देशभर में बच्चों की ऑनलाइन क्लास चल रही हैं। बच्चे सप्ताह में पांच दिन पांच से छह घंटे इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से लोगों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरे कारणों से भी लोगों को इंटरनेट इस्तेमाल करने में मुश्किलें आ रही हैं। उदाहरण के तौर पर अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ इलाकों में मोबाइल टॉवर और ब्रॉडबैंड सेवा उपलब्ध नहीं हैं।  मोबाइल कंपनियां या टेलीकॉम कंपनियां 4 जी सेवा देने के दावे जरूर कर रही हैं, लेकिन वास्तविकता में ये आज भी लोगों को 2जी की रद्दी स्पीड मुहैया करा रही हैं। बावजूद इसके, कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास की मदद से शैक्षिक सत्र को पूरा करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन देश में इंटरनेट की पहुंच बहुत कम लोगों के बीच है। इतना ही नहीं, भारत में पांच से ग्यारह साल के लगभग सात करोड़ बच्चे अपने माता-पिता के स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैब या डेस्कटॉप का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन माता-पिता के कामकाजी होने पर उनके लिए ऑनलाइन क्लास करना मुमकिन नहीं होता है। इन कारणों से कोरोना काल में औसतन देश में चालीस से पचास प्रतिशत बच्चे ही ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं।
कहा जा सकता है कि सवाल सिर्फ  ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ योजना को लागू करने का ही नहीं है, बल्कि सवाल कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास करने, वर्क फ्रॉम होम करने, ग्रामीण एवं दूर-दराज के इलाकों में बैंकिंग सुविधाओं को मुहैया कराने, अस्पतालों में ऑपरेशन से लेकर कई अनुसंधान से जुड़े कार्यों को अमलीजामा पहनाने से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि इन कार्यों को बिना अच्छी स्पीड वाली कनेक्टिवटी के नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकार को दावा करने की जगह, जमीनी हकीकत को स्वीकार करते हुए मामले से जुड़ी कठिनाइयों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

सतीश सिंह


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