ऑनलाइन शिक्षा : एक नहीं अनेक चुनौतियां
सेवा और उत्पादन के बाद तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र शिक्षा आज कोरोना वायरस की सबसे बड़ी मार झेल रहा है। लॉकडाउन ने शिक्षा के मूल पर करारा प्रहार किया है।
ऑनलाइन शिक्षा : एक नहीं अनेक चुनौतियां |
वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर शिक्षा का कार्य-व्यापार पूरी तरह ठप है। स्कूल-कॉलेज बंद होने से शिक्षा का परम्परागत स्वरूप शिथिल सा पड़ा हुआ है। वास्तव में इस अप्रत्याशित समय में शिक्षा के पारंपरिक और वास्तविक स्वरूप की पुनर्बहाली लगभग असम्भव जान पड़ती है। ऐसे में चुनौतियों और सामंजस्य के बीच ऑनलाइन शिक्षा के विकल्प को मुफीद माना जा रहा है। हालांकि यह व्यावहारिक स्तर पर कितना सफल है; इसकी परख बाकी है।
वैकल्पिक शिक्षा माध्यम के रूप में ऑनलाइन पठन-पाठन की मांग जोर पकड़ने से इसे व्यापक स्तर पर लागू करने की कवायद शुरू हो गई है, लेकिन इसे मानक रूप में स्थापित करने की अन्तर्निहित चुनौतियां भी हैं। अगर इसके लाभ के पक्ष की बात करें तो इसने शिक्षा के सुस्त पड़े पहिये को संभावित रफ्तार देने की कोशिश की है। ऑनलाइन मंचों जैसे-जूम, मूडल, गूगल क्लासरूम अथवा गूगल हैंगआउट सर्विस, स्काईप, बेबेक्स, वर्चुअल लैब आदि का बेहद सीमित लेकिन प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है और सलेक्टिव मास तक इसकी पहुंच बन रही है। बड़े और कॉर्पोरेट इमेज वाले स्कूल-कॉलेज छात्रों को सीखने में मदद के लिए ई-रिसोर्सेज जैसे-एनपीटीईएल, स्वंय, उडेमी, कोर्सेरा, एमआईटी कोर्स वेयर के लिंक के जरिए अपडेट कर रहे हैं और उन्हें प्रभावी तरीके से सीखने में मदद भी कर रहे हैं। लेकिन क्या इससे हाशिये के छात्रों को मदद मिल रही है यह गौर करने वाली बात है।
वर्चुअल ऑनलाइन एसेसमेंट और एग्जामिनेशन से स्टूडेंट को दूसरे से आगे रखने में मदद मिलती है, लेकिन कक्षीय पाठन का कोई विकल्प नहीं; जहां शिक्षक और छात्र के बीच तदात्म्य स्थापित कर वन टू वन इन्टरेक्सन से समस्या के समाधान ढूंढने में मदद मिलती है। भारत जैसे विशाल देश में जहां 40000 से भी ज्यादा निजी और केंद्रीकृत विश्वविद्यालय और लाखों छोटे-बड़े स्कूल है, वहां ऑनलाइन शिक्षा के प्रसार में अनेकानेक बाधाएं है। इससे इतर एक स्याह पक्ष ये भी है कि देश में हजारों ऐसे स्कूल है, जिनके पास न तो समुन्नत तकनीक है न संसाधन। ऐसे में बदलाव की इस कड़ी को सूदूर गांवों में बैठे छात्रों से कैसे जोड़ा जाए।
एक अनुमान के अनुसार देश में सिर्फ 15 से 20 फीसद ही ऐसे संस्थान है, जो ऑनलाइन के जरिये समूचित पठन-पाठन की सुविधा छात्रों तक पहुंचा पा रहे हैं। हालात यह है कि 100 में से सिर्फ 10 संस्थान ही तकनीकी रूप से ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार हैं। बड़े शहरों में भी 80 फीसद संस्थान ऐसे हैं, जिनके पास वेब क्लास संबंधी समूचित टूल उपलब्ध नहीं हैं और अगर है भी तो शिक्षक तकनीकी रूप से सक्षम नहीं। एक ओर जहां तकनीकी की अनुपलब्धता, उन्नत उपकरण, कुशल प्रशिक्षक और उचित माहौल आदि इसकी राह में बाधक है तो दूसरी ओर इंटरनेट की खराब कनेक्टिविटी, छात्रों का सत्र के दौरान गायब हो जाना, सम्पर्क स्थापित करने में दिक्कत, ध्यान केंद्रन की कमी अनौपचारिक या कैजुअल उपस्थिति आदि अन्य बड़ी चुनौतियां भी दीवार बनकर खड़ी है। इन तमाम दुारियों और दुश्चिन्ताओं के बीच ऑनलाइन परीक्षा की घोषणा ने समस्या को और पेचीदा बना दिया है। ऐसे में छोटे शहरों, गांवों और कस्बों की स्थिति का आकलन बखूबी लगाया जा सकता है।
भारत में ऑनलाइन शिक्षा की राह आसान नहीं है। इसके लिए संबंधित विकसित प्रणाली की दरकार होगी ताकि सुगमता से छात्रों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित की जाए। साथ ही अद्यतन तकनीकी और नवीनतम प्रणालियों से हमें खुद को अपडेट रखना होगा ताकि इसका फायदा ज्यादा-से-ज्यादा छात्रों तक पहुंचाया जा सके। भारत अभी डिजिटल शिक्षा के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। इस दिशा में अनन्य प्रयास किए जाने की जरूरत है। स्कूली स्तर पर ई-लर्निग को व्यवहार रूप में अनिवार्य रूप से लागू किया जाना आवश्यक होगा। साथ ही शिक्षकों को परंपरागत शिक्षा से उलट डिजिटल टीचिंग के तरीकों पर कार्यशाला या इनपुट देने की जरूरत होगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए आई-लर्निग प्लेटफॉर्म जैसे-स्वयं, दीक्षा, ई-बस्ता, शोध गंगा, विद्वान, ई-पीजी पाठशाला आदि उपयोगी प्लेटफॉर्म इस दिशा में मदद कर सकते हैं। इसमें संशय नहीं कि अगर तैयारी और सुचारू व्यवस्था के साथ ऑनलाइन शिक्षा को प्रसारित किया जाए तो धीमे पड़े शिक्षा के रथ को दौड़ाया जा सकता है।
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