आत्महत्या के बढ़ते मामले : आत्मबल ही है इलाज
बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की घटना ने समूचे देश को झकझोर डाला है। वैसे कुछ महीनों से देश में आत्महत्याओं के मामले एकदम से बढ़े हैं।
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हाल में केरल रणजी टीम में जगह पाने वाले तेज गेंदबाज एस. श्रीसंत ने कहा कि अगस्त, 2013 में बीसीसीआई ने तथाकथित आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में उन पर आजीवन बैन लगाया था, तब लगातार उनके दिमाग में आत्महत्या के विचार आ रहे थे। लेकिन मेरे परिवार ने मुझे संभाले रखा। मुझे परिवार के साथ ही रहना था। मुझे पता है कि उन्हें मेरी जरूरत है। पर सुशांत संभवत: इतने तनाव में रहे होंगे कि उनके मन में अपने परिवार, मित्र जैसे फैक्टर न आ पाए हों।
सुशांत की आत्महत्या के पीछे बताया जाता है कि वह लंबे समय से अवसाद ग्रस्त थे। क्या अवसाद की वजह मनोवैज्ञानिक है। डच कलाकार विंसेंट वेन गॉग अपनी पेंटिग्स के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे। कहा जाता है कि उन्होंने खुद को गोली मारकर आत्महत्या की थी। वे अवसाद और अकेलेपन से जूझ रहे थे। वेन गॉग की एक पेंटिंग काफी मशहूर है जो उन्होंने अपनी मौत के ठीक पहले बनाई थी यानी डिप्रेशन और अकेलेपन के दौरान। वही पेंटिंग सुशांत के ट्विटर हैंडल की कवर फोटो में लगी है। ब्ल्यू और हल्के पीले रंग की इस पेंटिंग में पानी के भंवर नजर आते हैं। कहीं लहरें उठ रही हैं, तो कहीं पानी का बहाव नजर आता है। इस पेंटिंग का क्या अर्थ हो सकता है लेकिन एक संयोग तो यह है कि पेंटिंग सुशांत ने अपने ट्विटर पर लगा रखी है। वैसे, प्रारंभ में सुशांत की आत्महत्या के पीछे तनाव, अकेलापन और अवसाद जैसी वजहें सामने आई। बाद में जिस तरह की बातें सामने आने लगीं, उसके बाद सुशांत के दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पाने के लिए कुछ वैसे कारणों की ओर लोगों का ध्यान गया, जिनके लिए फिल्म उद्योग से जुड़े कुछ लोग या ग्रुप जिम्मेदार हो सकते हैं। अब पुलिस इस कोण से भी जांच-पड़ताल कर रही है कि क्या फिल्म उद्योग में कुछ बड़े लोगों के कुछ फैसलों की वजह से पैदा हुए तनाव ने सुशांत की जान ले ली।
सुशांत के अवसाद में जाने को लेकर लोग जो वजहें बता रहे हैं, उनमें मुख्य हैं, करण जौहर (धर्मा प्रोडक्शन), आदित्य चोपड़ा (यशराज फिल्म्स) का सुशांत पर प्रतिबंध लगाना। प्रतिबंध क्यों लगा सवाल इस पर होना चाहिए? सवाल स्पष्ट है कि एक छोटे शहर से सामान्य परिवार का प्रतिभाशाली लड़का आकर फिल्म इंडस्ट्री में मौजूद दिग्गज माफिया के बराबर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था, यह बड़े लोगों को नागवार गुजरा और ‘करण विथ काफी’ में करण जौहर कह रहे थे कि यह सुशांत सिंह कौन है? मैं नहीं जानता। उधर, सुशांत एक इंटरव्यू में कहते दिख रहे हैं, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद से कोई समस्या नहीं है, उनके भी लड़के आएं, हमारे जैसे सामान्य परिवार के भी लड़के आएं। कम्पटीशन होना अच्छी बात है, लेकिन समस्या तब होगी जब नये और सामान्य परिवार के प्रतिभाशाली लड़कों को मौका नहीं मिलेगा। ऐसे तो यह इंडस्ट्री बर्बाद हो जाएगी। गौर करें तो यही हो भी रहा है जिसका परिणाम सुशांत जैसे कलाकार की आत्महत्या के रूप में सामने है। सुशांत नौजवान थे, बेहद प्रतिभाशाली थे। उनको इस स्थिति का सामना करना चाहिए था, जो कदम उन्होंने उठाया वह समस्या का समाधान नहीं है। सुशांत के अंदर इतने गट्स थे कि चाहते तो अकेले ही लड़कर परिवारवाद को धूल चटा सकते थे। दरअसल, आज परिवारवाद सभी क्षेत्र में है। चाहे राजनीति हो, खेल हो, कला हो, प्रशासन हो, न्यायालय हो या कोई भी क्षेत्र हो। हमें अपने आदशरे से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, पाण्डव राजा पुत्र ने देव अंश होने के बावजूद कष्ट झेला लेकिन आत्मविास कम न होने दिया। पुन: सब कुछ प्राप्त किया, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कठिन समय को मजबूत इच्छाशक्ति से निकालकर आदर्श पुरु ष बने। जहां नेहरू-गांधी परिवार राजनीति और सत्ता को अपनी जागीर समझ रहा था, उसी में बिल्कुल सामान्य परिवार से आकर सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी जैसे लोगों ने खुद को साबित करके परिवारवाद को बौना साबित कर दिया।
फिल्म इंडस्ट्री का आलम यह है कि अमेरिका में अेतों की हत्या पर दु:ख जताते हैं और पालघर में संतों की हत्या पर मौन रहते हैं। भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व को अपना परिवार मानती है तथा समानता सिखाती है परंतु तथाकथित सेकुलर अपने हिसाब से विरोध प्रदशर्न और शांत रहते हैं, यह स्थिति भयावह है, किसी भी क्षेत्र में यह विसंगति आने पर उसके पतन की शुरुआत हो जाती है। सुशांत की आत्महत्या की जांच मुंबई पुलिस कर रही है, उनके तीनों नौकरों और सुशांत की महिला मित्र रिया चक्रवर्ती से पूछताछ कर रही है, पूछताछ से क्या हासिल होगा। समय बताएगा।
पर सवाल यह भी है कि आखिर अब तक देश में कोई ऐसी ठोस व्यवस्था, कोई आयोग, कोई संस्थान या पहलकदमी क्यों नहीं हो सकी है जो किसी वजह से तनाव, अकेलेपन या अवसाद की चपेट में आए या व्यावसायिक रूप से या कॅरियर के लिहाज से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे कलाकारों की, कर्ज संकट से जूझ रहे किसानों, पढ़ाई का तनाव झेल रहे छात्रों, बेरोजगारी, गरीबी से त्रस्त युवकों, भावनात्मक छल या शारीरिक शोषण की शिकार युवतियों या अन्य लोगों की समय पर मदद कर सके। जब उन्हें मदद की दरकार हो तब, ताकि ऐसी आत्महत्या की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके। पर एक पहल तो इंसान को खुद ही करनी होगी। आत्महत्या कायरता है। जिंदगी के संघर्ष से मुंह छुपाना है। मानवीय विवेक को झुठलाने की प्रक्रिया है। इसलिए आवश्यकता है कि आत्महत्या की बजाय मजबूत होकर परिस्थितियों का सामना किया जाए। हमें आपको न केवल मजबूत होना होगा अपितु अन्य लोगों को भी मजबूत बनाना होगा। तभी बात बनेगी।
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